भगवान बाहरी चकाचौंध और मेवा-मिष्ठान्न से नहीं हमारे कर्मों की श्रेष्ठता से प्रसन्न होंगे -भास्करानंद

भगवान बाहरी चकाचौंध और मेवा-मिष्ठान्न से नहीं हमारे कर्मों की श्रेष्ठता से प्रसन्न होंगे -भास्करानंद

इंदौर,  । भगवान को छप्पन भोग या महंगे मेवा मिष्ठान अथवा चकाचौंध कर देने वाली साज-सज्जा से प्रसन्न नहीं किया जा सकता। उन्हें प्रसन्न करने के लिए हमारे कर्मों में परमार्थ और श्रेष्ठता का भाव जरूरी है। जिस दिन हमारे कर्मों में परमार्थ और व्यवहार में सदभाव आ जाएगा उस दिन भक्ति भी फलीभूत हो उठेगी। कोई भी परिवार स्नेह और मर्यादा की नींव पर ही खड़ा रह सकता है। धन के बल पर हम आलीशान बंगले तो बना सकते हैं, लेकिन इनमें रहने वाले परिजनों को जोड़ने के लिए स्नेह, सदभाव और विश्वास का जोड़ भी जरूरी है।

ये प्रेरक विचार हैं वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद के, जो उन्होंने मनोरमागंज स्थित गीता भवन पर गोयल पारमार्थिक ट्रस्ट और रामदेव मन्नालाल चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा आयोजित भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह के दौरान व्यक्त किए। कथा का यह आयोजन समाजसेवी मन्नालाल गोयल और मातुश्री चमेलीदेवी गोयल की पुण्य स्मृति में किया जा रहा है। रविवार को कथा में शिव पार्वती विवाह का उत्सव धूमधाम से मनाया गया। कथा शुभारंभ के पूर्व आयोजन समिति की ओर से प्रेमचंद –कनकलता गोयल, विजय-कृष्णा गोयल एवं निधि-आनंद गोयल ने व्यासपीठ का पूजन किया। रविवार को भी साध्वी कृष्णानंद ने अपने मनोहारी भजनों से भक्तों को भाव विभोर बनाए रखा। अनेक श्रद्धालु भजनों पर थिरक रहे हैं। कथा श्रवण के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आ रहे हैं। गीता भवन में यह कथा 29 अगस्त तक प्रतिदिन सांय 4 से 7 बजे तक होगी और इस दौरान विभिन्न उत्सव भी मनाए जाएंगे। कथा में सोमवार को कथा प्रसंगानुसार कृष्ण जन्मोत्सव का विशेष उत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा।
विद्वान वक्ता ने कहा कि भगवान गोकुल और वृंदावन में रहते थे, क्योंकि वहां बाल-ग्वालों से लेकर बृज भूमि में रहने वाले सभी लोगों का एक परिवार बना हुआ था। एक साथ रहकर ही हम एक दूसरे के दुख-दर्द को समझ सकते हैं। आजकल संयुक्त परिवार की प्रवृत्ति सिमटती जा रही है। संयुक्त परिवार की ताकत सबसे बड़ी होती है। हमारा परिवार गोकुल की तरह होना चाहिए। जिस दिन हमारा घर आंगन गोकुल बन जाएगा, उस दिन भगवान स्वयं हमारे घर चले जाएंगे। भक्ति में यदि प्रेम समावेश हो जाए तो वह भक्ति सहज ही दूसरों को भी अपना बना लेती है।