उदास मन                              – प्रो. डी.के. शर्मा


आज मन बहुत उदास है
बांग्लादेश में मारे जा रहे
बंधुओं के साथ है.
आज वे अकले हैं
कोई नहीं साथ है.
किसी को वहां मारे जा रहे
हिन्दुओं की चीखें
नहीं सुनाई दे रही,
घसिट कर ले जाई जा रही
लड़कियों की चीखें भी
बहरे कानों पर पड़ रही,
दुनिया तो बहरी हो गई
मैं नहीं हो सकता.
मैं बहुत व्यथित हूं,
मैं तो सुरक्षित बैठा हूं
मालवा के अंचल में,
और मेरे बंधुओं
तुम पर भारी अत्याचार हो रहे
जमाने भर के.
पूरे विश्व में
सब कान में तेल डालकर सोए हैं
किसी को तुम्हारे दुःखों से
कुछ लेना देना नहीं.
सबकी कुर्सियां सुरक्षित हैं
तुम मरो तो मरो
उन्हें इससे क्या ?
ईश्वर भी नहीं है रखवाला
खुद ही सीखना होगा
अपनी सुरक्षा करना.
शरीफ बनकर दुनिया में
जी नहीं सकते,
गुंडागर्दी का ही सदैव
रहा है बोलबाला,
इसलिए,
तुम्हें भी सीखनी होगी गुंडागर्दी
वरना यूं ही मरते रहोगे
सदियों तक
जैसा कि
होता आया है सदियों से.