महिला बाल विकास विभाग इंदौर की संवेदनशीलता से एक ट्रांसजेंडर को मिला घर में रहने का अधिकार

वन स्टॉप सेंटर का ट्रांसजेंडर को समाज द्वारा स्वीकृत करवाने का प्रयास*

इंदौर ।वर्तमान में महिला हेल्प लाइन नंबर द्वारा परेशान और पीड़ित व्यथितों (महिलाओं)की सुनवाई होकर उन्हें न्याय, समाधान और सहायता दी जाती है।
इसी कड़ी में एक ट्रांसजेंडर द्वारा घरेलू हिंसा से संबंधित प्रकरण के निराकरण हेतु महिला हेल्प लाइन 181 में पंहुचा। जिसकी गंभीरता को देखते हुए महिला हेल्प लाइन 181 द्वारा परामर्श के लिए महिला बाल विकास विभाग के कार्यालय वन स्टॉप सेंटर(सखी) भेजा गया।
जिला कार्यक्रम अधिकारी श्री रामनिवास बुधौलिया एवम वन स्टॉप सेंटर की प्रशासक डा वंचना सिंह परिहार ने मामला सुनकर, परिजनों से चर्चा की।
केस वर्कर सुश्री शिवानी श्रीवास ने तुरंत कथन दर्ज किए और अगले ही दिन प्रीतम ऊर्फ प्रीति को परामर्श का समय दिया गया।

परामर्शदात्री सुश्री अलका फणसे ने पहले तो प्रीति की व्यथा सुनी और परिवार से मिल रहा तिरस्कार ,अपमान उसे किस तरह परेशान कर रहा है और जिंदगी किस तरह मुश्किल हो रही है यह प्रीति ने बयान किया।
एक घंटे चले वेंट आउट सेशन के उपरांत अगले सत्र में पररशदात्री ने जानने की कोशिश की कि प्रीति क्या चाहती है।
प्रीति चाहती थी की परिवार उसे सामान्य इंसान की तरह स्वीकार करे और सम्मान से जीने दे।
पिता के मकान में सभी रह रहे हैं तो उसे भी अधिकार पूर्वक घर में रहने दे।प्रीति ने बताया की बड़ा भाई मारपीट करता है, मेरे कपड़े उतार कर चेक करता है।
मुझे घर से निकाल दिया तब मैंने पुलिस स्टेशन में आवेदन किया तब मुझे एक टीन की छत वाला कमरा दे दिया।जिसमे अटाला भरा पड़ा है। साथ ही बहन ने मेरे कंप्यूटर को नुकसान पहुंचाया।
प्रीति ने बताया एमएसडब्ल्यू किया है, और प्राइवेट कंपनी में 22,000 रू प्रतिमाह की नौकरी कर रही हूं।
ऑनलाइन काम रहता है।पिता ने 2, मंजिला मकान बना रखा है, बड़ा भाई परिवार के साथ ऊपर रहता है,साथ ही किरायेदार भी हैं।
निचले तल पर मां और बहन रहती है, वहीं एक गराज है जो बागा भाई चलाता है उसके पास एक टीन की छत वाला कमरा है जिसमे अटाला भरा है मुझे वहां रहने पर मजबूर किया जा रहा है और मुझे बहुत अपमानित किया जा रहा है।
प्रीति के परिवार को बुलाया गया, भाई बहन और मां।
सभी के साथ परामर्श सत्र हुआ, फिर प्रीति के साथ संयुक्त परामर्श सत्र रखा गया।
आज भी समाज में जागरूकता की कमी है, लोगों को लगता है की यह व्यक्ति अपनी मर्जी से चुनता है की वह लड़की होगा या लड़का।
यह जागरूकता जरूरी है की यह प्रकृति प्रदत्त है।
प्रीति की मां को समझाया गया की प्रीति के ट्रांसजेंडर होने में उसका दोष नही है, अपितु किसी का दोष नही है। कहने को तोबाप भी दोषी कहला सकते हैं क्योंकि आपने उसको जन्म दिया है।
कोई इंसान ऐसी जिंदगी क्यों चुनेगा जिसकी सेक्सुअल ओरिएंटेशन को समाज की मान्यता ही नहीं है।
प्रीति खुदसे एक लड़ाई लड़ रही है साथ ही समाज से भी।
अगर मां होने के नाते आप भी नही समझोगे तो तो तीसरे मोर्चे पर भी उसे लड़ना होगा।
वो किन्नरों के समूह में शामिल होकर जिंदगी बसर नही करना चाहती। वह पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी है तो आपको उसपर फख्र होना चाहिए।
मां को तो बात समझ आई पर भाई की समझ काम पड़ी।
तब भाई को आगाह किया गया की अगर हाथ उठाया या अपमानित किया तो सख्त कार्यवाही की जाएगी।
मां की सहमति से ऊपरी तल का किराए का कमरा खाली कर प्रीति को दिलवाया गया। बहन जो खुद भी जॉब कर रही थी और प्रीति से बड़ी थी उसे भी भाई को जैसा है उसी तरह मान्य कर प्रेमपूर्वक रहे।
प्रीति ने मां को हरा 2000 रू खर्चे के लिए साथ ही आपने हिस्सेवका बिजली बिल भरने और अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह उठाने पर सहमति जताई।
इस समझाइश के साथ की अपने व्यक्ति को आप भी सामान्य मान कर कबूल करो और साथ ही समाज को भी यह संदेश दो की प्रीति जैसे व्यक्ति को समाज में मान्यता देना आवश्यक है और यही इंसानियत भी होगी।
इस तरह पूर्ण परिवार समाधान के साथ रवाना हुआ।