हृदय में अज्ञान और छल-कपट का कचरा भरा रहेगा तो अंदर बैठे परमात्मा के सही दर्शन संभव नहीं

इंदौर, । जैसे दर्पण पर धूल, धुआं और कचरा जमा रहने पर प्रतिबिंब साफ नहीं दिखता, वैसे ही यदि हृदय में अज्ञान और छल-कपट और फरेब का कचरा भरा रहेगा तो अंदर बैठे परमात्मा के सही स्वरूप के दर्शन भी नहीं होंगे। हमारी बुद्धि उल्टा अर्थ निकालने में देरी नहीं करती। मरने के बाद तो सबको मोक्ष मिलता ही है, लेकिन जीवन की धन्यता इस बात में होना चाहिए कि हमें जीते-जी भी मोक्ष या मुक्ति मिल सके। वेदांत का चिंतन और मंथन आत्म साक्षात्कार की ओर प्रवृत्त करने वाला होता है। परमात्मा तो सुख का सागर ही है, उसकी प्रत्येक बूंद सुख की अनुभूति देने वाली होती है।

          ये प्रेरक विचार हैं हरियाणा से आए आदर्श महामंडलेश्वर स्वामी विरागानंद महाराज के, जो उन्होंने आज सुबह एबी रोड, एमजीएम मेडिकल कालेज के पास स्थित श्रीश्री माता आनंदमयी पीठ पर आयोजित चार दिवसीय मातृ जन्म महोत्सव के शुभारंभ सत्र पर आयोजित वेदांत सम्मेलन में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए व्यक्त किए। स्वामी अवधूतानंद  की दैवीय अध्यक्षता में इस सम्मेलन का शुभारंभ मां आनंदमयी पीठ के पीठाधीश्वर स्वामी केदारनाथ महाराज, के सानिध्य में देश के प्रमुख तीर्थ स्थलों से आए संत, विद्वानों ने दीप प्रज्ज्वलन एवं मां आनंदमयी के चित्र पर माल्यार्पण के साथ किया। इसके पूर्व सुबह महामंत्र संकीर्तन एवं मंगला आरती के बाद मां काली एवं ओंकारेश्वर महादेव का अभिषेक पूजन किया गया। मां आनंदमयी के मंदिर का पुष्पों से मनोहारी श्रृंगार भी आकर्षण का केन्द्र बना रहा। महिला भक्त मंडली द्वारा अष्टोत्तर शतनाम पाठ एवं मां चालीसा की सामूहिक प्रस्तुति भी हुई। प्रारंभ में आश्रम के न्यासी मंडल की ओर से जे.पी.फड़िया, मुकेश कचोलिया, डॉ. विजय निचानी, नीलेश मित्तल, मनीष भाया, नरेन्द्र माखीजा, स्वामी परिपूर्णानंद, स्वामी कृष्णानंद आदि ने सभी संत-विद्वानों का स्वागत किया। संचालन स्वामी कृष्णानंद एवं मुकेश कचोलिया ने किया।

        वेदांत सम्मेलन – वेदांत सम्मेलन में उज्जैन से आए स्वामी दिव्यानंद भारती ने कहा कि वेदों का अंतिम भाग वेदांत है, जिसमें 16 हजार मंत्र उपासना एवं 4 हजार मंत्र ज्ञान के हैं। कर्मकांड के 50 हजार मंत्र हैं। ज्ञान के मंत्र सबसे कम हैं। वेदांत हमारे वेदों का निचोड़ है। ज्ञान के मंत्रों में मोक्ष की बात कही गई है। हम स्वयं ही ब्रह्म हैं और यह जानते हुए भी हम ब्रह्म की खोज में जुटे हुए हैं। ब्रह्म और आत्मा एक ही है। परमात्मा की सत्ता अनंत है। मां आनंदमयी, आदि शंकराचार्य और गीता में भगवान कृष्ण ने भी आत्मा के अजर-अमर होने की बात कही है।