अन्नपूर्णा आश्रम पर सात दिवसीय दिव्य रामकथा का मानस एवं कलश यात्रा के साथ हुआ शुभारंभ
इंदौर,। दुनिया में हम गीत तो बहुत गाते हैं, लेकिन जब हम अपनी बात करते हैं तो अहमता, अपनों की बात करते हैं तो ममता और जब राम की बात करते हैं तो समता और दृढ़ता का बोध होता है। रामकथा हमारी तेजस्विता को निश्चित करती है। सुख की लालसा में हमने अब तक दुख के ही आयोजन किए हैं। राम नाम के स्मरण मात्र से चित्त में आनंद की अनुभूति होकर बोझिल चित्त भी हल्का हो जाता है। रामकथा में आना है तो जूतों के साथ अपने अहंकार को भी बाहर छोड़कर आएं। यहां हम बनने नहीं, मिटने आए हैं। रामकथा तभी अंतर्मन में उतरेगी, जब मन में दृढ़ विश्वास होगा। रामकथा वह मंदाकिनी है, जिसमें डूबेंगे तो तर जाएंगे, साधारण नदी में डूबेंगे तो मर जाएंगे।
ये दिव्य विचार हैं दीदी मां के नाम से लोकप्रिय प्रख्यात साध्वी ऋतम्बरा देवी के, जो उन्होंने अन्नपूर्णा आश्रम परिसर में आज से प्रारंभ श्रीराम कथा के शुभारंभ सत्र में व्यक्त किए। प्रारंभ में आयोजन समिति के अध्यक्ष विनोद अग्रवाल, महामंत्री संजय बांकड़ा, प्रमुख संयोजक कवि मुकेश मोलवा एवं रूपकुमार माहेश्वरी, श्याम सिंघल, दिनेश मित्तल, निर्मल अग्रवाल, राधेश्याम बागवाला, किशोर गोयल, टीकमचंद गर्ग, विष्णु बिंदल, मनीष बिसानी, नारायण अग्रवाल, मनोज जैन, अवधेश यादव, मनीष जाखेटिया आदि ने दीदी मां का स्वागत किया। केन्द्रीय मंत्री फग्गनसिंह कुलस्ते भी दीदी मां का स्वागत करने विशेष रूप से कथा स्थल पधारे। अपने स्वागत उदबोदन में अध्यक्ष विनोद अग्रवाल ने अन्नपूर्णा मंदिर के नवनिर्माण की योजना पर प्रकाश डाला। कवि मुकेश मोलवा, महामंडलेश्वर स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरि, किशोर गोयल आदि ने भी आयोजन की रूपरेखा बताई। संचालन संजय बांकड़ा ने किया। समापन अवसर पर शहर के वाल्मिकी बंधुओं का स्वागत भी किया गया। समाजसेवी राधेश्याम बागवाला ने इस अवसर पर अन्नपूर्णा मंदिर के निर्माण कार्य हेतु 21 लाख रुपए का दान देने की घोषणा की।
रामकथा शुभारंभ के पूर्व रणजीत हनुमान मंदिर के पास फलबाग से बैंड-बाजों, ढोल-ताशों, अश्वारोही बालिकाओं सहित भव्य मानस-कलश यात्रा निकाली गई। पीताम्बर वस्त्र में महिलाएं मस्तक पर श्रीफल एवं कलश लेकर तथा श्वेत परिधान में पुरुष रामचरित मानस ग्रंथ को लाल वस्त्र में बांधकर मस्तक पर धारण कर चल रहे थे। देश में पहली बार किसी रामकथा में इस तरह की शोभायात्रा निकाली गई। दीदी मां नरेन्द्र तिवारी मार्ग से इस शोभायात्रा में फूलों से सुसज्जित एक बग्धी में सवार हुईं। अन्नपूर्णा मंदिर स्थित कथा स्थल तक मार्ग में 15 स्थानों पर स्वागत मंच लगाकर दीदी मां एवं भक्तों का पुष्प वर्षा कर गरिमापूर्ण स्वागत किया गया। इस दौरान जगह-जगह रामजी की निकली सवारी, रामजी की लीला है न्यारी… चढ़ गया रे भगवा रंग चढ़ गया… रामजी चले न हनुमान के बिना… नगरी हो या अयोध्या सी… जैसे भजनों पर श्रद्धलु नाचते-गाते हुए कथा स्थल तक पहुंचे। अन्नपूर्णा आश्रम पहुंचने पर आश्रम के न्यासी विनोद अग्रवाल, श्याम सिंघल, स्वामी जयेन्द्रानंद, किशोर गोयल, संजय बांकड़ा, सत्यनारायण शर्मा, कैलाश शर्मा आदि ने दीदी मां की अगवानी की। उन्होंने अन्नपूर्णा मंदिर में अभिषेक एवं दर्श किए तथा महामंडलेश्वर स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरि के बैठक स्थल पहुंचकर उनसे सुभाशीष प्राप्त किए।
दीदी मां ने रामकथा में कहा कि शब्द अपने आप में ब्रह्म हैं, जब शब्दों का दुरुपयोग होता है, छोटा सा दुर्व्यवहार भी हृदय में छप जाता है। बोलता तो कौवा भी है, पर पसंद किसी को नहीं आता। मैना तो और तोता के लिए लोग सोने चांदी के पिंजरे बना लेते हैं, लेकिन कौवों के लिए लकड़ी का पिंजरा भी नहीं बनाया जाता। शब्द वही है जो तत्व से जोड़ने वाले होते हैं। यह तभी संभव है जब विवेकपूर्ण बुद्धि का उदय होगा। हम धर्म भाई, धर्म बहन और धर्म पिता के रिश्ते मानते हैं, लेकिन विचार करें कि धर्मपत्नी किसे मानेंगे। पता लगाएं कि हमारी असली पत्नी कहां है। स्त्री हो या पुरुष, शरीर ‘पुर’ कहलाता है। इसमें रहने वाले जीव को पुरुष की संज्ञा से पुकारा जाता है। आपकी असली पत्नी बोधपूर्ण दैविक बुद्धि है। इस पत्नी के हाथ में मन रूपी बच्चे को छोड़ दो, मेले की तरह घूमकर लौट आएगी। वाणी, अर्थ और शब्द सही दिशा में होना चाहिए। भवानी अर्थात श्रद्धा और शंकर अर्थात विश्वास। हम कहते हैं कि विश्वास अंधा होता है, लेकिन यहां तो भोले के तीन नेत्र हैं। इसलिए विश्वास की स्थापना जागृत अवस्था में होती है।
अपने प्रारंभिक उदबोधन में दीदी मां के नाम से लोकप्रिय साध्वी ऋतम्भरा ने कहा कि अन्नपूर्णा आश्रम के महामंडलेश्वर स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरि के दर्शन कर धन्य महसूस कर रही हूं। संत चापलूसी नहीं करते, चापलूसी राजनीति में होती है, जो अपने सौपान तय करने के लिए की जाती है। संतों के सदकर्म ऐसे होते हैं, जो उन्हें आशीष देने के लिए बाध्य करते हैं। महामंडलेश्वरजी के रूप में मुझे अपने गुरुदेव के दर्शन हो रहे हैं। उनका संकल्प है कि फरवरी 2023 तक अन्नपूर्णा मंदिर का शेष निर्माण कार्य पूरा हो जाए। यह उनका नहीं पूरे इंदौर का संकल्प होना चाहिए। उन्होंने कवि मुकेश मोलवा का उल्लेख करते हुए कहा कि वे कथा की गंगा के भागीरथ बनकर वृंदावन आए थे। दीदी मां ने उनके पुराने शिष्य इंदर पांचाल का भी पुण्य स्मरण किया। उन्होंने आज की शोभायात्रा में रामचरित मानस ग्रंथ को मस्तक पर विराजित कर शोभायात्रा निकालने पर कहा कि जिनके मानस में रामचरित मानस विराजित हो जाती है वे निश्चित ही धन्य हो जाते हैं। इंदौर मेरी कर्म स्थली एवं संघर्ष भूमि है। मेरे पूज्य गुरुदेव (युग पुरुष स्वामी परमानंद गिरि) भी इंदौर के कण-कण पर कृपा करते हैं। आपके बीच यहां आकर मैं स्वयं को धन्य मानती हूं कि प्रभु की चर्चा करने, उनके गीत गाने और इस कथा रूपी मंदाकिनी में डूबने का अवसर मिल रहा है। यह ऐसी नदी है जिसमें डूबेंगे तो तर जाएंगे, सामान्य नदी में डूबेंगे तो मर जाएंगे। उन्होंने शोभायात्रा में शामिल महिलाओं के चेहरे पर मुस्कान का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्हें देंखकर ऐसा लगा कि वे ब्यूटी पार्लर से फेशियल कराकर आई हैं। वाल्मिकी समाज के सम्मान का उल्लेख करते हुए दीदी मां ने कहा कि हम सनातनी लोग किसी को छोटा-बड़ा नहीं मानते। समाज के सभी अंग महत्वपूर्ण होते हैं। समाज की मति, शक्ति, गति और स्थिति, इन चारों की बड़ी महिमा है। रामकथा सबको पूर्ण बनाती है।
कलंकी चंद्रमा को भी जब भोले बाबा अपने शीष पर धारण कर लेते हैं तो वह भी वंदनीय हो जाता है। बोले बाबा रामकथा का प्रवेश द्वार हैं। यह पावन कथा इंदौर के अन्नपूर्णा मंदिर के अधूरे काम को पूरा करेगी ही क्योंकि संत के संकल्प में दृढ़ता होती है। कई मायनों में हम भी अधूरे हैं। हमारे में भी बहुत कुछ अधूरा है। थकावट उसे होती है जो अपने लालसाओं को पूरी करने में जुटे हुए होते हैं, लेकिन जो धर्मध्वजा लेकर राम मंदिर के लिए निकल पड़ा था, उसे कभी थकावट नहीं हुई। जिस संकल्प में कोई विकल्प नहीं होता वह संकल्प सिद्धि के दरवाजों पर ला खड़ा कर देता है। भारत का नेतृत्व सात्विक लोगों के हाथों में होना चाहिए। भगवती अन्नपूर्णा का मंदिर निर्धारित समय अवधि में पूरा होना चाहिए, हमारी संतानें शराब की बोतलों की नहीं, मोहन से प्रीत के नशे में ऐसी डूबें कि सारी उम्र भक्ति का नशा नहीं उतरना चाहिए। तुलसी के पौधे वासनाओं की शराब से नहीं, संकल्पों के गंगाजल से सींचे जाना चाहिए।