नन्हे मासूमों की सुरक्षा पर उठते सवाल: इंदौर में दर्दनाक घटना

नन्हे मासूमों की सुरक्षा पर उठते सवाल: इंदौर में दर्दनाक घटना

इंदौर, एक ऐसा शहर जिसे सांस्कृतिक नगरी के रूप में जाना जाता है, एक शर्मनाक घटना का गवाह बना। शहर के एक प्रतिष्ठित स्कूल में तीन साल की मासूम बच्ची के साथ जो कुछ हुआ, वह समाज के लिए एक गंभीर चेतावनी है। इस घटना ने न केवल माता-पिता बल्कि हर उस व्यक्ति को,समाज को झकझोर कर रख दिया है जो बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतित है।
एक तीन साल की मासूम बच्ची के साथ स्कूल में काम करने वाले एक कर्मचारी द्वारा की गई अशोभनीय हरकत ने अभिभावकों में गुस्से और असुरक्षा की भावना भर दी है। बच्ची की तकलीफ जानने के बाद जब माता-पिता ने स्कूल प्रशासन से शिकायत की, तो उनकी प्रतिक्रिया निराशाजनक थी। स्कूल प्रबंधन की लापरवाही और पुलिस में रिपोर्ट दर्ज न कराना इस घटना को और गंभीर बनाता है।
इस भयावह घटना के बाद जब अन्य अभिभावकों ने इस मामले को सोशल मीडिया पर साझा किया, तब जाकर स्कूल प्रबंधन हरकत में आया और पालकों के दबाव में एक बैठक बुलाई गई। हालांकि आरोपी कर्मचारी को पुलिस ने हिरासत में लिया है, मगर अब तक कोई औपचारिक कानूनी कार्रवाई नहीं हुई है।
इस तरह की घटनाएं बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती हैं और समाज की नींव पर सवाल उठाती हैं। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि स्कूल, जो बच्चों के सुरक्षित और उज्ज्वल भविष्य की नींव रखते हैं, वहां ऐसी घटनाएं न हों। सभी की संयुक्त जिम्मेदारी है कि हम अपने बच्चों को सुरक्षित माहौल प्रदान करें ।
इस संबंध में जरूरी सावधानियां और समाधान पर सभी को ध्यान देना होगा।
*सभी स्कूलों में कर्मचारियों की भर्ती के समय पुलिस वेरिफिकेशन और बैकग्राउंड चेक अनिवार्य रूप से होना चाहिए। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि बच्चों के साथ काम करने वाले व्यक्ति का रिकॉर्ड साफ हो।
* स्कूल में हर क्लासरूम और कोने में सीसीटीवी कैमरे लगाना जरूरी है। खासतौर से बच्चों के खेल और आराम की जगहों पर निगरानी अनिवार्य होनी चाहिए, ताकि किसी भी संदिग्ध गतिविधि को तुरंत पकड़ा जा सके।
* नर्सरी और प्राइमरी कक्षाओं में मेल स्टाफ की नियुक्ति को सीमित किया जाना चाहिए। छोटे बच्चों की देखभाल के लिए केवल फीमेल स्टाफ को ही जिम्मेदारी दी जानी चाहिए।
* माता-पिता को अपने बच्चों से खुलकर बात करनी चाहिए। बच्चों को यह सिखाना आवश्यक है कि किसी भी प्रकार की असहज स्थिति में वे बिना किसी डर के अपने माता-पिता या शिक्षक को तुरंत सूचित करें।
* स्कूलों में बच्चों और अभिभावकों के लिए ‘गुड टच’ और ‘बैड टच’ जैसी महत्वपूर्ण जानकारी देने के लिए नियमित काउंसलिंग सत्र आयोजित किए जाने चाहिए। बच्चों को अपने शरीर की सुरक्षा के प्रति जागरूक करना, उनके आत्मविश्वास को मजबूत करने में मददगार होगा।
‘गुड टच’ और ‘बैड टच’ की जानकारी देना क्यों जरूरी है?
इन प्रयासों के माध्यम से हम अपने बच्चों को सुरक्षित समुद्र प्रदान कर सकते हैं, जहां वे भयमुक्त होकर आगे बढ़ सकते हैं।बच्चों को यह सिखाना बेहद जरूरी है कि कौन सा स्पर्श सही है और कौन सा गलत।
**गुड टच** वह स्पर्श होता है, जिसमें बच्चे को प्यार और देखभाल का अहसास होता है, जैसे माता-पिता या शिक्षकों द्वारा सर पर हाथ फेरना।
**बैड टच** वह स्पर्श होता है, जिससे बच्चे को डर, शर्मिंदगी या असहजता महसूस हो। इस तरह का स्पर्श बच्चा तुरंत पहचान सके, इसके लिए बच्चों को जागरूक करना बेहद आवश्यक है।
* ऐसी घटनाओं में तुरंत और कड़ी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। स्कूल प्रबंधन की लापरवाही और दोषियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाने चाहिए, ताकि ऐसी घटनाएं दोबारा न हो सकें।
* हर स्कूल में एक प्रभावी शिकायत प्रणाली होनी चाहिए, जहां बच्चे और अभिभावक किसी भी घटना की शिकायत बिना डर के कर सकें, और उस पर तुरंत कार्रवाई हो।
* सरकारी और निजी स्कूलों में समय-समय पर सुरक्षा मानकों का निरीक्षण होना चाहिए, ताकि बच्चों की सुरक्षा से कोई समझौता न हो।
* उपरोक्त प्रयासों के माध्यम से हम अपने बच्चों को सुरक्षित वातावरण प्रदान कर सकते हैं और जागरूकता फैलाकर उन्हें इस तरह के खतरों से बचा सकते हैं। जहां वे भयमुक्त होकर आगे बढ़ सकते हैं।

लेखक :-डॉ. संतोष वाधवानी (रत्न विशेषज्ञ)