जिस देश में कंकर भी शंकर बन सकता है, उस देश के संस्कारों पर कभी आंच नहीं आ सकती

इंदौर, । राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं तो कृष्ण भी लीलाधर। भारत भूमि की अस्मिता और गौरव के प्रतीक इन अवतारों के कारण ही आज भारतीय धर्म-संस्कृति की ध्वजा पूरी दुनिया में फहरा रही है। राम प्रत्येक धर्मनिष्ठ भारतीय के मन में रोम-रोम में रचे-बसे हैं तो कृष्ण भी भारत भूमि के कण-कण में व्याप्त हैं। जिस देश में कंकर भी शंकर बन सकता है, उस देश के संस्कारों पर कभी आंच नहीं आ सकती। भगवान भाव के भूखे होते हैं, प्रभाव के नहीं। भगवान की सभी लीलाओं में हमारे कल्याण का भाव होता है।

अखंड प्रणव एवं योग वेदांत न्यास के प्रमुख महामंडलेश्वर स्वामीश्री प्रणवानंद सरस्वती ने आज गीता भवन सत्संग सभागृह में गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष्य में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में राम एवं कृष्ण जन्मोत्सव प्रसंगों की व्याख्या के दौरान उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। कथा प्रसंगानुसार संध्या को पहले राम जन्म, फिर कृष्ण जन्म का उत्सव धूमधाम से मनाया गया। अनेक बच्चे भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप में सज-धजकर आए थे। कथा स्थल को विशेष रूप से श्रृंगारित किया गया था। माखन-मिश्री, लड्डू और बिस्किट-चाकलेट का प्रसाद वितरण किया गया। कृष्ण जन्म प्रसंग की जीवंत झांकी देखकर हजारों भक्त इतने आल्हादित हुए कि ‘नंद में आनंद भयो, जय कन्हैयालाल की’ भजन पर झूम उठे। कथा शुभारंभ के पूर्व गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष राम ऐरन, मंत्री रामविलास राठी, यजमान समूह के श्रीमती कांता अग्रवाल, मनोज कुमार गुप्ता, सीए महेश गुप्ता, सविता रंजन एवं प्रशंसा चक्रवर्ती, दिनेश कुमार तिवारी, राजेन्द्र माहेश्वरी आदि ने व्यास पीठ का पूजन किया। कृष्ण जन्मोत्सव समाजसेवी सुरेश शाहरा, गोपालदास मित्तल एवं प्रेमचंद गोयल के आतिथ्य में मनाया गया।

महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवानंद ने कहा कि हमारी संस्कृति में उत्सवों के विविध रंग भरे हुए हैं। जितने त्योहार हमारे देश में मनाए जाते हैं, उतने किसी अन्य देश में नहीं। ये त्योहार और उत्सव हमारी सांस्कृतिक चेतना को मजबूत बनाते हैं। जन मानस को उत्साह एवं उमंग से भरने का यह जज्बा ही उत्सव कहलाता है। विदेशों के लोग भी हमारे इन उत्सवों के साक्षी बनने के लिए हजारों की संख्या में हमारे यहां आते हैं। भगवान ने स्वयं कहा है – जब-जब पृथ्वी पर पाप बढ़ेगा, मैं अवतार लूंगा। भगावन की लीलाएं कभी बंद नहीं होती। आज हम यहां जो कृष्ण जन्मोत्सव मना रहे हैं वह भी हमारी पिछले जन्मों की पुण्याई और प्रारब्ध का ही नतीजा है। शुभ संकल्पों में वही लोग शामिल हो पाते हैं, जिन्हें स्वयं भगवान बुलाते हैं।