इंदौर, । कई लोग जीवनभर स्वभाव नहीं बदलते और दुख पाते रहते हैं। दुख को सुख में बदलने के लिए वे कभी घर बदलते हैं तो कभी वस्त्र। वास्तविकता तो यह है कि दुख का कारण न घर है और न ही वस्त्र। ऐसे लोग अपने स्वभाव के कारण ही दुखी रहते हैं। घर के मंदिर बनाना है तो स्वभाव बदलें, घर नहीं। भक्त नृसिंह मेहता ने भगवान के दर्शन पाने के बाद अपने स्वभाव को बदला। उनके पास भगवान द्वारा दी गई अथाह संपत्ति थी, लेकिन उन्होंने उसका सदुपयोग किया। संपत्ति का दुरुपयोग करेंगे तो हमारे दुख का कारण वही संपत्ति बन जाएगी। स्वयं का आत्म अवलोकन भी करते रहना चाहिए कि कहीं जाने-अनजाने में हमारे आचरण और व्यवहार से किसी को तकलीफ तो नहीं हो रही।
श्रीधाम वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद के सानिध्य में साध्वी कृष्णानंद ने गीता भवन में नानीबाई के मायरे की कथा में उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। प्रारंभ में श्रीमती कनकलता-प्रेमचंद गोयल, श्रीमती कृष्णा-विजय गोयल, श्रीमती मोहिनी-दीपचंद गर्ग, श्रीमती अंजलि श्याम अग्रवाल मोमबत्ती एवं श्रीमती शुचिता-आशीष अग्रवाल, राजेश बंसल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। कथा में शंभूदयाल राखोड़ीवाले, राजाराम पाटीदार, नेमीचंद पाटीदार, शिव जिंदल, संजय मंगल सहित विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि भी मौजूद थे जिन्होंने आरती में भाग लिया।
साध्वी कृष्णानंद ने कहा कि सुख और शांति चाहिए तो दूसरों को नहीं, अपना अवलोकन करें। हम खुद कैसा आचरण और व्यवहार करते हैं, इसकी भी परख हमें करना चाहिए। माता-पिता भी ध्यान रखें कि हमारे बच्चे किस तरह का व्यवहार कर रहे हैं। बच्चे आपकी धन, संपत्ति का दुरुपयोग न कर पाएं, इस पर भी निगाह रखना होगी। माना जाता है कि धन कई बुराइयों को जन्म देता है। यदि आपके पास अपने पुण्यों के फल के रूप में धन आया है तो उसका उपयोग धर्म और सेवा के कार्यों में भी करना चाहिए। आपके पुरुषार्थ और भाग्य से मिला धन बर्बाद न हो, उससे किसी को कष्ट न हो इसका भी ध्यान रखना होगा। भक्त नृसिंह मेहता की बेटी नानीबाई को विवाह में अथाह धन दिया था, लेकिन ससुरालवालों ने लोभ के चलते जीवन भर उसे यातनाएं देकर प्रताड़ित किया तब स्वयं भगवान सांवरिया सेठ बनकर नानीबाई का मायरा भरने पहुंचे। रविवार को यह कथा सुनाई जाएगी।