नवरात्रि :.. अष्टमी व नवमी को कन्या पूजन,कुल देवी पूजन व दुर्गासप्तशती से हवन होगा ,नवदुर्गास्वरूप नव कन्या पूजन से सभी मनोरथ पूर्ण होते है।* आचार्य पण्डित रामचंद्र शर्मा वैदिक,अध्यक्ष मध्यप्रदेश ज्योतिष एवं विद्वत परिषद। नवरात्र में दो दिवस महाअष्टमी व दुर्गा नवमी ये दो तिथियां अत्यंत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है।देवी भक्त अपनी अपनी कुल परम्परा के अनुसार *अष्टमी या नवमी को कुलदेवी पूजन के साथ कन्या पूजन भी करते है।कन्या पूजन से माँ की प्रसन्नता प्राप्त होती है।नवरात्र में नवदुर्गा स्वरूपा दो से दस वर्ष तक की कन्या के चरण धोकर नव कन्याओं की पंचोपचार विधि से पूजा अर्चना कर उन्हें मिष्ठान्न भोजन कराया जाता है।देवी भागवत आदि पुराणादि धर्मशास्त्रीय गर्न्थो के अनुसार कन्या पूजन करने का विशेष महत्व है। अष्टमी व नवमी को दुर्गासप्तशती के सात सौ महामंत्रों दे भगवती की कृपा प्राप्ति हेतु देवी भक्तों के परिवार एवं देवी मंदिरों में विधि विधान व विशेष आहुश के साथ हवन पूजन होता है। नवदुर्गा स्वरूप में नव कन्याओं की पूजा करने का शास्त्रीय विधान है,। *एक* कन्या के पूजन से *ऐश्वर्य* की; की प्राप्ति होती है,*दो* कन्या के पूजन से *भोग* व *मोक्ष* की; *तीन* कन्या के पूजन से *धर्म, अर्थ, काम* की; *चार* कन्या के पूजन से *राज्य पद* की; *पॉंच* कन्या के पूजन से *विद्या* की; *छ:* कन्या पूजन से *षट्कर्म सिद्धि* की; *सात* कन्या के पूजन से *राज्य* की; *आठ* कन्या के पूजन से *सम्पदा* की तथा *नौ* कन्या के पूजन से *पृथ्वी के प्रभुत्व* की प्राप्ति होती है।आचार्य शर्मा वैदिक ने बताया कि
दो वर्ष की कन्या *कुमारी*, तीन वर्ष की *त्रिमूर्तिनी*, चार वर्ष की *कल्याणी*, पॉंच वर्ष की *रोहिणी*, छह वर्ष की *काली*, सात वर्ष की *चण्डिका*, आठ वर्ष की *शाम्भवी*, नौ वर्ष की *दुर्गा* और दस वर्ष की *सुभद्रा* कहलाती है। अष्टमी व नवमी को नवदुर्गा स्वरूप दो से दस वर्ष की कन्या पूजन से धर्म,अर्थ,काम व मोक्ष की प्राप्ति के साथ भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। आचार्य पण्डित रामचंद्र शर्मा वैदिक,अध्यक्ष मध्यप्रदेश ज्योतिष एवं विद्वत परीषद, इन्दोर।