उपराष्ट्रपति के प्रति अविश्वास प्रस्ताव- विश्लेषण – प्रो. डी.के. शर्मा- विधि विशेषज्ञ

संसद में पक्ष और विपक्ष के बीच टकराव एक नियमित प्रक्रिया हो गई है। इसी तारतम्य में एक विशेष घटना हो रही है। विपक्ष ने राज्यसभा के सभापति – उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत करने की तैयारी कर ली है। देश के उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन अध्यक्ष होते हैं। बहुत समय से विपक्ष धनखड़ के राज्यसभा संचालन के तरीके से अप्रसन्न रहा है। ये असंतोष चरम पर पहुंच गया है और इसकी परिणीति विपक्ष द्वारा राज्यसभा सभापति – उपराष्ट्रपति के प्रति अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत करने की तैयारी में हो रही है। संविधान के अनुसार उपराष्ट्रपति को हटाये जाने की प्रक्रिया निम्नानुसार है-

संविधान के अनुच्छेद 67बी में उपराष्ट्रपति को पद से हटाए जाने की प्रक्रिया का उल्लेख है। उपराष्ट्रपति पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है। संसद में प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 14 दिन पहले सदन को सूचित करना होता है। उपराष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव राज्यसभा में प्रस्तुत करने के लिए न्यूनतम आवश्यक संख्या 50 है। वहीं अभी 60 विपक्षी सांसदों ने नोटिस पर हस्ताक्षर किए हैं।

उन्हें हटाने के लिए महाअभियोग आवश्यक नहीं है जबकि राष्ट्रपति को महाअभियोग द्वारा ही हटाया जा सकता है। इस प्रस्ताव को दोनों सदन, राज्यसभा – लोकसभा, द्वारा पारित किया जाना चाहिए। इसलिए, यदि राज्यसभा के सभापति धनखड़ के खिलाफ प्रस्ताव ऊपरी सदन में पारित हो जाता है, तो सफल होने के लिए इसे लोकसभा में साधारण बहुमत से पारित होना चाहिए, जिसकी संभावना नहीं हैं। नियमों के अनुसार, मतदान करने वाले राज्यसभा सांसदों द्वारा प्रस्ताव को साधारण बहुमत से पारित किया जाना चाहिए। फिर इसे निचले सदन में भी इसी बहुमत से पारित होना चाहिए।

उपराष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है। संविधान अनुसार दोनों सदनों के सदस्य उपराष्ट्रपति को अविश्वास प्रस्ताव पारित कर पद से हटा सकते हैं। वर्तमान स्थिति में धनखड़ को हटाए जाना संभव नहीं लगता क्योंकि अविश्वास प्रस्ताव के किसी भी सदन, राज्यसभा अथवा लोकसभा, में पारित होने की संभावना नहीं है। यह अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष की हताशा का प्रतीक है।

राजनैतिक दृष्टि से विपक्ष संसद में प्रभावी भुमिका नहीं निभा पा रहा है। वह हताश – निराश है। इसी हताशा-निराशा के कारण विपक्ष लोकसभा और राज्यसभा में हंगामा करता है और कोई काम नहीं होने देता है। सामान्य नागरिक विपक्ष के इस गैरजवाबदार व्यवहार से प्रसन्न नहीं है। विपक्ष का कर्तव्य होता है कि वह संसद में बहस में सक्रिय भागीदारी करे। संसद के अधिवेशन अवसर होते हैं जब विपक्ष सरकार की कमियों को उजागर कर सकता है। ऐसा करने से नागरिकों पर विपक्ष का अच्छा प्रभाव पड़ता है, किन्तु ऐसा हो नहीं रहा। विपक्ष को जनभावनाओं का आदर करना नहीं आता। विपक्ष को यह पता नहीं कि अब नागरिक बहुत जागरूक हैं और सत्ता पक्ष – विपक्ष दोनों के क्रियाकलाप बहुत ध्यान से देखते हैं। राजनीति में सफलता जनभावनाओं के प्रति सचेत रहने से ही प्राप्त होती है। चूंकि विपक्ष के पास स्पष्ट बहुमत नहीं है, इसलिए धनखड़ को हटाया जाना असंभव है। विपक्ष का यह प्रयास राज्यसभा संचालन प्रक्रिया के प्रति असंतोष प्रकट करने के लिए है। आलेख लिखते समय तक प्रस्ताव राज्यसभा में प्रस्तुत नहीं हुआ है। उपराष्ट्रपति ने चर्चा के लिए विपक्ष को बुलाया है। आगे देखते हैं, होता है क्या?