धर्म रक्षा के लिए जनजातीय सुरक्षा मंच ने किया विरोध प्रदर्शन

बाजना(रतलाम)
देश में बढ़ रहे अवैध धर्मांतरण को रोकने के लिए मालवा के जनजातीय क्षेत्रों में निवास करने वाले आदिवासी परिवारों के द्वारा अलग अलग स्थानों पर विरोध प्रदर्शन के कार्यक्रम किए जा रहे है। इस विषय में जब जनजातीय क्षेत्रों के समाज प्रमुखों से चर्चा की गई तो उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश , उत्तराखंड, गुजरात, हिमाचल, उड़ीसा सहित देश के कई राज्यों में धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम बनाएं गए है। भारत के संविधान में भी अनुच्छेद 25 में धार्मिक स्वतंत्रता के विषय में स्पष्ट उल्लेख किया गया है। धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ है कोई भी नागरिक अपने धर्म को मानने, आचरण और व्यवहार करने, धर्म के अनुसार पूजा उपासना करने और अपने धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए स्वतंत्रत है। परन्तु किसी दूसरे धर्म को मानने के लिए यदि किसी व्यक्ति के द्वारा लालच या प्रलोभन दिया जाता है या दबाव बनाया जाता है तो इसे कानूनी रूप से अपराध की श्रेणी में रखा गया है। कानून में धर्मांतरण को अवैधानिक घोषित करने के बाद भी विधर्मियो के द्वारा आदिवासी परिवारों को छल कपट लालच प्रलोभन ओर दबाव पूर्वक धर्मांतरित करने के षड्यंत्र हो रहे है। भारत के जिन राज्यों ने धर्मांतरण को रोकने के लिए धर्म स्वतंत्रता अधिनियम बनाएं गए हैं उन राज्यों में विधर्मियों को अवैध धर्मांतरण करने के अपराध के लिए अनेक स्थानों पर पुलिस द्वारा प्रकरण दर्ज किए जा रहे है साथ ही कई मामलों में कोर्ट ने भी ऐसे लोगों को दोषसिद्ध करार देते हुए सजा सुनाई है। ऐसे में विधर्मियों की गतिविधियों में जो कमी आई है उसी से परेशान होकर उनके द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में राज्यों द्वारा बनाए गए धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम को चुनौति देते हुए एक प्रकार की, एक जैसे लोगों द्वारा और एक ही उद्देश्य वाली अलग अलग याचिकाएं दाखिल की गई है। जो कि एक स्पष्ट षड्यंत्र दिखाई देता है।

हिंदू धर्म से जुड़े हुए एक अन्य विषय में जब स्वामी दयानंद सरस्वती जी हिंदू मंदिरों को प्रशासनिक नियंत्रण से स्वतंत्र करने के लिए याचिका दाखिल की गई तो इस प्रकार की अन्य याचिकाओं को भी क्लब करते हुए 13 वर्ष की लंबी अवधि के बाद यह निर्देश दिया कि इन विषयों पर निर्णय लेने के लिए राज्यों के पास अधिकारिता है उन्हें इस पर विचार करना चाहिए। तब इस के ठीक विपरित जब राज्यों द्वारा बनाए गए धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम की बात आती है तो सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति इस पर सुनवाई करना चाहते है। एक जैसे विषय में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दो दृष्टिकोण होने से विधर्मियो की अवैधानिक गतिविधियां पुनः बढ़ गई है। जिसके कारण जनजातीय समाज की धार्मिक आस्था पर संकट आ रहा है, हमे हमारी संस्कृति से पृथक करने और मूल स्वरूप से परिवर्तित किए जाने का प्रयास किया जा रहा है। जनजातीय समाज इस घटनाक्रम का पुरजोर विरोध करता है। यदि हमारे विरोध के उपरांत भी उपरोक्त राज्यों द्वारा बनाए गए धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम में परिवर्तन लाने के प्रयास किए जाते है तो हम सभी को उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
कार्यक्रम में मुख्य व्यक्ता मांगीलाल खराड़ी व बालगिरी महाराज, कमल गिरी महाराज सहित अनेक ग्राम से आए जनजाति समाज बंधु उपस्थिति थे।