देश में भ्रष्टाचार अपरम्पार

हमारे देश में व्याप्त भ्रष्टाचार पर कई बार लिखा जा चुका है किन्तु आए दिन भ्रष्टाचार की खबरंे जिस तरह से आती है। उन्हें जानकर एक बार फिर इसी विषय पर कलम चलाने की भावना प्रबल हो रही है। सच कहा जाए तो देश का आम नागरिक भ्रष्टाचार भुगत रहा है। गरम हवा की तरह, जिसे लू कहते हैं, भ्रष्टाचार देश के अधिकतर नागरिकों को तपा रहा है। अगर ऐसे व्यक्ति को ढूंढने का प्रयास करें जिसने कभी भी रिश्वत न दी हो तो ‘ाायद सफलता मिलना मुश्किल है। अभी तो प्रेरणा उन महिला इंजीनियर से मिली जिसका मासिक वेतन केवन 30 हजार है, परन्तु फॉर्म हाउस पर कुत्ते 50। उनकी धन सम्पदा का विवरण समाचार पत्रो में आ ही रहा है। उनकी भ्रष्टाचार की शिकायत 2020 से हो रही थी, कार्यवाही अब हुई। कितनी तेज गति से कार्यवाही हुई। अगर यह जानने का प्रयास करें कि भ्रष्टाचार कौन कौन से सरकारी विभागो में है तो कुछ कोशिश करने की आवश्यकता नही है। सभी जानते हैं। फिर भी थोड़ी चर्चा हो जाए।
प्रारम्भ राजनीति से करते हैं। आज की राजनीति भ्रष्टाचार की वैतरणी है। उसे गंगा नही कहंेगे। गंगा तो तमाम गंदगी को ग्रहण करने के बाद भी पवित्र बनी हुई है। हमारे राजनीति वाले भी यही प्रयास करते हंैंं। पार्षद् जैसे निचले पद पाने वालों को भी 5 साल में बदलते देखा है। टूटी छत सुन्दर मकान में बदल जाती है। जैसे जैसे व्यक्ति सत्ता की पायदान चढ़ता है आर्थिक उन्नति की गति उतनी ही तेज होती जाती है। हम सब लोग ऐसे कई राजनीति में सफल भाग्य‘ााली को जानते हैं। पैसा, पुरूषार्थ और उगंली पकड़ कर उपर उठाने वाला चाहिए। इस त्रिवेणी का संगम हो गया तो आंनन्द ही आनन्द। कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने 40 प्रतिशत कमीशन को ही मुद्दा बनाया था। ‘शायद इसीलिए सफल भी हो गए।
अब चर्चा सरकारी विभागों की भी कर ले। प्रेरणा भी तो एक सरकारी अधिकारी से ही मिली है। सरकारी विभागों के बारे में क्या बात करंे।ं हरी अनन्त हरी कथा अनन्ता। जिसके यहां भी छापे पड़ते है अपार धन मिलता है। ऐसा लगता है भ्रष्टाचार करने की प्रतियोगिता चल रही है। ऐसा सरकारी विभाग ढूंढना सम्भव नहीं जहां भ्रष्टाचार न होता हो। मिडिया सब जानता है। कुछ विभाग के बारे में तो यहां तक कहा जाता है कि वह कुर्सी एक लाख रूपये प्रतिदिन की है। तीरथ जा रहे हो और रिर्जवेशन ना हो तो वहां भी सीट के लिए भेंट देनी पड़ती है। परन्तु इस भ्रष्टाचार की बाढ़ में ईमानदार अफसर भी देखे हैं। जो न रिश्वत लेते है, न दबाव में आते हैं। वह भी ऐसे विभागों में जो भ्रष्टाचार के लिए बदनाम हैं।
कुछ समय पूर्व तक यह माना जाता था कि पुरूष अधिकारी भ्रष्टाचार करते हंै और महिलांए नही। अब यह अंतर नही रहा। रहंे भी क्यों ? सबको समानता का अधिकार है। हमारे दिवंगत आयकर अधिकारी मित्र कहा करते थे कि यदि कोई पुरूष अधिकारी भ्रष्टाचार न करें तो पत्नी दबाव डालती है। कहती है सब करते हैं आप क्यों नही करते? हम क्यों तंगी में रहें? हमारा सामाजिक परिवेश भी भ्रष्टाचार के लिए उत्तरदायी है। व्यक्ति कैसे भी पैसा कमा ले समाज में उसका रूतबा बढ़ जाता है। आदर सम्मान होने लगता है। हमारे अधिकतर साधु संत भी धन वालो को ही महत्व देते हैं। भ्रष्टाचार के जो किस्से आए दिन सामने आते है उनसे हम थोड़े समय के लिए ही दुखी तो होते है। समाज के कर्णधार न इस पर विचार करते है और न इसे रोकने का कोई प्रयास। असल में भ्रष्टाचार उचित संस्कार की कमी के कारण ही होता है। वर्तमान समाज में पैसा ही सर्वपरि माना जाना लगा है। धन से कुछ भी पाना कठिन नही है। इसे बदलने के लिए एक बड़ी वैचारिक समाजिक क्रान्ति की आवश्यकता है। इतिहास ने बड़ी सामाजिक क्रान्ति को भी मार्ग से भटकते देखा है। ऐसा लगता नही कि देश में भ्रष्टाचार कम होगा, समाप्त होना तो दूर की बात।

प्रो.डी.के शर्मा, रतलाम