हिमालय की गंगा से तन सुंदर बन सकता है, लेकिन मन की सुंदरता के लिए चाहिए रामकथा रूपी गंगा – मानस कोकिला रश्मिदेवी

हनुमत कथा का शुभारंभ

इंदौर। कलयुग में भक्ति को सर्वोपरि कहा गया है और भक्तों में सबसे शीर्ष क्रम पर हमारे हनुमानजी का नाम शामिल है। हिमालय से निकली गंगा में स्नान करने से तन तो सुंदर बन सकता है, लेकिन मन की सुंदरता के लिए राम कथा रूपी गंगा की जरूरत है। स्वर्ग का अमृत हमें मरने के बाद ही मिल सकता है, लेकिन रामकथा रूपी अमृत तो जीते जी ही मिल जाएगा। जीवन की व्यथा को दूर करने की कथा का नाम है रामकथा और रामकथा के केन्द्र में सबसे महत्वपूर्ण चरित्र यदि कोई है तो वह है हनुमानजी। रामजी की सेवा कर उन्होंने समुद्र और पहाड़ तो ठीक अनेक झंझावत भी पलक झपकते ही पार किए हैं। ऐसे हनुमानजी के चरित्र की कथा का श्रवण भारत भूमि में बैठकर करना सचमुच सौभाग्य की बात है।
झांसी से आई मानस कोकिला श्रीमती रश्मिदेवी ने  कैट रोड हवा बंगला स्थित हरिधाम आश्रम पर पीठाधीश्वर महंत शुकदेवदास महाराज के सानिध्य में पांच दिवसीय हनुमत कथा के शुभारंभ सत्र में उक्त प्रेरक बातें कहीं।

हरिधाम पर गत 9 अप्रैल गुड़ी पड़वा से ही हनुमत महोत्सव चल रहा है।  23 अप्रैल तक पांच दिवसीय हनुमत कथा का आयोजन होगा। झांसी की मानस कोकिला श्रीमती रश्मिदेवी यहां प्रतिदिन दोपहर 3 से सायं 6 बजे तक हनुमत कथा की अमृत वर्षा करेंगी। प्रारंभ में समाजसेवी ओमप्रकाश अग्रवाल के मुख्य आतिथ्य में विश्व हिन्दू परिषद के प्रांताध्यक्ष मुकेश जैन, डॉ. सुरेश चौपड़ा, गुमानसिंह, श्रीमती निर्मला बैस, कांता खंडेलवाल, भारती साहू, महिमा पांडे एवं राजकुंवर ठाकुर ने दीप प्रज्ज्वलन के पश्चात व्यासपीठ का पूजन कर इस दिव्य अनुष्ठान का शुभारंभ किया। संचालन मांगीलाल ठाकुर ने किया। कथा के मुख्य यजमान मुकेश बृजवासी, सुधीर अग्रवाल, ने बताया की कथा महोत्सव का आयोजन 23 अप्रैल तक चलेगा।

मानस कोकिला ने कहा कि

कलयुग में व्यक्ति एक रूपए की अगरबत्ती तभी जलाता है, जब उसे कोई लाभ नजर आता है। हरिधाम पर महिला मंडल की भागीदारी में हनुमत कथा का यह दिव्य आयोजन इसलिए भी सार्थक और महत्वपूर्ण है कि वर्तमान संदर्भों में हनुमानजी की भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। हनुमानजी ने अपना सर्वस्व प्रभु राम को समर्पित कर दिया। उनकी हर गतिविधि प्रभु श्रीराम के नाम से ही होती है। बड़े से बड़े पहाड़ और बड़े से बड़े समुद्र लांघना हनुमानजी ने राम नाम के बूते पर ही किया। जब तक प्रभु के प्रति पूरी लगन और निष्ठा से समर्पण और त्याग का भाव नहीं होगा, तब तक भक्ति फलीभूत नहीं हो सकती। प्रभु श्रीराम की भक्ति का ही चमत्कार है कि हनुमानजी भक्त भी हैं और भगवान भी हैं।

विनोद गोयल, नगर प्रतिनिधि