जबलपुर। भारतीय संस्कृति और परंपराओं को आधुनिकता के साथ जोड़ने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है श्री जानकी बैंड ऑफ वूमन। मध्य प्रदेश के जबलपुर की कॉलेज छात्राओं द्वारा स्थापित इस बैंड ने देशभर में न केवल अपनी अनूठी प्रस्तुति से पहचान बनाई है, बल्कि साहित्य और संगीत के संगम का एक प्रेरणादायक मॉडल भी प्रस्तुत किया है। यह समूह केवल एक बैंड नहीं, बल्कि कला और साहित्य का एक ऐसा समागम है, जिसने इस शहर को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है।
हाल ही में झंडा उंचा रहे हमारा अभियान के अंतर्गत 19 जनवरी 2025 को इंदौर में सेवा सुरभि और वामा साहित्य मंच की पहल पर इस बैंड की अभिनव प्रस्तुति देखने का अवसर मिला। बैंड की युवतियों ने साहित्यिक क्षेत्र के नामचीन रचनाकारों की कविताओं को ताल, सुर और लय देकर इस तरह प्रस्तुत किया कि वह श्रोताओं के लिए एक यादगार अनुभव बन गया।
आपदा के सन्नाटे को चीरती जबलपुर की इन वामाओं की कहानी भी उम्मीद और दृढ़ता का एक ऐसा उदाहरण है, जो हर किसी को प्रेरित करता है। श्री जानकी बैंड ऑफ वूमन की यात्रा कोरोना महामारी के कठिन दौर में शुरू हुई और आज यह बैंड कला, संस्कृति और नवाचार का प्रतीक बन चुका है।कोरोना महामारी के दौरान बनी यह टोली आज देशभर में 100 से अधिक प्रस्तुतियाँ दे चुकी है।
पारंपरिक लोकगीतों को फ्यूजन संगीत के जरिए नई पहचान देना, बैंड की रचनात्मकता और सामूहिक प्रयासों का प्रमाण है। जबलपुर के श्री जानकी रमण महाविद्यालय की कुछ वामाओं ने मिलकर इस बैंड की नींव रखी। प्रारंभ में यह एक साधारण म्यूजिकल ग्रुप था, जो छोटे-छोटे गीतों पर काम करता था। धीरे-धीरे, छात्राओं के प्रयासों और संगीत में उनके नवाचार ने इसे एक बड़े बैंड में परिवर्तित कर दिया। महाविद्यालय के प्राचार्य अभिजात कृष्ण त्रिपाठी ने इसका नामकरण ‘श्री जानकी बैंड ऑफ वूमन’ किया, जो सीता माता के नाम पर आधारित है।
इस बैंड की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह फिल्मी गीतों के बजाय भारतीय लोकगीतों और हिंदी साहित्य के महान कवियों की रचनाओं को प्रस्तुत करता है। कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की ‘झांसी की रानी’ और माखनलाल चतुर्वेदी की ‘पुष्प की अभिलाषा’ जैसी कविताओं को अपनी धुनों में सजाकर इस बैंड ने उन्हें नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया है।
इस बैंड में 15 से 28 वर्ष की वामाएं शामिल हैं, जो गायन और वादन दोनों में निपुण हैं। यह बैंड एक ऐसा मंच है, जहाँ न केवल गायन स्वर वामाओं का है, बल्कि मुख्तलिफ़ साज़ों को बजाने वाली भी वामाएं हैं। हारमोनियम जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों से लेकर गिटार जैसे आधुनिक उपकरणों का अद्भुत संयोजन इस बैंड को विशेष बनाता है। सुन्दर पोशाकों में जब ये युवतियाँ मंच पर आती हैं, तो उनके आत्मविश्वास और जुनून को देखकर मन स्वतः निहाल हो उठता है।
यह बैंड केवल संगीत का समूह भर नहीं है; यह भारतीय साहित्य और लोक परंपरा का जीवंत चित्रण है। इन युवतियों का कोरस जब हिंदी साहित्य की भूली-बिसरी कविताओं और लोक संगीत को सुरों में पिरोता है, तो वह श्रोताओं को साहित्यिक और सांस्कृतिक यात्रा पर ले जाता है। सुभद्रा कुमारी चौहान की ‘झांसी की रानी’ और माखनलाल चतुर्वेदी की ‘पुष्प की अभिलाषा’ जैसी कविताओं को नए सुरों में सजाकर प्रस्तुत करना इस बैंड की विशेषता है।
बैंड की सफलता के पीछे संगीत शोधार्थी डॉ. शिप्रा सुल्लेरे और रंगमंच कलाकार सरदार दविंदर सिंह ग्रोवर का मार्गदर्शन है। आवाज़ के इन बिखरे हुए मोतियों को एक माला में पिरोने का काम किया सरदार दविन्दर सिंह ग्रोवर ने किया है। वे रंगमंच के कलाकार हैं। नाटकों में कई कि़रदार निभा चुके हैं और जबलपुर में नाट्य लोक सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था के संचालक हैं। दविन्दर के कानों में जब शब्द और नाद की हमजोली में निखरा इन तरूणियों का संगीत गूँजा तो वे सम्मोहित हो गये। पूरा कुनबा ही महिला संगीतकारों का उनके सामने था। वहीं इन तरूणाई को एकजुट करने वाली नेपथ्य की शक्ति डॉ. शिप्रा सुल्लेरे हैं। वे संगीत की शोधार्थी रही हैं। भक्ति काल की कविता पर उन्होंने पीएचडी की उपाधि हासिल की है। वे ही इन प्रतिभाओं की गुरू भी है। दविन्दर और शिप्रा की रचनात्मक संधि पर श्री जानकी बैंड अस्तित्व में आया।
श्री जानकी बैंड ऑफ वूमन भारतीय साहित्य और संगीत को एक आधुनिक पहचान देने का प्रयास है। यह बैंड न केवल परंपराओं को संरक्षित कर हा है, बल्कि युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का कार्य भी कर रहा है।
साहित्यिक गीतों और लोक संगीत के प्रति इस बैंड का समर्पण समाज को यह संदेश देता है कि नवाचार और परंपरा का समन्वय न केवल संभव है, बल्कि यह नई संभावनाओं के द्वार भी खोलता है। श्री जानकी बैंड जैसी पहलें समाज और संस्कृति के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव का प्रतीक हैं।
श्री जानकी बैंड ऑफ वूमन सिर्फ एक बैंड नहीं, बल्कि आशा, साहस और सशक्तिकरण का प्रतीक है। यह कहानी बताती है कि कैसे कठिन समय में भी कला और संगीत के माध्यम से एक नई सुबह की शुरुआत की जा सकती है। सुर के पंखों पर सवार ये युवतियाँ केवल संगीत ही नहीं, बल्कि उम्मीद और प्रेरणा का नया राग भी गा रही हैं।
श्री जानकी बैंड का यह सफर यह साबित करता है कि जब साहस और प्रतिभा को सही मार्गदर्शन और प्रोत्साहन मिलता है, तो वे इतिहास रच सकते हैं। यह बैंड केवल एक समूह नहीं, बल्कि एक आंदोलन है, जो कला और साहित्य के प्रति नए नजरिए को जन्म देता है।