देहाभिमान जाएगा, तभी परमात्मा का वृहद ज्ञान अंदर आएगा- स्वामी परमानंद गिरि
पंजाब अरोड़वंशीय भवन पर चल रहे सत्संग एवं ध्यान योग शिविर का समापन – हजारों भक्तों ने किया गुरू पूजन
इंदौर। आजकल के गुरू केवल अज्ञान का नाश करते हैं, लेकिन कृष्ण ने अर्जुन के मोह और भीतर के शत्रुओं को भी नष्ट किया है, इसीलिए उन्हें जगदगुरू और अवतार कहा गया है। रास्ता भले ही कठिन हो, लेकिन चलना बंद नहीं करना चाहिए। चींटी थोड़ा-थोड़ा आगे बढ़कर अपनी मंजिल तक पहुंच ही जाती है। देहाभिमान सबसे बड़ी समस्या है। परमात्मा का ज्ञान लेते समय भी देहाभिमान खत्म नहीं होता। अंतःकरण से देहाभिमान जाएगा, तभी परमात्मा का वृहद ज्ञान अंदर आएगा। गुरू पूजा भगवान की पूजा भी है। मंदिर में बैठकर हमारा मन प्रेम और भक्ति में डूब जाए तो वह पूजा महोत्सव बन जाती है। महोत्सव श्रद्धा और विश्वास से ही ऊर्जावान बनेगा।
रामजन्म भूमि मंदिर न्यास अयोध्या के प्रमुख न्यासी एवं युगपुरुष स्वामी परमानंद गिरि महाराज ने रविवार को साउथ तुकोगंज स्थित पंजाब अरोड़वंशीय भवन पर अखंड परमधाम सेवा समिति के तत्वावधान में आयोजित गुरू पूर्णिमा महोत्सव के उपलक्ष्य में देश-प्रदेश से आए भक्तों और शिष्यों को संबोधित करते हुए उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। प्रारंभ में आयोजन समिति की ओर से श्यामलाल मक्कड़, किशनलाल पाहवा, विजय शादीजा, राजेश रामबाबू अग्रवाल, विजय गोयनका, अरुण गोयल, रघुनाथ गनेरीवाल, विष्णु कटारिया, गोविंद सोनेजा, तिलकराज ठक्कर आदि ने गुरूदेव का स्वागत किया। गुरू पूर्णिमा के उपलक्ष्य में आज सत्संग सभागृह का मंच फूलों से श्रृंगारित किया गया था, जहां भक्तों ने कतारबद्ध होकर अपने आस्था और श्रद्धा के फूल एवं अन्य उपहार समर्पित किए। युगपुरुष स्वामी परमानंद महाराज ने भी भक्तों को अपनी ओर से आशीर्वाद के साथ उपहार भी भेंट किए। भक्तों द्वारा युगपुरुष के पूजन का यह सिलसिला लगभग तीन घंटे तक चलता रहा। सामूहिक आरती के साथ शिविर एवं सत्संग सत्र का समापन हुआ। हरिद्वार के महामंडलेश्वर स्वामी ज्योतिर्मयानंद, महामंडलेश्वर साध्वी दिव्य चेतना, साध्वी चैतन्य सिंधु एवं योगाचार्य शिवप्रकाश गुप्ता सहित अनेक संत-विद्वान भी इस अवसर पर उपस्थित थे, जिन्होंने प्रवचनों के माध्यम से गुरू की महत्ता भी बताई और साधकों को योग एवं ध्यान के सूत्र भी बताए।
अपने आशीर्वचन में युगपुरुष ने कहा कि इंदौर सफाई में नंबर वन तो है ही, शिक्षा के क्षेत्र में भी अग्रणी हो गया है। सत्संग और भक्ति के क्षेत्र में यदि नहीं हुआ है तो उम्मीद करें कि अगले वर्ष हो जाएगा। यह अहिल्याबाई और होल्कर शासकों की नगरी है, इसलिए यहां सबको प्रसन्न रहने की आदत होना चाहिए। हम लोग किसी भी क्षेत्र में थोड़ी सी ही खुशी मिल जाने पर आनंद मनाते हैं, यह अच्छी बात है, लेकिन उस आनंद में हमें अपने धर्म और संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए। भक्ति गीत पर नाच-गाना आनंद का प्रतीक है, लेकिन केवल नाच-गाना ही करते रहेंगे तो मूल लक्ष्य से भटक जाएंगे। हमारी वाणी में प्रेम और माधुर्य का भाव होना चाहिए। वाणी के उच्चारण से ही पता चल जाता है कि हमारी वाणी कितनी मधुर या कर्कश है। हमेशा कोशिश करें कि मीठा बोलें और अपनी वाणी से दूसरों को अपना बनाने की दिशा में प्रयास करें। क्रोध से बचकर रहेंगे तो अनेक रिश्ते बचा लेंगे। क्रोध हमारे बहुत सारे रिश्तों को खराब कर देता है। प्रवचनों की अमृत वर्षा के बाद युगपुरुष को भक्तों ने मार्ग के दोनों और खड़े रहकर पुष्प वर्षा के बीच पहले खंडवा रोड स्थित आश्रम और वहां से सड़क मार्ग द्वारा ग्वालियर के लिए विदाई दी।