*रक्षाबन्धन विशेष*…..
स्वस्तिवाचनपूर्वक अभिमंत्रित रक्षा सूत्र बनते है, जो देवराज बृहस्पति व इंद्राणी ने विजय की कामना से इंद्र के हाथ मे बांधा था :- आचार्य पं. रामचंद्र शर्मा वैदिक
इंदौर।श्रावण शुक्ल पूर्णिमा रक्षा बन्धन पर रक्षा सूत्र बांधने का प्रचलन वर्षों पूर्व से चला आ रहा है। पुराणादि धर्मशास्त्रों की मान्यता है कि देवासुर संग्राम में विजय की कामना से देवराज बृहस्पति (गुरु) व इंद्राणी ने श्रावण पूर्णिमा को देवराज इंद्र को स्वस्तिवाचन पूर्वक अभिमन्त्रित रक्षा सूत्र बांधा था, जिससे इंद्र ने दानवों पर विजय प्राप्त की।
*पारंपरिक रक्षा सूत्र कैसे व किस विधि से तैयार किया जाता है*, आचार्य पण्डित रामचंद्र शर्मा वैदिक ने बताया कि श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को सर्व प्रथम सूत्र तैयार करने हेतु स्थान का लेपन व *पवित्रीकरण* किया जाता है। इस क्रिया में गंगाजल व गोबर का उपयोग किया जाता है। गोमय से कीटाणुओं का नाश होता है। यह कीटाणु नाशक माना जाता है। अतः रक्षासूत्र तैयार करने के पूर्व स्थान का शुद्धिकरण किया जाता है। (2) शुद्धिकरण के बाद हल्दी या रोलीसे *चौक* पूरा जाता है। यह मांगलिक व सौंदर्य वर्धक है साथ ही हल्दी व रोली रोगाणु नाशक भी है। (3) *चौकी व कलश*, रक्षासूत्र विधि में चौकी पर जल पूरित कलश स्थापित किया जाता है। जल पूरित कलश मांगलिक व शुभ माना जाता है। रक्षापर्व में वरुण स्वरूप आदित्य के प्रतीक कलश की पूजा पाश बन्धन से मुक्ति प्रदान करती है। आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य व विजय की कामना से रक्षा सूत्र तैयार किया जाता है। आचार्य शर्मा वैदिक ने बताया कि विगत छः दशक से *भारद्वाज ज्योतिष एवं आध्यात्मिक शोध संस्थान* द्वारा पूज्य पिताश्री स्व. पण्डित नानूराम जी शर्मा ‘ज्योतिर्विद’ के मार्ग दर्शन मे अपने यजमानों हेतु पारम्परिक विधि विधान से रक्षापर्व पर स्वस्तिवाचन पूर्वक अभिमन्त्रित रक्षा सूत्र *शुभ मुहूर्त* में तैयार किये जाते थे आपके द्वारा प्रारम्भ की गई परम्परा आज भी अविरत चली आ रही है, । *कैसे होते है. रक्षासूत्र तैयार*, आयु, आरोग्य व ऐश्वर्य की अविच्छिन्नता बनी रहे इस हेतु रेशमी अथवा ऊनी वस्त्र लिया जाता है।उसमें केसर, चन्दन , अक्षत, दूर्वांकुर, पीली सरसों व सुगन्धित पुष्प की पंखुड़िया। इन्हें समन्त्रक रेशमी वस्त्र में बांध कर उन्हें स्वस्ति मन्त्रों के साथ जलपूरित कलश पर रख उनकी पंचोपचार विधि से पूजा अर्चना की जाती है।। आचार्य पण्डित रामचन्द्र शर्मा वैदिक के अनुसार *दूर्वांकुर* विघ्न नाशक के साथ वंश वृद्धि में भी सहायक है। *अक्षत* परस्पर विश्वास कभी क्षत नही होता, अडिग बना रहता है। *चन्दन* मन मस्तिष्क को शीतलता व एकाग्रता प्रदान करता है। *पीली सरसों* बाधाओं को शांत कर शत्रुओं का शमन करती है, विजय प्रदान करती है। *केशर* तेजस्विता प्रदान करती है इस प्रकार पारंपरिक विधि विधान से तैयार रक्षासूत्र सर्वविध रक्षा प्रदान करता है। आचार्य पण्डित शर्मा वैदिक ने बताया कि हम सर्वप्रथम रक्षा सूत्र प्रथम पूज्य श्री गणेश जी महाराज, भगवती माँ दु र्गा, शिवजी के साथ ही कुल देवी को समर्पित करते है/ बांधते है। सामान्यतः इन्हें भद्रा रहित शुभ मुहूर्त में ही बंधा जाता है। *रक्षा सूत्र* को मन्त्र के साथ ही बांधने का विधान है, *येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल, तेन त्वा मनु बध्नामि रक्षे मा चल मा चल*। इसी मन्त्र से स्वस्तिवाचन पूर्वक अभिमन्त्रित रक्षासूत्र (रक्षा पोटली) देवराज बृहस्पति के मार्ग दर्शन में इंद्राणी ने इंद्र के सीधे हाथ मे विजयी भव के साथ बांधा था। तब से आज तक रक्षापर्व पर रक्षा बांधने की परंपरा अविछिन्न रूप से चली आ रही हैं। मेरे परिवार में पूज्य पिताश्री ज्योतिर्विद पं. नानूराम शर्मा द्वारा प्रतिपादित परम्परा का आज भी विधि विधान से निर्वहन हो रहा हैं… *रक्षा बंधन* आयु आरोग्य व ऐश्वर्य की वृद्धि हेतु किया जाता है। पूर्ण चन्द्र सुधानिधि होने के कारण इसी का प्रतीक है, पूर्ण चन्द्र *पूर्णिमा* को ही रहता है इसके देवता चन्द्रमा है अतः सावन पूर्णिमा को रक्षापर्व मनाना आयु, आरोग्य ब ऐश्वर्य की प्राप्ति कराने वाला है। पूर्णिमा के साथ *श्रवण* नक्षत्र का संयोग सावन मास में ही होता हैं।इस वर्ष यह पर्व श्रवण नक्षत्र/..धनिष्ठा नक्षत्र, सर्वार्थ सिद्धि एवम् शोभन योग के साथ मकर राशि के चंद्रमा में मनाया जाएगा।
रिपोर्टर, विनोद गोयल