परमात्मा अथवा प्रसिद्धि निर्णय हमारा, भीड़ अथवा समूह, सम्मिलित होना निर्णय हमारा….

धर्मेंद्र श्रीवास्तव……. 
ईश्वर प्राप्ति दिखावे से परे है, 
यदि ईश्वर को दिखावा प्रिय होता तो वह महाभारत काल में पांडवों के साथ नहीं होते जो एक छोटा सा समूह था,
वह कौरवों की भीड़ में सम्मिलित हो जाते……. ईश्वर प्राप्ति गुप्त भक्ति से ही सरल, सहज और सुलभ होती है, भीड़ भाड़ का हिस्सा बनना मृत्यु को निमंत्रण है, निर्णय हमें करना है, कि हमें भीड़ का हिस्सा बनना है, या समूह का,

रावण के पास  राक्षसों की भीड़ थी वही श्री राम एक छोटे से बंदरों के समूह में अपने आप को लीन रखते थे,

भीड़ में हमेशा बावला पन होता है,

समझ और बुद्धि की कमी होती है, भीड़ के लोग  स्वार्थ को साथ में लेकर चलते हैं, उनके पास अपना कोई सिद्धांत नहीं होता स्वार्थ से बंधे हुए होते हैं, समूह भले ही छोटे स्वरूप में हो किंतु विवेक पूर्ण होता है, वही भीड़ में दुर्भाग्य सरलता से जगह बना लेता है, जिसका परिणाम भगदड़ है, और समूह शांति का प्रतीक होता है, इस समय भारत भर में धर्म के नाम पर भीड़ लगी हुई है, सभी छोटे बड़े पदों पर रहने वाले स्वार्थ की पूर्ति के लिए भीड़ का हिस्सा बनते जा रहा है, उन्हें लगता है, कि हम भीड़ भरे मंच पर खड़े होकर प्रसिद्धि प्राप्त कर लेंगे, और हमारा स्वार्थ सिद्ध हो जाएगा यहां भीड़ का हिस्सा बनने पर केवल और केवल स्वार्थ सिद्ध होगा ईश्वर प्राप्ति कतई नहीं, हमें इतना ही करना है कि समूह का हिस्सा बनके ईश्वर को प्राप्त करना है, या भीड़ का हिस्सा बनकर प्रसिद्धि,

उपरोक्त दोनों ही मार्ग धर्म की गली से होकर कर जा रहे हमें निर्णय करना है, भीड़ से दुर्गति या समूह से सद्गति प्राप्त करना है,

हमें प्राप्त परिणाम मैं दूसरों की व्यवस्था पर दोष नहीं मडना चाहिए नहीं घटी घटना को ईश्वरीय कारण, दुर्घटना और अव्यवस्था को लेकर  ना तो भगवंत दोषी है,

ना संत, भीड़ का हिस्सा हम स्वयं ही बने हैं और भीड़ में पहुंचे है भीड़ रूपी सागर में जब हम ही डुबकी लगा रहे है तो तैरने और डूबने का कारण भी हम ही है, इससे प्राप्त हुई पीड़ा का कारण दूसरों के नाम क्यों करें,

परमात्मा अथवा प्रसिद्धि निर्णय हमारा,

भीड़ अथवा समूह,

सम्मिलित होना निर्णय हमारा……