गीता भवन में भागवत ज्ञान यज्ञ के दौरान रुक्मणी विवाह का उत्सव मना धूमधाम से – आज समापन, फूलों की होली
इंदौर, । जीवन में दया, करूणा और परमार्थ जैसे गुण होना चाहिए। परमात्मा अक्रूर अर्थात जो क्रूर नहीं है, उन्हीं को मिलते हैं। समाज में कंस की प्रवृत्ति तब भी थी और आज भी है। दुष्ट व्यक्ति कभी भी कहीं भी हो सकते हैं। रुक्मणी का विवाह भगवान के मन में नारी के प्रति मंगल भाव का सूचक है। भारतीय विवाह संस्कार पद्धति समाज को मर्यादा और शालीनता में बांधे हुए है।
श्रीधाम वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने आज गीता भवन सत्संग सभागृह में चल रहे श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ में उक्त दिव्य बातें कहीं । कथा में आज रुक्मणी विवाह का उत्सव धूमधाम से मनाया गया। जैसे ही कृष्ण और रुक्मणी ने एक-दूसरे को वरमाला पहनाई, समूचा सभागृह बधाई गीतों और भगवान के जयघोष से गूंज उठा। कथा शुभारंभ के पूर्व व्यासपीठ का पूजन समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, टीकमचंद गर्ग, विष्णु बिंदल, राजेश गर्ग केटी, श्याम अग्रवाल मोमबत्ती, अरविंद बागडी, किशोर गोयल,राधेश्याम शर्मा गुरुजी, दीपचंद गर्ग, बी. आर. गोयल, राजेश बंसल आदि ने किया।