“प्रयत्नों की ऊँचाई (लघुकथा) – ”डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)
उमा शुरू से ही पढ़ाई में होनहार और तीव्र बुद्धि वाली थी। उसने अनेक प्रतियोगी परीक्षाएँ भी उत्तीर्ण की, पर नियति की मार देखिए, उसे मनचाही नौकरी पाने के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ा। शादी हुई पर राघव भी प्राइवेट नौकरी करता था। उमा ने भी गेस्ट लेक्चरर के रूप में कार्य करना शुरू किया, पर आजकल कहीं-कहीं राजनीति की मार भी झेलनी पड़ती है। जिसके चलते उमा को कई जगह अपनी नौकरी बदलनी पड़ी, पर उमा ने मेहनत करना नहीं छोड़ा। वह लगातार भरसक प्रयत्न करती रही। यह प्रयत्न उसके गृहस्थ जीवन की खुशहाली में भी जारी रहा।
विवाह के कुछ समय पश्चात कुछ कारणों के चलते उसका गर्भपात हो गया। फिर पता नहीं संतान प्राप्ति के लिए कितने चिकित्सकीय प्रयत्न करने पड़े। तीसरे आईवीएफ़ के पश्चात जुड़वां संतति की प्राप्ति हुई, पर अभी भी उमा ने नौकरी की आस नहीं छोड़ी थी। काफी वर्षों पश्चात निरंतर अध्ययनरत रहते-रहते उसने सरकारी नौकरी प्राप्त कर ली। अब सुखद गृहस्थ जीवन जीने के लिए उसके पास परिवार और नौकरी दोनों थी। बस उसे धैर्य रखना पड़ा। कभी-कभी संघर्ष करते-करते कदम जरूर लड़खड़ाए, पर उसने कभी अपने प्रयत्नों को रुकने नहीं दिया। कभी-कभी बेइज्जती और हीनता का भी अनुभव हुआ, पर उसने अपने प्रयत्नों की ऊँचाई को कम नहीं होने दिया।
इस लघुकथा से यह शिक्षा मिलती है कि जीवन के संघर्षों में प्रयत्नों की ऊँचाई को कभी भी कम नहीं होने दे। कटु अनुभवों से ही जिंदगी निखरती है। संघर्षों की एक-एक सीढ़ी जीवन को नए मुकाम पर खड़ा करती है। जीवन में संतुलन और संतोष सुखी जीवन की चाबी है। धैर्य के साथ प्रयत्नों की ऊँचाई का समावेश ही जीवन में उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।