25 जून की इमरजेंसी लोकतंत्र को लहुलुहान करने वाला दिन – वाधवानी पंकज

लेख

25 जून की इमरजेंसी लोकतंत्र को लहुलुहान करने वाला दिन –एडवोकेट वाधवानी पंकज

गैर कानूनी आपातकाल के 49 वर्ष पर संस्था न्यायाश्रय की संगोष्ठी आयोजित

देश के युवाओं और सभी लॉ स्टूडेंट्स को इस काले दिन और इसके इतिहास को याद रखना चाहिए–वकीलों ने कहा

इंदौर। जिस भारतीय संविधान को हम भारतीय नागरिकों का भाग्य विधाता कहते हैं उसी संविधान के एक प्रावधान को गलत तरीके से दुरुपयोग करते हुए हमारे देश में 21 महीनों तक लोकतंत्र पर निरंतर हम लेकर उसे लहुलुहान किया गया। भारतीय नागरिकों के अधिकारों का निरंतर हनन और उस पर किसी प्रकार का कोई अनुतोष अथवा उपचार उपलब्ध ना होना, बहुत ही बुरे दिनों की याद दिलाता है। प्रत्येक लॉ स्टूडेंट एवं आज के युवाओं को यह घटना और इस घटना के इतिहास को हमेशा याद रखना है ताकि भविष्य में हमारे देश में इसकी पुनरावृत्ति ना हो। यह कहना है एडवोकेट एवं लॉ प्रोफेसर पंकज वाधवानी का जो कि 25 जून इमरजेंसी के 49 वर्ष पर आयोजित ऑनलाइन संगोष्ठी पर “इमरजेंसी— लोकतांत्रिक अधिकारों की निर्मम हत्या” विषय पर बोल रहे थे।

विधि के क्षेत्र में कार्य करने वाली संस्था न्यायाश्रय द्वारा 25 जून को आपातकाल दिवस पर आयोजित संगोष्ठी में संबोधित करते हुए संस्था अध्यक्ष एडवोकेट एवं लॉ प्रोफेसर पंकज वाधवानी ने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और सर्वोच्च न्यायालय के बीच हुए मनमुटाव और खींचतान का नतीजा थी 1975 की इमरजेंसी, जिसमें आजादी के बाद आज दिनांक तक सबसे ज्यादा भारतीय नागरिकों के अधिकारों का हनन हुआ। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद से ही देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का न्यायपालिका के साथ मतभेद बढ़ता चला गया और यही आगे चलकर आपातकाल की पृष्ठभूमि बना। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सात जजों की खंडपीठ ने जब यह फैसला सुनाया था कि संसद द्वारा संशोधन करके भारतीय लोगों के मौलिक अधिकारों को ना ही समाप्त किया जा सकता है ना ही उसे सीमित किया जा सकता है तथा 1971 में इंदिरा गांधी के रायबरेली लोकसभा सीट पर चुनाव हारने वाले प्रत्याशी राजनारायण की याचिका में सर्वोच्च न्यायालय के पारित निर्णय से नाराज होकर इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई थी जिसमें भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का ना सिर्फ हनन हुआ था बल्कि भारतीय लोकतंत्र की भी निर्मलता पूर्वक हत्या हुई थी।

इमरजेंसी की घटनाओं को किया याद

आयोजित संगोष्ठी में हाई कोर्ट अधिवक्ता दुर्गेश शर्मा ने संबोधित करते हुए कहा कि 25 जून की इमरजेंसी को लोकतंत्र की हत्या किए जाने का दिन भी कहा जा सकता है इस दिन को विशेषकर आज के युवाओं को याद रखना जरूरी है क्योंकि उन लोगों ने यह दिन नहीं देखा था जिसमें 21 महीनों तक अर्थात 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक देश में मौलिक अधिकारों का हनन किया गया था 25 और 26 जून की मध्य रात्रि में तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल पर हस्ताक्षर करवा कर देश में आंतरिक सुरक्षा जैसे संवैधानिक और वैधानिक आधार पर इमरजेंसी लगाई गई थी और इसके साथ ही भारत के सभी नागरिकों के अधिकार समाप्त कर दिए गए थे मनचाही गिरफ्तारियां और अवैधानिक रूप से जेल में डाले जाने की घटनाएं अनगिनत है। उस समय किस प्रकार लोगों पर भारी अत्याचार हुए थे उसकी दास्ताने करोड़ों की संख्या में है। वर्तमान युवाओं और विशेषकर कानूनी विद्यार्थियों को इस दिन के इतिहास को अच्छे से समझना होगा ताकि हमारे देश में फिर से इस प्रकार की कोई नौबत ना आए अथवा कोई व्यक्ति तानाशाही करता है तो सब मिलकर उसका प्रतिकार कर सकें।

– पंकज वाधवानी एफसी (अधिवक्ता एवं विधि व्याख्याता)अध्यक्ष- संस्था न्यायाश्रय