भोपाल। मध्यप्रदेश भाजपा को लेकर 26 मई को पूरे दिन अफवाह का दौर जारी रहा। प्रदेश भाजपा कार्यालय में पार्टी के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, पार्टी के प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव, प्रदेश अध्यक्ष व सांसद विष्णुदत्त शर्मा एवं प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद ने पिछड़ा वर्ग मोर्चा के पदाधिकारियों, सांसद, विधायक और निगम मंडल के अध्यक्ष- उपाध्यक्षों की बैठक को संबोधित किया। इसके अलावा भी अन्य संगठनात्मक बैठकों का दौर जारी रहा। तो दूसरी तरफ सोशल मीडिया ने प्रहलाद पटेल को मध्यप्रदेश भाजपा का नया अध्यक्ष ही बना डाला। बधाईयों का दौर जारी हो गया। भाजपा की वरिष्ठ नेता उमा भारती और प्रहलाद पटेल का सालों पुराना वह फोटो वायरल हो गया, जिसमें वह प्रहलाद का मुंह मीठा करा रही हैं। इस तरफ मुद्दे से जोड़ते हुए ध्यानाकर्षित कराया गया तो किसी ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का राम भजन सुखदाई, भजन करो भाई, यह जीवन दो दिन का… गाने वाला वह वीडियो वायरल कर दिया, जो उन्होंने महीनों पहले विदिशा की कथा में गाया था। और शुरू हो गया चटकारे का दौर। कैलाश विजयवर्गीय भोपाल आ रहे हैं, इसको भी लोगों ने मुद्दा बना लिया। अब कैलाश विजयवर्गीय दो दिन पहले नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद पटेल के साथ भी भोपाल पहुंचे थे। इससे पहले सागर जिले के विधायक शैलेंद्र जैन, प्रदीप लारिया, भाजपा जिलाध्यक्ष, दो कद्दावर मंत्री गोपाल भार्गव और गोविंद सिंह राजपूत मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिले थे और जो कहानी सामने आई थी, उसे मंत्री भूपेंद्र सिंह के खिलाफ शिकायत करने और इस्तीफा देने तक की बात कही जा रही थी। हालांकि बाद में गोपाल भार्गव ने पार्टी में सभी के एकजुट होने की बात कही थी और गोविंद सिंह राजपूत ने भी कुछ इसी तरह का बयान दिया था। हालांकि बात यहीं नहीं थमी और गोविंद सिंह राजपूत के बेटे आकाश का ट्वीट चर्चा में आ गया कि “अच्छा है हम खुरई में नहीं है वरना बात करने पर ही जेल चले जाते”। इसका स्क्रीनशॉट वायरल हुआ था, क्योंकि आकाश ने ट्वीट को डिलीट कर दिया था। तो सागर महापौर के पति सुशील तिवारी को नोटिस जारी किया गया है। वजह उन पर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ अनर्गल बातें लिखने का आरोप है। तीन दिन के अंदर सुशील तिवारी से जबाव मांगा गया है और सुना है कि उन्होंने जवाब भी दिया।
तो गुना सांसद केपी यादव की नाराजगी और बेबाक बयानी सामने आई है। इसमें उनके संसदीय क्षेत्र में यादव समाज के उस कार्यक्रम का जिक्र है, जिसमें केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया शामिल हुए। इस कार्यक्रम में सांसद केपी यादव को नहीं बुलाया गया और उपस्थित वक्ताओं ने यह भी कहा कि 2019 में भूल हुई है। क्षेत्रीय सांसद के नाते यादव की प्रतिक्रिया सामने आई। फिलहाल राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश द्वारा केपी यादव को नसीहत और हिदायत देने की बात सामने आई है और बाद में केपी यादव ने मैसेज दिया है कि “आल इज वेल”। तो सिंधिया समर्थकों के गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया की दावेदारी पर खुलकर बोल रहे हैं और केपी यादव पर हमला करने से भी परहेज नहीं कर रहे हैं।
यह सभी वाकये साबित कर रहे हैं कि *भाजपा सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान और संगठन के मुखिया विष्णु दत्त शर्मा में पार्टी के भीतर होने वाली गतिविधियों, मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के देव दुर्लभ कार्यकर्ताओं और नेताओं के मन की असंतुष्टि को सरकार और संगठन के स्तर पर समाधानपरक स्थिति तक ले जाने मैं असफल रहे हैं।*
*वही पार्टी 5 प्रभारी अनुशासन बनाए रखने की कार्यवाही करने में भी अक्षम रहे है और डैमेज कंट्रोल की रणनीति पर भी अक्षमता का अहसास करा रही है।*
पिछले कुछ वर्षों का भारतीय जनता पार्टी सरकार और संगठन का कार्यकाल को देखा जाए तो पहली बात यह कि शिवराज के साथ नरेंद्र सिंह तोमर की जोड़ी परिणामदायी रही है।2018 में मार्च के चुनावी दौर में नरेंद्र सिंह तोमर भी पूरे समय सक्रिय और प्रमुख भूमिका में रहे थे और इस बार के चुनाव में भी उनकी भूमिका अहम मानी जा रही है।
दूसरी प्रमुख बात यह है कि मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में नरेंद्र सिंह तोमर की प्रत्यक्ष या परोक्ष भूमिका शिवराज के मुख्यमंत्री बनने के बाद हमेशा ही रही है और इस बार भी रहने वाली है।
इसके बाद भी पार्टी में सामूहिक फैसले की परंपरा है। कैलाश विजयवर्गीय हों, प्रहलाद पटेल हों, फग्गन सिंह कुलस्ते हों, सत्यनारायण जटिया हों या फिर डॉ. नरोत्तम मिश्रा सहित अन्य नेता…सबकी राय फैसलों में अहम मानी जाती है और निर्णायक फैसला भी सबकी राय को समाहित करने वाला ही होता है। ऐसे में ऐन चुनाव के वक्त प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर चेहरे का बदलाव भाजपा कार्यकर्ताओं मैं नई ऊर्जा का संचार लाने का काम ही करेगा। वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी मध्य प्रदेश के सभी कार्यकर्ता सरकार और संगठन में अब मध्यप्रदेश में बदलाव की और इसी आशा के साथ देख रहे हैं है। पिछले कुछ राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव को देखें तो वहां भी केंद्रीय नेतृत्व में आखिर के 6 महीने में ही भारतीय जनता पार्टी के संगठन और सरकार में परिवर्तन किए हैं जिसमें कर्नाटक को छोड़कर सब जगह भाजपा को सफलता मिली है ….अब किसी भी तरह का असमंजस भाजपा की सेहत की उपेक्षा वाला साबित हो सकता है, इसलिए भाजपा के केंद्रीय नेताओं को चाहिए कि आने वाले 7 दिन के अंदर मध्य प्रदेश भाजपा के लिए सही और उचित निर्णय लेकर कार्यकर्ताओं को सही दिशा निर्देश देने का कार्य करें।