भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान द्वारा “बदलते हुए जलवायु परिपेक्ष के अनुकूल सोयाबीन तकनीकियाँ” विषय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन
देश में सोयाबीन फसल पर अनुसंधान और विकास गतिविधियों के समन्वय तथा विकसित उत्पादन तकनीकियों के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित
इंदौर।आई सीए आर- भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, द्वारा “बदलते हुए जलवायु के परिपेक्ष में सोयाबीन उत्पादकता बढ़ाने के लिए जलवायु अनुकूल प्रौद्योगिकियों” विषय पर तीन दिवसीय प्रशिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया. ज़ूम एप्प से ऑनलाइन के साथ साथ मध्य प्रदेश कृषि विभाग के स्थानीय अधिकारीयों सहित इस प्रशिक्षण में 11 राज्यों के 80 से अधिक सोया वैज्ञानिक, कृषि विभागों एवं कृषि विज्ञान केंद्रों के विस्तार कार्यकर्ताओं एवं आदान विक्रेताओं ने भाग लिया. ज्ञात हो कि यह कार्यक्रम राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन के तहत आयोजित किया गया था, जो केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित एक योजना है, जिसका मुख्य उद्देश्य हाल के दिनों में अनुभव की जा रही जलवायु संबंधी प्रतिकूलताओं को ध्यान में रखते हुए जमीनी स्तर के कर्मचारियों को जागरूक एवं जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों बाबत शिक्षित करना है।
प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रारंभ में, कोर्स डायरेक्टर डॉ. बी.यू. दूपारे ने इस तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल विभिन्न विषय जैसे जलवायु अनुकूल सोयाबीन की किस्में, प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों में कृषि पद्धतियाँ, विभिन्न जैविक कारक जैसे खरपतवार, कीट-पतंगों और बीमारियों के नियंत्रण हेतु विकसित तरीकों पर सम्बंधित विषय विशेषज्ञों के व्याख्यान एवं चर्चासत्र की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि इस वर्ष संस्थान ने सोयाबीन वैज्ञानिकों की प्रत्यक्ष देखरेख में कृषकों के खेतों पर लगभग 1000 अग्रिम पंक्ति प्रदर्शनों को लगाया गया था जिसमे नवीनतम सोयाबीन किस्में, विपरीत मौसम में उपयोगी सहनशील तकनिकी जैसे चौड़ी क्यारी, कुड मेड प्रणाली, जैसी नवीन पद्धतियों को भी शामिल किया जा रहा हैं.
प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन आईसीएआर-आईआईएसआर के निदेशक डॉ. के.एच.सिंह के उद्घाटन भाषण से हुआ। देश में सोयाबीन उत्पादन की प्रमुख बाधाओं पर प्रकाश डालते हुए, डॉ. सिंह ने जैविक कारकों (कीड़ों और बीमारियों) की बढ़ती घटनाओं के साथ-साथ लंबे समय तक सुखा एवं अधिक तापक्रम जैसी स्थिति प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान सोयाबीन की किस्मों के साथ-साथ प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों में भी सहन करने में सक्षम उत्पादन प्रौद्योगिकियों और तरीकों के विकास में सफल रहा है। उनके अनुसार, ब्रॉड बेड फ़रो/रिज फ़रो जैसी बुआई विधियों को बड़े पैमाने पर प्रचारित और प्रसारित करने की आवश्यकता है।
आईसीएआर-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, जबलपुर, जो कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से नवीनतम तकनीकियो का मूल्यांकन कर किसानों में प्रचार-प्रसार के कार्य हेतु प्रत्येक जिले में कार्यरत हैं, के निदेशक डॉ. एसआरके सिंह, ने भी इस अवसर पर प्रशिक्षनार्थियों को संबोधित किया. उन्होंने वादा किया कि कृषि विज्ञान केंद्र, बदलते जलवायु परिदृश्य के अंतर्गत विपरीत परिस्थियों के लिए क्रियाशील उन्नत तकनीकियो के प्रसार हेतु भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान को सहयोग प्रदान करेगा.
तीन दिवसीय प्रशिक्षण के दौरान संस्थान के पौध प्रजनक, कीट विज्ञानी, पादप रोग विज्ञानी, बीज प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों ने प्रतिभागियों से विभिन्न तकनिकी सत्रों में विस्तृत चर्चा की। इस कार्यक्रम के समन्वयक डॉ. राघवेंद्र, डॉ. राकेश कुमार वर्मा और डॉ. सविता कोल्हे ने राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में संचालित अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के वैज्ञानिक, कृषि विभाग तथा कृषि विज्ञान केन्द्रों से जुड़े विस्तार कर्मचारि सहित आदान वितरकों को सोयाबीन उत्पादकता में वृद्धि लाने हेतु किये जा रहे सामूहिक प्रयासों में सहयोग देने का आवाहन किया.