शिव से जुड़कर हम सब भी शिव बनें, यही इस कथा का संकल्प

इंदौर,  । इस सृष्टि में जो कुछ है, वह शिव का है, शिव से है और शिव में है। शिव के कई अर्थ माने गए हैं। शिव तत्व का सार यही है कि यहां जो कुछ है, शिव ही शिव है। शिव से जुड़कर हम सब भी शिव बने, यही इस दिव्य अनुष्ठान का दिव्य संकल्प है। विडंबना यह है कि हम शिव पुराण सहित सारी कथाओं को सुन तो लेते हैं, स्वयं के ध्यानमग्न होने का प्रदर्शन भी करते हैं, लेकिन इन कथाओं के माध्यम से अपने आचरण को पवित्र बनाने का प्रयास नहीं करते। मन की पवित्रता के लिए शिव की आराधना को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। हमारा श्रवण तभी सार्थक होगा, जब हम कथा के संदेशों को अपने अंतर्मन में उतारेंगे।

ये दिव्य विचार हैं वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद महाराज के जो उन्होंने गुरुवार को गीता भवन के सत्संग सभागृह में शिव पुराण कथा के दौरान विभिन्न प्रसंगों की व्याख्या करते हुए व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष राम ऐरन,  श्याम मोमबत्ती,  अन्नपूर्णा मंदिर के ट्रस्टी श्याम सिंघल, अग्रवाल समाज के अध्यक्ष राजेश बंसल, राजेश गर्ग, महेश चायवाले,  किशोर गोयल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। कथा में भगवान गणेश का जन्मोत्सव भी धूमधाम से मनाया गया।  कथा समापन प्रसंग पर अन्नपूर्णा मंदिर के नवश्रृंगारित स्वरूप में योगदान के लिए वरिष्ठ समाजसेवी प्रेमचंद गोयल का अन्नपूर्णा आश्रम के ट्रस्टी श्याम सिंघल एवं संचालन समिति के किशोर गोयल ने महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद के सानिध्य में मंदिर का मॉडल भेंटकर सम्मान किया।

आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने कहा कि मन की मलीनता को धोने का सबसे सरल उपाय शिव पुराण है। हम सत्संग के बजाय कुसंग का चिंतन करेंगे तो काम और मित्र के बजाय शत्रु का ध्यान करेंगे तो क्रोध बढ़ेगा। लगन और निष्ठा के बिना भक्ति नहीं हो सकती। पुण्य की पात्रता केवल मनुष्यों को ही है, पशुओं को नहीं। जो समाज नीति और मर्यादा के मार्ग पर नहीं चलता है, वह पशुवत माना जाता है। भारतीय शास्त्रों में शिव पुराण को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। अंतःकरण की पवित्रता के लिए शिव की आराधना सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। हमारे संकल्प और विश्वास में दृढ़ता होना चाहिए। भगवान शंकर देवों के देव महाधिदेव हैं। उनके निराकार और साकार रूप जीव मात्र के कल्याण के लिए ही हैं