समाज के अंतिम छोर तक सत्ता की छाया पहुंचे , यही राम राज्य का मुख्य प्रयोजन

इंदौर,। भगवान राम जैसा आदर्श चरित्र दुनिया में कहीं नहीं मिल सकता। उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम इसीलिए कहा जाता है कि उनसे श्रेष्ठ मर्यादित आचरण किसी और का नहीं हो सकता। रावण के साथ भी उन्होंने शत्रुता का व्यवहार नहीं किया। मानस के प्रत्येक कांड और प्रसंग को देखें तो निश्चित ही यही सीख मिलती है कि प्रेम, करुणा और स्नेह की रसधारा उन लोगों तक जरुर पहुंचना चाहिए, जो इसके वास्तविक हकदार हैं। राम यदि वनवास नहीं जाते तो न तो उन्हें हनुमान मिलते और न ही वनवासी और आदिवासी। राम राज्य का मुख्य प्रयोजन यही है कि समाज के अंतिम छोर तक सत्ता की छाया पहुंचना चाहिए।
झांसी के तपोनिष्ठ संत बाबा रामदास ब्रह्मचारी के, जो उन्होंने बर्फानी धाम के पीछे स्थित गणेश नगर में माता केशरबाई रघुवंशी धर्मशाला परिसर के शिव-हनुमान मंदिर की साक्षी में रामकथा के समापन एवं राम राज्याभिषेक के उत्सव के दौरान उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए। कथा में पंचकुइया राम मंदिर के महामंडलेश्वर स्वामी राम गोपाल दास महाराज के सानिध्य में रामराज्याभिषेक उत्सव भी मनाया गया । आयोजन समिति की ओर से तपोनिष्ठ संत का शाल-श्रीफल भेंटकर सम्मान किया गया। महामंडलेश्वर एवं संत महंतों का भी सम्मान किया गया।
विद्वान वक्ता ने कहा कि राम राज्य में सभी धर्मों का सम्मान होता था। राजा सभी धर्मों के लोगों की बात सुनते थे।पुण्य से स्वर्ग मिल सकता है, ईश्वर नहीं। देव की देहरी पर बुझे हुए दीपक नहीं रखे जाते। जहां प्रकाश नहीं होता, वहां का जीवन प्रमाद या नींद में होता है, जिसके जीवन में प्रकाश है वही दिव्यवान होता है, क्योंकि प्रकाश में चैतन्यता और सत्यता है। भगवान राम ऐसे कुलदीपक हैं जो स्वयं जलकर दूसरों के जीवन में धन्यता और दिव्यता का आलोक फैलाते हैं।हमारी जीवन शैली और चरित्र भी उसी आभायुक्त दीपक की तरह होना चाहिए। मान और सम्मान उन्हीं का होता है, जो त्याग करते हैं। राम इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं जिन्होंने राजपाट छोड़कर 14वर्ष के वनवासकाल को सार्थक बनाया। राम के चरित्र में कहीं भी दोष नहीं है। वे निर्दोष हैं। उन्होंने लोकहित को ही सर्वोपरि माना और यही रामराज्य की आधारशिला है।