अखिल भारतीय समन्वित सोयाबीन अनुसन्धान परियोजना की 52 वी वार्षिक बैठक

इंदौर । सोयाबीन पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की दो दिवसीय राष्ट्रीय स्तर की वार्षिक समूह बैठक का आयोजन भाकृअनुप-भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान द्वारा सोपा सभागार, इंदौर में किया जा रहा है, जिसमें देश भर के लगभग 150 वैज्ञानिक भाग ले रहे हैं। इस बैठक के अंतिम दिन सूक्ष्म जीव विज्ञान, खाद्य प्रौद्योगिकी, प्रजनक बीज उत्पादन, कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के क्षेत्र में पिछले वर्ष गए अनुसंधान परीक्षणों बाबत सम्बंधित वैज्ञानिकों ने प्रस्तुति दी तथा वर्ष 2022 के दौरान किये जाने वाले अनुसन्धान कार्यक्रमों का निर्धारण किया गया।

सूक्ष्मजीव विज्ञान के वैज्ञानिकों ने वर्ष 2021 के दौरान पौध वृध्दि कारकों से सम्बंधित विशिष्ट इनोकुलेंट्स और बैक्टीरिया की पहचान की है जो नाइट्रोजन अवशोषण के साथ-साथ अजैविक तनाव विशेषकर सूखे की स्थिति में फसल को विपरीत मौसम की स्थिति का सामना करने हेतु शक्ति प्रदान करते हैं. अतः कृषकों के स्तर पर ले जाने की शिफारिश की जाती हैं. खाद्य प्रौद्योगिकी से सम्बंधित आयोजित एक अन्य तकनिकी में सत्र में सोया दूध और टोफू के संबंध में उपयुक्त सोयाबीन लाइनों और जीनोटाइप की पहचान की गई है। इसी प्रकार देश के प्रजनक बीज उत्पादन कार्यक्रम की समीक्षा की गयी एवं कर आगामी वर्ष के लिए किस्मवार मांग को अंतिम रूप दिया गया। वर्ष 2023 के लिए 15,919 क्विंटल प्रजनक बीज की मांग को पूरा करने का लक्ष्य निर्धारत किया गया एवं तत्संबंधित केन्द्रवार आवंटन किया गया हैं।

प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सम्बंधित एक तकनिकी सत्र में सम्बंधित वैज्ञानिकों ने देश भर में किसानों के खेतों पर 1 एकड़ क्षेत्र के कुल 1800 अग्रिम पंक्ति प्रदर्शनों के आयोजन से सोया कृषकों को नवीनतम तकनीको को अपनाने हेतु प्रेरित किया गया. इन प्रदर्शनों में उन्नत किस्मों, बीज दर, बोवनी के लिए उपयुक्त कतारों की दुरी आदि जैसी पद्धतियों का मूल्याङ्कन किया जाता हैं. इसी प्रकार आदिवासी-उपयोजना के अंतर्गत दूरस्थ क्षेत्र में वंचित आदिवासी किसानों की आजीविका की स्थिति में सुधार लाने के मूल उद्देश्य से विभिन्न कार्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं जिसमे आदिवासी किसानों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रमों के आयोजन, सोयाबीन की खेती पर प्रदर्शन प्लाट तथा खेती के लिए आवश्यक अन्य आदानों का वितरण किया जा रहा हैं. इसके अंतर्गत पूर्वोत्तर क्षेत्र में टोफू / सोया दूध एवं अन्य सोया उत्पादों के लघु स्तर पर आय सृजन गतिविधियों के लिए क्षमता निर्माण के माध्यम से तकनीकी सहायता प्रदान की जा रही हैं ।

बैठक के अंतिम सत्र में संस्थान की कार्यवाह निदेशक डॉ नीता खांडेकर ने “किस्म पहचान समिति” के माध्यम से शिफारिश की गई 6 सोयाबीन किस्मों के नाम घोषित किये गए. इस अवसर पर उन्होंने सोयाबीन से जुड़े सभी वैज्ञानिकों को अधिक प्रयासों के साथ सोया कृषकों की सेवा में सतत प्रयासरत रहने का आवाहन किया.

सोयाबीन की खेती के केंद्र बिंदु मालवा क्षेत्र के इंदौर शहर में आयोजित इस वार्षिक बैठक के अवसर पर विशेष रूप से गठित “किस्म पहचान समिति ने” देश के तीन कृषि-जलवायु क्षेत्रों में खेती के लिए उपयुक्त कुल छह सोयाबीन किस्मों की पहचान की सिफारिश की है। इनमें सोयाबीन किस्म वीएलएस 99 (उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र के लिए), एनआरसी 149 (उत्तरी मैदानी क्षेत्र के लिए) तथा मध्य क्षेत्र के लिए 3 किस्में एनआरसी 152, एनआरसी 150, जेएस 21-72 एवं हिम्सो-1689 की पहचान की गयी हैं। इस वर्ष भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान सोयाबीन की 3 किस्मों की पहचान करने में सफल रहा। सोयाबीन किस्म एनआरसी 149 में उत्तरी मैदानी क्षेत्र के प्रमुख पीला मोज़ेक रोग, राइज़ोक्टोनिया एरियल ब्लाइट के साथ-साथ गर्डल बीटल और पर्णभक्षी कीटों के लिए प्रतिरोधिता हैं । इंदौर से ही विकसित एक अन्य सोयाबीन किस्म एनआरसी 150 जो केवल 91 दिन में परिपक्व होती हैं, सोया गंध के लिए जिम्मेदार लाइपोक्सीजिनेज -2 एंजाइम से मुक्त है तथा चारकोल सड़ांध रोग के लिए प्रतिरोधी है। जबकि एनआरसी 152 नामक किस्म अतिशीघ्र पक्नेवाली (90 दिनों से कम), खाद्य गुणों के लिए उपयुक्त तथा अपौष्टिक क्लुनिट्ज़ ट्रिप्सिंग इनहिबिटर और लाइपोक्सीजेनेस एसिड -2 जैसे अवांछनीय लक्षणों से मुक्त है. मध्य प्रदेश के जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय से सम्बद्ध जबलपुर केंद्र से विकसित सोयाबीन की एक अन्य किस्म जेएस पीला मोज़ेक वायरस, चारकोल रोट, बैक्टीरियल पस्ट्यूल और लीफ स्पॉट रोग के लिए प्रतिरोधी हैं व 98 दिन में पककर उत=अदिक उत्पादन देने में सक्षम हैं.

अंत में सहायक महानिदेशक (तिल एवं दलहन), भाकृअनुप, डॉ संजीव गुप्ता की अध्यक्षता में समापन सत्र का आयोजन किया गया, जिन्होंने विभिन्न केंद्रों के वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तावित तकनीकी एवं अनुसन्धान परीक्षणों के परिणामों को सुनकर प्रसन्नता व्यक्त की और उनके आगामी वर्ष के लिए बहुमूल्य मार्गदर्शन प्रदान किया। इस अवसर पर उन्होंने तकनीकी बैकस्टॉपिंग के साथ-साथ प्रौद्योगिकियों को किसानों के दरवाजे तक ले जाने के लिए ठोस प्रयास करने पर भी जोर दिया।

कार्यक्रम की अंतिम कड़ी में सोयाबीन फसल के अनुसन्धान एवं विकास कार्यक्रमों से जुड़े डॉ सुनील दत्त बिल्लोरे (भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान), डॉ फिलिप वर्गिस (अघरकर रिसर्च इंस्टिट्यूट, पुणे), डॉ जी जे पटेल (आनंद कृषि विश्वविद्यालय, गुजरात) डॉ रामगिरी (कृषि महाविद्यालय सीहोर) वैज्ञानिक को सोसायटी फोर सोयाबीन रिसर्च एंड डेवलपमेंट की ओर से सम्मानित किया गया.