14 मार्च अंतरराष्ट्रीय नदी कार्यवाही दिवस विशेष लेख-:
धर्मेंद्र श्रीवास्तव,
लेखक जल जीवन मिशन अंतर्गत राजोद समूह जल प्रदाय योजना में
(आई एस ए) स्वशासी संगठन के अंतर्गत परियोजना समन्वयक के पद पर कार्यरत है,
“वर्षों तक इन पवित्र नदियों ने हमारी प्यास बुझाई अब हमें इन नदियों की प्यास बुझाना है!”
“गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए भागीरथजी ने भागीरथी प्रयास किए थे अब हम सबको मिलकर इसकी स्वच्छता और संरक्षण को लेकर भागीरथी प्रयास करना है।”
14 मार्च को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 27 वा नदी कार्यवाही दिवस होगा, नदिया मात्र जल का स्रोत नहीं धार्मिक आस्था से जुड़ी हुई है और लोग अपने मोक्ष की प्राप्ति का माध्यम विशेष रूप से नदियों को मानते हैं नदियों के विकास को लेकर देखा जाए तो केवल और केवल कागजों पर ही दिखाई दे रहा है विश्व भर में 14 मार्च को नदियों के लिए अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई दिवस मनाया जाता है,
इस अवसर पर धर्मेंद्र श्रीवास्तव का नदियों के संरक्षण को लेकर विशेष आलेख,
विश्व की नदियों के साथ-साथ हमारा देश भारतवर्ष भी नदियों को लेकर चिंतित हैं भारतवर्ष में नदियों को तीर्थ और महा तीर्थ माना जाता है दौरान इसके वर्तमान परिपेक्ष में नदियों की दशा चिंतनीय है अतीत में देखा जाए तो हमारी नदिया वर्ष भर कल कल कर निर्मल जल बहाया करती थी किंतु जैसे-जैसे हम आधुनिकता की ओर बढ़ते गए हमारी नदियों का जल सूखता गया और यह बहुत ही भयावह स्थिती है यदि समय रहते नदियों को संरक्षित नहीं किया गया तो मानव जाति के विकास को रोकने से कोई ताकत नहीं रोक सकती जिस तरह से शरीर को चलाने के लिए रक्त की आवश्यकता है इस तरह से मनुष्य को जीवित रहने के लिए जल की आवश्यकता है आज नदियों पर संकट आया है यदि आज ही हम सबने मिलकर अपना कर्तव्य नहीं निभाया तो कल मनुष्य जाति पर गहरा संकट आ जाएगा नदियों के इतिहास को देखे तो नदिया हमारे सत्य सनातन धर्म से जुड़ी हुई है कहीं गंगा शिव की जटा में समाहित है तो कहीं यमुना यम द्वारा से पृथ्वी पर आई है जितनी पुरानी हमारी भारतीय सभ्यता और संस्कृति है उतना ही पुराना नदियों का इतिहास है, नदियों के तटो पर ही भारतीय सभ्यता और संस्कृति पली बड़ी है नदियों के संरक्षण की बात को गंभीरता से लेते हुए 14 मार्च 1997 को नदियों के लिए अंतरराष्ट्रीय कार्यवाही दिवस घोषित किया गया है, पिछले 5 दशकों से हमने नदियों का तिरस्कार कर दिया है मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र को ही देखा जाए तो यहां नदियों को लेकर कई धार्मिक आयोजन होते हैं नर्मदा माही एवं अन्य नदियों की पंचकोशीय यात्राएं निकाली जाती है मोक्ष को प्राप्त करने हेतु विभिन्न धार्मिक आयोजन किए जाते हैं किंतु इन नदियाँ जो मोक्ष को प्रदान करने वाली है मोक्षदा रही है उनके संरक्षण को लेकर मनुष्य कोई कार्य नहीं करता कल नदिया साफ और स्वच्छ होती थी किंतु आज महानगरों की गंदगी इन नदियों में समाहित हो रही है और वर्षा काल के कुछ महीनो के पश्चात ही यह नदियां और इनका जल सूख जाता है भारत सरकार द्वारा घरों तक शुद्ध पानी पहुंचाने के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाई जा रही है और उनकी योजनाओं के माध्यम से सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में नलों के माध्यम से जल पहुंच रहा है आज के परिपेक्ष में यह योजना सफल दिखाई देती है किंतु कल जब नदियों में जल ही नहीं रहेगा तो इस योजना को हम कैसे साहकर कर पाएंगे आज हम सभी देशवासियों चाहे वह किसी भी धर्म जाति और वर्ग का हो भारतीय होने के नाते हम सभी का कर्तव्य है कि हम नदियों का संरक्षण करें इनकी शुद्धता को बनाए रखने का प्रयास करें ताकि यह पिछले 5 दशकों से पहले शुद्धता के साथ अनवरत बहती थी उसी प्रकार से पुनः अविरल धारा के रूप में बहने लग जाए, यदि हम नदी को बचाने का कार्य करते हैं तो हम स्वयं के जीवन को बचाने का कार्य करते हैं, इस भावना को हमें जन-जन तक पहुंचाना होगा, आज सामूहिक कर्तव्य निभाने का समय आ गया है और यही समय की मांग भी है।