पितृ पर्वत पर नौ दिवसीय शिवशक्ति महायज्ञ का मंगल कलश यात्रा के साथ हुआ शुभारंभ

श्रद्धा और विश्वास के बिना कोई भक्ति सार्थक नहीं होगी

इंदौर, । भक्ति, पूजा, अर्चना और यज्ञ कर्म करने वालों को ‘मैं भगवान का, भगवान मेरे’ का भाव रखना चाहिए। श्रद्धा और विश्वास के बिना कोई भी भक्ति सार्थक नहीं हो सकती। शिवशक्ति महायज्ञ ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ की कामना से हो रहा है। भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए बहुत से उपाय बताए गए हैं, लेकिन इन सबमें यज्ञ आदिकाल से चला आ रहा ऐसा अनुष्ठान है, जो देवताओँ को सर्वाधिक प्रिय है। पितृ पर्वत स्थित हनुमंत धाम की छत्रछाया में हो रहा यह महायज्ञ शहर, प्रदेश और राष्ट्र के लिए भी कल्याणकारी होगा। हनुमानजी स्वयं यहां विराजित हैं, इसलिए इस महायज्ञ में उनकी अतुलनीय शक्ति, हम सबकी भक्ति और ज्ञान के समन्वय से भारतीय संस्कृति को सुदृढ़ बनाने का पुरुषार्थ यहां हो रहा है।

श्री श्रीविद्याधाम के महामंडलेश्वर स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती ने आज शिवशक्ति साधना समिति के तत्वावधान में पितृ पर्वत स्थित हनुमंत धाम पर नौ दिवसीय शिवशक्ति महायज्ञ की मंगल कलश यात्रा, मंडप प्रवेश, सौभाग्यवती पूजन और स्थापित देवताओं के पूजन सहित विभिन्न शास्त्रोक्त क्रियाओं के दौरान साधकों को संबोधित करते हुए आशीर्वचन स्वरूप उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए। महायज्ञ का शुभारंभ प्राचीन शिव मंदिर पर मंगल कलश पूजन के साथ हुआ। यज्ञ संयोजक आचार्य पं. उमेश तिवारी, ब्रह्मचारी आचार्य पं. प्रशांत अग्निहोत्री, आचार्य पं. आदर्श शर्मा सहित 11 विद्वानों ने महामंडलेश्वरजी के सानिध्य में गणपति पूजन किया। महिलाओं ने ढोल-ढमाकों, शहनाई और अन्य वाद्य यंत्रों की मंगल ध्वनि के बीच मंगल कलश को श्रीफल सहित मस्तक पर धारण कर नंगे पैर चलते हुए कलश यात्रा निकाली। हनुमानजी के दर्शन और परिक्रमा के बाद श्रद्धालुओं ने यज्ञशाला की भी परिक्रमा की। साधकों एवं विद्वानों सहित मंडप प्रवेश की रस्म के बाद सौभाग्यवती महिलाओँ का पूजन भी किया गया। इस दौरान स्वस्ति वाचन, महासंकल्प, गणपति पूजन, पुण्याहा वाचन, आयुष मंत्र, नांदीश्राद्ध, आचार्य और ऋत्विश वरण, मंडप पूजन, योगिनी मंडल, क्षेत्रपाल, मंडप पूजन, 64 भैरव मंडल, सर्वतोभद्र मंडल, सप्तऋषि मंडल पूजन के बाद द्वितीय सत्र में जैसे ही अग्नि देवता का आव्हान कर अग्नि स्थापन की विधि संपन्न हुई, समूची यज्ञशाला यज्ञ देवता के जयघोष से गूंज उठी। इसके साथ ही  पितृ पर्वत स्वाहाकार की मंगल ध्वनि से गुंजायमान होता रहा। यह क्रम 9 दिनों तक चलेगा। महायज्ञ प्रतिदिन सुबह 9 से 12 और दोपहर 3 से 6 बजे तक होगा। आज विद्याधाम परिवार की ओर से सुरेश शाहरा, राजेन्द्र महाजन, रमेश पसारी, महेश दलोद्रा सुरेश शर्मा, मनोज मोहता (कोलकाता) आदि ने सभी विद्वान आचार्यों और साधकों का स्वागत किया। मुख्य यजमान दीपक खंडेलवाल ने सपत्नीक पहली पूजा संपन्न की। इस यज्ञ में अधिकांश विद्वान वही हैं, जिन्होंने बीस वर्ष पूर्व 2002 में श्री श्रीविद्याधाम में लक्षचंडी महायज्ञ में भी भाग लिया था।

यज्ञ की सामग्री- महायज्ञ के संयोजक आचार्य पं.उमेश तिवारी ने बताया कि यज्ञ में प्रतिदिन पलाश, गूलर, मोगरा, नवगृ समिधा, गाय का शुद्ध घी, काले तिल, चावल, शकर, पंचमेवा, त्रिमधु, खीरान, मालपुआ, गन्ना, कमलगट्टा, पान आदि की आहुतियां समर्पित होंगी। ये सभी मां को प्रिय व्यंजन माने जाते हैं। पान का प्रतिदिन 27 हजार आहुतियां ललिता सहस्त्रनामावली से दी जाएंगी। इसके अलावा गाय के गोबर से निर्मित कंडे, छेल-छबीला, नागरमूथा, अगर-तगर, भैंसा गूगल, शमी और पीपल की लकड़ी का भी उपयोग समिधा में होगा। करीब दो हजार किलो शुद्ध घी का उपयोग पूरे 9 दिनों में किया जाएगा। ललिता पंचमी 4 जून को खीर और मालपुए का भोग लगेगा।