हिन्दू धर्म दुनिया का सबसे पुराना धर्म है। जो हिन्दू धर्म का पालन करते हैं वे हिन्दू कहलाते हैं। वर्तमान में हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा आयोजन महाकुंभ प्रयागराज में चल रहा है, इस कारण पूरी दुनिया में हिन्दू धर्म चर्चा का विषय बना हुआ है। पूरे विश्व से अन्य धर्मावलंबी भी गंगा स्नान करने एवं कुंभ का आनन्द लेने के लिए प्रयागराज आ रहे हैं। हिन्दूधर्म की विविधता और उदारता भी अन्य धर्मों को मानने वालों के लिए आकर्षण का कारण है। हिन्दू धर्म उदार धर्म है यह उदारता ही उसके लिए हानिकारक रही है। प्राचीन काल में हिन्दू धर्म मध्य एशिया से इंडोनेशिया तक फैला हुआ था। कई हिन्दू राजाओं के राज्य ईरान तक फैले हुए थे। फिर 7वीं शताब्दी में आया इस्लाम। यह धर्म तलवार के बल पर पूरी दुनिया में फैल गया। उदार हिन्दू धर्म इसका सफल विरोध नहीं कर सका। इस्लाम के अनुयायी अधिक से अधिक संतान पैदा कर इस्लाम का विस्तार करने में विश्वास रखते हैं। ईसाई धर्म और इस्लाम के बीच अस्तित्व के लिए युद्ध 1095 से 1291 तक हुआ। किन्तु हिन्दू धर्म दुनिया का सबसे पुराना धर्म होने पर भी सिमटता चला गया। हिन्दु धर्म की उदारता ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी रही। जीवन में भी हम देखते हैं कि सज्जन व्यक्ति दुर्जन से हार जाता है, यही हिन्दुधर्म के साथ हुआ। इस्लाम की कट्टरता से ही भारत का विभाजन हुआ। धर्म के आधार पर हुए विभाजन के बाद भी भारत में रह गए मुसलमानों को भारत से जाने के लिए नहीं कहा, इसका परिणाम हम भुगत रहे हैं। अब हिन्दू धर्म अपने अस्तित्व की अंतिम लड़ाई लड़ रहा है। इसलिए सभी हिन्दूओं को अपने धर्म की रक्षा के लिए सजग हो जाना चाहिए। यह उनके अस्तित्व का प्रश्न है। उदार ही बने रहे तो समाप्त हो जाएंगे।
हिन्दू धर्म को ईसाई एवं इस्लाम धर्म से शिक्षा लेनी चाहिए। इन धर्मों के अनुयायियों की उनके धर्म के प्रति निष्ठा प्रशंसनीय है। हिन्दूओं को उनसे सीख लेना चाहिए। इन दोनों धर्मों को मानने वाले पूरी निष्ठा एवं कठोरता से अपने धर्म का पालन ही नहीं करते बल्कि उनके प्रचार-प्रसार का निरंतर प्रयास करते हैं, इसी कारण उनकी संख्या भी निरंतर बढ़ती जा रही है। इनके विपरीत हिन्दू धर्म अनुयायी स्वयं के धर्म का पालन करने में बहुत लापरवाह हैं। नियमित रूप से ईश्वर आराधना और पूजा-पाठ नहीं करते। आधुनिकता के नाम पर हिन्दूओं के जीवन में बहुत विकृतियां आ गई हैं। हिन्दूओं को इन विकृतियों से बचना चाहिए। माता-पिता का यह कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों को नियमित ईश्वर आराधना की शिक्षा दें। ईश्वर में विश्वास और आराधना करने से आत्मबल बढ़ता है एवं संकटों का सामना करने की क्षमता में वृद्धि होती है। धर्म का पालन अंधविश्वास का प्रतीक नहीं है। आराधना जीवन को आधार और स्थायित्व प्रदान करती है। यह हिन्दूओं के अस्तित्व का भी प्रश्न है। अतः सचेत हो जाइये ताकि आपका अस्तित्व बना रहे।
हिन्दू धर्म के कर्णधारों, साधु-संत एवं गुरूओं से निवेदन है कि हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार की नियमित व्यवस्था करें। वही धर्म एवं जाति जीवित रहते हैं जो अपने अनुयायियों की संख्या बढ़ाने का निरंतर प्रयास करते हैं। इसी प्रयास पर हिन्दू धर्म का अस्तित्व निर्भर करता है।