गीता भवन में धूमधाम से हुई हनुमान प्राकट्य महोत्सव की महाआरती – महोत्सव का समापन

इंदौर, । राम और हनुमान भारत भूमि के ऐसे आधार स्तंभ हैं, जिनका आदर्श स्वरूप आज भी जन-जन में श्रद्धा, आस्था और वंदना का पात्र है। राम के बिना हनुमान और हनुमान के बिना राम की कल्पना संभव नहीं है। हनुमंत भक्ति में कहीं भी पाखंड, प्रदर्शन या स्पर्धा का भाव नहीं है। यही गुण हमारी भक्ति को भी निर्मल और निष्काम बना सकते है। कर्म में उपासना का सम्पुट होगा तो प्रत्येक कर्म पूजा बन जाएगा। इस जीवन की धन्यता भगवान के साथ जुड़ने में है, मुड़ने में नहीं।

ये दिव्य विचार हैं जगदगुरु रामानंदाचार्य, श्रीमठ काशी पीठाधीश्वर स्वामी रामनरेशाचार्यजी के, जो उन्होंने आज सुबह गीता भवन स्थित हनुमान मंदिर में प्रभु श्रीराम एवं दास शिरोमणि हनुमान प्राकट्य महोत्सव के समापन अवसर पर हनुमानजी की आरती, पूजा एवं अभिषेक के दौरान व्यक्त किए। जगदगुरु के सानिध्य में आज जन्म आरती का उत्सव अत्यंत उल्लास के साथ मनाया गया। गीता भवन ट्रस्ट की ओर से अध्यक्ष राम ऐरन, मंत्री रामविलास राठी, कार्यक्रम संयोजक विष्णु बिंदल, संजय मंगल, प्रेमचंद गोयल, टीकमचंद गर्ग, बालकृष्ण छाबछरिया, राजेश गर्ग केटी,, गोविंद मंगल, आदि ने आचार्यश्री का स्वागत किया। अल सुबह हनुमान मंदिर में रामनरेशाचार्यजी के साथ अभिषेक एवं महाआरती में सैकड़ों भक्त शामिल हुए। स्वयं जगदगुरु ने भक्तों को प्रसाद वितरण किया तदपश्चात राम दरबार मंदिर में भी सैकड़ों भक्तों ने पूजा-अर्चना की।

जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्यजी ने कहा कि भगवान राम और हनुमान ने हमेशा समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के गले लगाया है। उन्होंने हमेशा शोषित, दलित और पीड़ित वनवासी लोगों को अपने साथ जोड़ा। एक शासक के मन में इस वर्ग के प्रति स्नेह और सम्मान, दया और करुणा का यह भाव ही राम भाव है, जिसकी आज पूरे विश्व को जरुरत है। रामानंद संप्रदाय में हनुमंत भक्ति आज भी समाज के सोए हुए वर्ग को जागृत बना रही है। रामकथा मानव जीवन को परम धन्यता प्रदान करने वाली कथा है। यह सम्पूर्ण मानवता के लिए प्राण वायु के समान नितांत आवश्यक है। राम एवं हनुमान की भक्ति, भक्त और भगवान को जोड़ने का सबसे सरल राजपथ है।