भक्ति में परिपूर्णता रामकथा से ही मिलेगी – दीदी मां

इंदौर, । मनुष्य जीवन के लिए ज्ञान आवश्यक है, लेकिन यदि ज्ञान के साथ भक्ति होगी तो अहंकार और अभिमान से व्यक्ति बच सकता है। बड़े-बडे संत और महापुरुष ज्ञान प्राप्त करने के बाद भी अभिमान के शिकार हो गए, क्योंकि वे ज्ञान के साथ भक्ति मार्ग पर नहीं चले। हमारी भक्ति अविरल और निर्मल होना चाहिए। आजकल तीर्थ यात्राएं भी पर्यटन की तरह हो गई है। सनातन धर्म की मान्यता है कि पवित्र नदियों में स्नान करने से हमारे पाप, ताप और संताप दूर हो जाते हैं। गंगा, यमुना और सरस्वती क्रमशः भक्ति, कर्म और ज्ञान की प्रतीक हैं। संत और वसंत एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। जहां संत होंगे, वहां वसंत भी होगा। भक्ति में परिपूर्णता रामकथा से ही मिलेगी।

       प्रख्यात राम कथाकार दीदी मां मंदाकिनी श्रीराम किंकर ने आज संगम नगर स्थित श्रीराम मंदिर पर श्रीराम शिवशक्ति मंदिर शैक्षणिक एवं पारमार्थिक समिति के तत्वावधान में चल रही रामकथा में शिव महिमा की व्याख्या के दौरान उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए।  प्रारंभ में  राज्य की संस्कृति मंत्री सुश्री उषा ठाकुर, डॉ. विनायक पांडे, अनूप जोशी आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। सुश्री उषा ठाकुर ने कथा का श्रवण भी किया।

       देश-विदेश के अनेक मंचों से रामकथा की हिन्दी, अंग्रेजी, फ्रैंच, गुजराती एवं मराठी भाषा में पूरी निपुणता से प्रस्तुति देने वाली दीदी मां ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास ने संतों के समागम को आम्रकुंज कहा है। श्रद्धा ऋतुराज वसंत की तरह है। संत और वसंत दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। जहां बारहमासी बसंत हों, वह जगह संतों के समागम की ही हो सकती है। केवल ज्ञान से अहंकार की उत्पत्ति होती है, लेकिन यदि ज्ञान के साथ भक्ति भी होगी तो ऐसी भक्ति अभिमान से बचा लेगी। आजकल समाज में कथाएं तो बढ़ गई हैं, लेकिन उनका उतना लाभ समाज को नहीं मिल पा रहा है। सारे शास्त्र ईश्वर की सत्ता को सर्वोपरि और सर्वव्यापी मानते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के मन में भी ईश्वर विराजित हैं। हम अंतिम यात्रा में भी राम नाम सत्य बोलते हैं लेकिन अंदर कोई भ्रम की गांठ है जो हमें अपने आचरण में राम नाम के सृजन से रोकती है। यह गांठ या भ्रम ही अज्ञान है और जहां अज्ञान है, वहां अंधकार है। अंधकार के कारण ही हमें अपने दोष दिखाई नहीं देते। श्रद्धा और विश्वास से भक्ति होगी तो यह अज्ञान भी दूर हो जाएगा।