इंदौर । फेडरेशन ऑफ पेपर ट्रेडर्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष दीपक मित्तल ने आज यहां दावा किया कि देश में 47 प्रतिशत कागज रिसायकिलिंग से, 22 प्रतिशत कृषि अवशेष से और मात्र 31 प्रतिशत पेड़ की लकड़ी से बनता है। पेड़ों की भी वह लकड़ी कागज निर्माण में प्रयुक्त की जाती है, जो निर्माताओं द्वारा स्वयं की भूमि पर खेती करके उगाई जाती है, जिससे हजारों किसानों एवं श्रमिकों को रोजगार भी मिलता है। देश में जितनी लकड़ी कटती है, उसका 65 प्रतिशत से अधिक का उपयोग निर्माण कार्यों में होता है, लेकिन बदनाम कागज को किया जाता है। अनेक शासकीय एवं अशासकीय संस्थाएं यह प्रचारित करती हैं कि पेड़ों को बचाने हेतु कागज का उपयोग कम करें, जो कि भ्रामक और तथ्यहीन है।
मित्तल ने यह बात आज इंदौर पेपर ट्रेडर्स एसोसिएशन की मेजबानी में एबी रोड स्थित होटल रायल आर्चिड में फेडरेशन ऑफ पेपर ट्रेडर्स एसो. ऑफ इंडिया की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के समापन अवसर पर उक्त तथ्यात्मक विचार व्यक्त किए। इंदौर में पहली बार कागज विक्रेताओँ की दो दिवसीय बैठक का आयोजन किया गया था। सांसद शंकर लालवानी के मुख्य आतिथ्य में रविवार को बैठक का शुभारंभ हुआ। लालवानी ने शहर की ओर से देश के 50 शहरों से आए 150 से अधिक कागज विक्रेताओँ का स्वागत करते हुए उन्हें बताया कि स्वच्छता में नंबर वन के कीर्तिमान के साथ ही इंदौर अत्यंत तीव्र गति से विकास कर रहा है। जल्द ही यहां लॉजिस्टिक हब भी बन रहा है। इंदौर हवाई अड्डे से पीथमपुर तक विशाल इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर भी बन रहा है, जो इंदौर को एक विशिष्ट पहचान प्रदान करेगा। आईटी हब भी यहां तेजी से विकसित हो रहा है। लालवानी ने सभी प्रतिनिधियों से आग्रह किया कि वे इंदौर को अपनी कर्मभूमि बनाएं। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि राजेन्द्र जैन ने शहर की विकसित कागज मंडी के आंकड़े प्रस्तुत किए और यहां के कागज व्यापारियों की विक्रय शैली, सहयोग एवं कारोबार में पारदर्शिता की खुले मन से सराहना की। प्रारंभ में इंदौर पेपर ट्रेडर्स एसो. की ओर से बैठक संयोजक आशुतोष झंवर, फेडरेशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजेन्द्र मित्तल एवं अध्यक्ष आशीष बंडी ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। अध्यक्ष बंडी ने संस्था की गतिविधियां भी बताई और कोरोना आपदा के समय किए गए सेवाकार्यों तथा पेपर डे उत्सव की उपयोगिता की जानकारी भी दी। संचालन अंकित बंडी ने किया और आभार माना सचिव प्रीतेश वगेरिया ने। बैठक में कागज के बढ़ते दामों, कागज मिलों द्वारा अपनाई जा रही नीतियों और अन्य विभिन्न मुद्दों पर भी विचार मंथन किया गया।