बच्चों को संस्कारित करें – प्रो. देवेन्द्र कुमार शर्मा

भारत हिन्दू बहुल देश है। यहां बड़ी संख्या में मुस्लिम, क्रिश्चियन, सिक्ख, बौद्ध, जैन आदि धर्मावलंबी भी रहते हैं। प्रायः यह देखने में आता है कि हिन्दू के अतिरिक्त अन्य धर्मावलंबी अपने धर्म का व्यवस्थित पालन करते हैं। अन्य धर्म में उनके धर्म गुरूओं का अच्छा प्रभाव रहता है। सभी अल्पसंख्यक वर्ग के लोग अपनी धार्मिक प्रक्रिया का उचित पालन करते हैं, उचित भी है, करना भी चाहिए, किन्तु हिन्दू अपवाद हैं। बहुत कम हिन्दू नियमित रूप से धार्मिक आचरण करते हैं। वर्तमान समय हिन्दूओं के पुर्नजागरण का है। लंबे समय तक मुस्लिम शासकों, बाद में अंग्रेजों ने हिन्दू संस्कृति को नष्ट करने का भरसक प्रयास किया। विचार करें तो आश्चर्य भी लगता है कि बहुत लंबे समय तक उत्पीड़न एवं नष्ट करने के प्रयासों के बाद भी हिन्दू संस्कृति समाप्त नहीं हुई। सचमुच हिन्दू संस्कृति का जीवित रहना एक आश्चर्य ही है। सौभाग्य से अब समय बदल रहा है। भारत स्वतंत्र होने के बाद पहली बार हिन्दू धर्म के पालन करने वालों में आत्म सम्मान की भावना जागृत हो रही है। पहली बार हिन्दूओं में यह जागृति आई है कि उन्हें हिन्दू धर्म एवं संस्कृति को जीवित रखना है। भारत स्वतंत्र होने के बाद जवाहरलाल नेहरू ने बहुत लंबे समय तक राज किया। हिन्दू धर्म के प्रति नेहरू का विरोध सबको पता रहा है। कहते हैं कि उन्होंने माउंटबेटन से कहा था कि वे स्वयं मुसलमान ही हैं। यह भी पता नहीं कि नेहरू किस धर्म का पालन करते थे। नेहरू का सच कुछ भी हो किन्तु नेहरू के हिन्दू विरोध के कई प्रमाण उपलब्ध हैं। उनके समय में बनाये गये कई कानून स्पष्ट रुप से हिन्दू विरोधी हैं।
अब समय बदल रहा है, हिन्दूओं में जागृति आई है। अब समझ में आने लगा है कि हिन्दू संस्कृति के अस्तित्व को जीवित रखने के लिए हिन्दू जागृति आवश्यक है। कई हिन्दू धर्म गुरू हिन्दूओं को जागृत करने के लिए सक्रिय हो रहे हैं। कुछ हिन्दू जागृत भी हुए हैं, किन्तु सभी नहीं। अभी भी ऐसे हिन्दू देखने में आते हैं जिन्हें धर्म और संस्कृति के अस्तित्व को बनाये रखने की चिंता नहीं। शायद वे सोचते हैं कि हिन्दू संस्कृति मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा उसे नष्ट करने के प्रयास के बाद भी जीवित रही, शायद आगे भी रहेगी। किन्तु यह उनका भ्रम है। अभी भी हिन्दू संस्कृति पर खतरा कम नहीं है। 2014 के पहले अधिकतर केन्द्र सरकार हिन्दू विरोधी ही थी, अभी भी कई राज्यों में हिन्दू विरोधी सरकार हैं। देश की प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस हिन्दू विरोधी ही है। कांग्रेस के सर्वेसर्वा भी हिन्दू नहीं हैं। दुर्भाग्य से कई अन्य दलों के हिन्दू नेता भी हिन्दू धर्म का विरोध करते हैं। वे वोट के लिए अपने स्वयं के धर्म का विरोध करते हैं, पूरी दुनिया में ऐसा उदाहरण कहीं नहीं मिलेगा। अन्य सभी धर्म मानने वाले अपने धर्म को सर्वोपरि मानते हैं, राजनीति बाद में। व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए अपने धर्म का विरोध करने की प्रवृत्ति केवल हिन्दूओं में पायी जाती है। केवल हिन्दूओं में ऐसे लोग पाये जाते हैं, जिनके लिए व्यक्तिगत स्वार्थ धर्म के ऊपर होता है। इस प्रवृत्ति को बदलना बहुत आवश्यक है। पूराने हिन्दू धर्मद्रोही बदलने वाले तो नहीं हैं इसलिए सभी जागरुक हिन्दूओं को चाहिए कि वे अपने बच्चों को संस्कारित करें, धर्म की शिक्षा दें और उनमें अपने धर्म के प्रति आस्था उत्पन्न करें। ऐसा करना हिन्दूधर्म को जीवित रखने के लिए तो आवश्यक है ही, स्वयं को जीवित रखने के लिए भी आवश्यक है। केवल हिन्दूओं को अपने धर्म की बात करने में शर्म आती रही है। यह स्थिति बदलना चाहिए, बदल भी रही है, किन्तु बहुत कुछ करना बाकी है।
हिन्दूओं को यह मालूम होना चाहिए कि हिन्दू धर्म विज्ञान आधारित धर्म है, उदाहरण के लिए – भारतीय ज्योतिष पूरी तरह वैज्ञानिक विद्या है। प्राचीन विद्वानों ने स्लेट पर मिट्टी की कलम से गणना करके 100 वर्ष तक ग्रहों के विचरण को पंचाग स्वरुप में प्रस्तुत कर दिया। हिन्दू ज्योतिष पद्धति पूरी तरह वैज्ञानिक है। यद्यपि कुछ रूढ़िवादी रीति रिवाज इसमें प्रवेश कर गए हैं। यह मुस्लिम आक्रांताओं के शासनकाल के दौरान हुआ। यह तो पूरी दुनिया मानती है कि शून्य भारत से ही दुनिया को मिला जिससे असीमित गणना संभव हो सकी। हिन्दूओं को अपने पूर्वजों की उपलब्धि पर गर्व होना चाहिए और अपने बच्चों को भी समझाना चाहिए। अपने बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाएं किन्तु उन्हें अंग्रेज न बनाये। अब तो दुनिया भर में लोग हिन्दू संस्कृति के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। फिर हम क्यों अपनी संतानों को हमारे धर्म और संस्कृति का उचित ज्ञान नहीं दे रहे हैं?
विवाह जीवन का एक महत्वपूर्ण संस्कार है। विवाह करना हिन्दूओं का धर्म है और कर्तव्य भी। वर्तमान में जो अप्रिय – अवांछनीय घटनाएं वैवाहिक जीवन में हो रही हैं उसका कारण भी शायद संस्कार की कमी ही है। लव मैरीज करते हैं और फिर निर्दयतापूर्वक मार देते हैं। पछतावा भी नहीं होता। यह संस्कार की कमी के कारण ही होता है। इसी कारण अधिकतर विवाह सफल नहीं होते। वास्तविक अर्थ में देखा जाएं तो अधिकतर विवाह असफल ही होते हैं, जो चल रहे हैं, वे केवल चल रहे हैं। इस प्रकार के जीवन से किसी को सुख प्राप्त नहीं होता। सुख एक संतुष्टी है जो केवल आपसी समझ और एक-दूसरे के प्रति प्रेमभाव से उत्पन्न होता है। इस विषय पर भी माता-पिता को अपने बच्चों से बात करना चाहिए। सुख धन से खरीदा नहीं जा सकता। सुख आपसी समझ और सामंजस्य से ही प्राप्त किया जा सकता है।
शिक्षा भी संस्कार का अविभाज्य अंग है। शिक्षा केवल अच्छे अंक से परीक्षा में उत्तीर्ण होना नहीं है। यह भी आवश्यक है किन्तु शिक्षा का विस्तृत स्वरूप माता-पिता को मालूम होना चाहिए। संपूर्ण शिक्षा का अर्थ धार्मिक शिक्षा के अतिरिक्त जीवन को समग्र दृष्टि से समझना भी होता है। यह ज्ञान कोई विद्यालय नहीं देगा, परिवार के वरिष्ठजन ही दे सकते हैं। इसके लिए स्वयं का व्यवहार भी संस्कारित होना चाहिए। स्वयं संस्कारवान होंगें तभी बच्चों को अधिकारपूर्वक संस्कार की शिक्षा दे सकेंगे। संस्कार का अर्थ बहुत विस्तृत होता है। संस्कार जीवन की सभी गतिविधियों को समाहित करते हैं। आधुनिक जीवनशैली में हिन्दू माता-पिता के पास अपने बच्चों के लिए समय नहीं होता। हमने देखा है कि अन्य धर्मों में बच्चों को धर्म की शिक्षा नियमित रूप से दी जाती है। धर्म केवल ईश्वर आराधना ही नहीं है। धर्म जीवन बुद्धिमानी से जीने की कला भी है। संस्कार उचित और अनुचित में अंतर समझना सिखाते हैं। ये संस्कार माता-पिता ही बच्चों को दे सकते हैं किन्तु इसके लिए उन्हें स्वयं संस्कारित होना आवश्यक है। संस्कार में साधारण रहन-सहन भी समाहित होता है। छोटी-छोटी व्यवस्थाएं ही जीवन को साधारण से असाधारण बनाती है। यह केवल पुस्तकीय ज्ञान नहीं, यह बहुत विस्तृत जीवनशैली है जिसमें आपके जीवन के संपूर्ण क्रियाकलाप समाहित होते हैं। आपके वस्त्रधारण करने का तरीका, आपका परिवार और समाज में व्यवहार समग्र रूप से आपको समाज में प्रतिष्ठित करते हैं। छोटी-छोटी अच्छाईयां मिलकर पूरा व्यक्तित्व बनाती है। जीवन की यह सब महत्वपूर्ण सुक्ष्मताएं माता-पिता ही बच्चों को प्रदान कर सकते हैं। शर्त केवल एक है – स्वयं माता-पिता को अपना आचरण उचित करना होगा। संस्कार ही जीवन को आनन्दमय बनाते हैं।