“अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस”
लेख-: धर्मेंद्र श्रीवास्तव,
अबला नहीं,
सबला है,
महिला,
ब्रह्मांड अस्तित्व का मूल है,
महिला….
“यत्र नारी पूज्यंते तत्र देवता रमंते”
वेदों का सार है,
स्त्री…..
महिला दिवस उत्सव सही मायने में मनाने के लिए एक जीवन न्यून है,
साहस, संभल, एकाग्रता, धैर्य, पुत्री, माता, स्त्री, हर रूप में एकजुटता मनोबल सर्वस्व है, नारी उमंग और उल्लास है,
नारी पृथ्वी का धन है,
नारी सृजन है,
नारी परंपरा उत्सव संस्कृति का निर्वाह है,
नारी ढोल की थाप, बांसुरी की धुन है,
महिला जीवन के क्षण प्रति पल बदलने वाले नवरसो का सार है,
महिला सूर्योदय,
महिला सूर्यास्त है,
महिला पूर्णिमा का चंद्रमा है,
महिला प्रातः दोपहर और संध्या है,
महिला शक्ति का सार है,
महिला हिंदू सनातन संस्कृति और धर्म में आने वाली चारो नवरात्रा है,
महिला अपराजिता है,
महिला गर्भस्थ शिशु को जन्म देने के बाद असहनीय पीड़ा को सहकर बिना मृत्यु का ग्रास बने, दूसरे जन्म का प्रमाण है,
महिला…….
परिवार समाज और सर्वत्र सार्वभौमिक रूप से सभी को जोड़े रखना सम्बल नैसर्गिक गुण का प्रमाण है,
महिला अखिल ब्रह्मांड के साथ-साथ सृष्टि का सार है,
महिला नदियों का कल कल स्वर है,
महिला भक्ति संगीत नृत्य गायन सामाजिक पारिवारिक मांगलिक उत्सव का अभिन्न अंग है,
महिला नवरंगो का आभास है,
महिला अपने पारिवारिक जीवन में कभी ना छुट्टी पर जाने वाली कार्य करता है, महिला दीपावली के दीप का प्रकाश महिला होली के रंग-बिरंगे उत्सव का आभास है,
महिला जप तप हवन पूजन की पूर्णता है,
महिला शिव के अर्धनारीश्वर अवतार का मूल आधार है,
महिला सर्वशक्ति का प्रमाण है,
तब होगा महिला दिवस संपूर्ण विश्व में सार्थक जब महिलाएं संपूर्ण विश्व में दिन हो या रात हो, सुरक्षित तरीके से स्वतंत्र रूप से कहीं भी अकेली आ जा सकेगी (बलात्कार) नामक शब्द कानून की किताब से जिस दिन स्वत: समाप्त हो जाएगा, उस दिन सही अर्थों में अखिल ब्रह्मांड में महिला दिवस का मूल सार प्रकट होकर सामने आएगा,
(विश्व महिला दिवस)
की अखिल ब्रह्मांड में यत्र तत्र विचरण कर रही,
समस्त महिलाओं को हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई……