दिव्यांगों के जीवन पर रचने, बात करने और समझने से ही बढ़ेगी संवेदनशीलता और मिटेगी दूरी

इंदौर। दिव्यांगों के जीवन के कई पहलुओं से सामान्यजन अनभिज्ञ रहते हैं क्योंकि एक अनकहा शून्य दिव्यांगजन और सामान्य जन के बीच अनजाने ही पसरा रहता है. साहित्य और कलाएँ इस अन्तर को पाटने में महत्वपूर्ण भूमिका निबाह सकते हैं. साहित्य में दिव्यांग विमर्श बढ़े और उसके माध्यम से दिव्यांगों के प्रति संचेतना बढ़े इस उद्देश्य को पूरी तरह समर्पित देश में अपनी तरह का पहला आयोजन “हारा वही जो लड़ा नहीं” इंदौर में आयोजित किया गया था. बहुविध संस्कृतिकर्मी श्री आलोक बाजपेयी, अभ्युदय सांस्कृतिक मंच और इंदौर की अनेक साहित्यिक संस्थाओं की इस पहल की राष्ट्रव्यापी सराहना हुई थी. इस बार मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के संवेदनशील निदेशक डॉ. विकास दवे ने इस क्रम को साहित्य अकादमी के माध्यम से आगे बढ़ाकर म.प्र. साहित्य अकादमी को “दिव्यांग विमर्श” पर केंद्रित आयोजन करने वाली पहली साहित्य अकादमी बना दिया है. अकादमी के तत्वाधान में ‘हारा वही जो लड़ा नहीं’ मंगलवार 15 फरवरी को भोपाल के जनजातीय संग्रहालय में आयोजित होगा। आयोजन में देश के साहित्य की सबसे बड़ी ऑनलाइन लाइब्रेरी कविता कोष और गद्य कोष की स्थापना करने वाले श्री ललित कुमार, सुप्रसिद्ध स्टैंड अप कॉमेडियन एवं मिमिक्री आर्टिस्ट श्री अभय कुमार शर्मा भाग लेंगे, वहीं नेत्रबाधित कवियों का कवि सम्मेलन भी होगा।

दिव्यांगों के जीवन, उनके सुख-दुःख, उनके सरोकारों और सामान्यजन के बीच एक खाई सी बनी हुई है. साहित्य, कलाएँ और फ़िल्में इस अंतर को पाटने का काम कर सकतीं हैं. इसी उद्देश्य को लेकर मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा दिव्यांग विमर्श, दिव्यांग संचेतना और दिव्यांग प्रतिभाओं की मंचीय प्रस्तुति का विशिष्ट आयोजन – हारा वही जो लड़ा नहीं, 15 फ़रवरी को शाम साढ़े पाँच बजे से जनजातीय संग्रहालय, श्यामला हिल्स, भोपाल में आयोजित किया जा रहा है. अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने कहा कि ये एक अनूठा आयोजन जिसमें दिव्यांग विमर्श पर चर्चा भी वे ही करेंगे और प्रस्तुति भी वे ही देंगे जो इस न्यूनता को ईश्वर प्रदत्त उपहार मानकर संघर्ष भी कर रहे हैं और प्रगति पथ पर बढ़ रहे हैं। इस आयोजन के साक्षी बनने से हमारी दिव्यांग संचेतना का विस्तार निश्चित है. आयोजन में देश को सबसे बड़े साहित्यिक कोशों – कविताकोश और गद्यकोष का उपहार देने वाले श्री ललित कुमार दो सत्रों को सम्बोधित करेंगे। ज्ञातव्य है कि पोलियो के आघात के बाद भी श्री ललित कुमार ने साहित्य सेवा के क्षेत्र में हिमालयीन उपलब्धियाँ हासिल की हैं तथा वर्तमान में वे दिव्यांगों को तकनीक का लाभ दिलवाने के क्षेत्र में सक्रिय हैं. कोविड काल में भी उन्होंने ज़रूरतमंदों की सहायता के लिए नेटवर्क बनाकर अपनी तकनीकी विशेषज्ञता का लाभ दिया था. श्री ललित कुमार दिव्यांग विमर्श की ज़रुरत और संभावनाओं के साथ दिव्यांगों को आधुनिक सूचना क्रांति और तकनीकी खोजों का त्वरित लाभ मिलने के विषयक सत्रों को सम्बोधित करेंगे। श्री ललित कुमार के साथ चर्चा करेंगे म.प्र. साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे तथा दिव्यांग संचेतना के लिए लम्बे समय से समर्पित संस्कृतिकर्मी श्री आलोक बाजपेयी। श्री ललित कुमार का भोपाल में यह इस तरह का पहला सम्बोधन होगा तथा म.प्र. साहित्य अकादमी दिव्यांग विमर्श पर केंद्रित आयोजन करने वाली पहली अकादमी है.

“हारा वही जो लड़ा नहीं” के अगले सत्र में हास्य के सागर में गोते लगवाएंगे जाने-माने स्टैंड अप कॉमेडियन श्री अभय कुमार शर्मा। वाराणसी के इस नेत्र बाधित कलाकार ने अपनी तमाम शारीरिक दिक्कतों के बाद भी कॉमेडी जगत में अपना स्थान बनाया है. कई रिएलिटी शोज़ में नज़र आ चुके श्री अभय कुमार अपनी विशिष्ट प्रतिभा से अनेक बॉलीवुड हस्तियों को भी प्रभावित कर चुके हैं तथा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के सम्मुख भी उन्हीं की आवाज़ प्रस्तुत कर चुके हैं. न्यूज़ चैनल्स और साहित्यिक फ़ेस्टिवल्स में भी वे आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. अनेक राजनेताओं की आवाज़ की हूबहू कॉपी करने की प्रतिभा से वे दर्शकों को अचंभित कर देते हैं. इसके पश्चात् अंतिम सत्र में नेत्रबाधित कवियों का कवि सम्मेलन होगा, जिसमें डॉ. मनीष चौधरी (इंदौर), श्री ऋषि राज (सिहोर), श्री राधेश्याम पानवरिया (रायसेन) एवं श्री पीयूष गुप्ता (भोपाल) रचना पाठ करेंगे। ये सभी कवि अपनी रचनात्मकता से प्रभावित करते हैं. दिव्यांग प्रतिभाओं को मंच मिलने की शुरुआत आसानी सी नहीं होती। इस मायने में साहित्य अकादमी का ये प्रयास प्रशंसनीय है. साहित्य अकादमी के श्री राकेश सिंह ने इस आयोजन के लिए विशेष सराहनीय प्रयास किए हैं. जन और सामान्य जन के बीच अन्तर पाटना और दिव्यांगजनों क विविध संस्थाओं के बीच आपसी समन्वय का रास्ता बनाने का उद्देश्य भी इस आयोजन में निहित है. आशा की जानी चाहिए कि देश की अन्य अकादमियाँ भी ऐसे आयोजनों के माध्यम से इन पुनीत उद्देश्यों की पूर्ति में अपनी आहुति देंगी। साहित्य अकादमी के निदेशक श्री विकास दवे ने कहा कि इस अभिनव आयोजन के चारों सत्र यादगार होंगे और दर्शकों को कई प्रकार की भावनाओं से ओत-प्रोत कर देंगे क्योंकि सभी भागीदार असाधारण रूप से प्रतिभाशाली है. आयोजन सभी के खुला और निःशुल्क है तथा इसमें सभी साहित्यप्रेमी एवं जागरूक नागरिक सादर आमंत्रित हैं.
*(बॉक्स ) – इंदौर में हुआ था दिव्यांग विमर्श और संचेतना पर केंद्रित देश का पहला चार दिनी आयोजन*
इंदौर को दिव्यांगों की ज़रूरतों के लिए संचेतना बढ़ाने , साहित्य में दिव्यांग विमर्श को और प्रचलित करने, शारीरिक कमियों के बाद भी अपनी जिजीविषा -सकारात्मकता और सृजन की उत्कंठा से समाज और मानवता को बहुत कुछ देने के साथ अपना अलग मुक़ाम बनाने वाले असल ज़िंदगी के नायकों के सम्मान और दिव्यांग प्रतिभाओं को मंच प्रदान करने की छोटी सी सम्मिलित कोशिश – ‘हारा वही जो लड़ा नहीं’ की शुरुआत का श्रेय जाता है. शहर के बहुविध संस्कृतिकर्मी श्री आलोक बाजपेयी ने शहर की विविध साहित्यिक संस्थाओं, जागरूक नागरिकों, दिव्यांग जनों के हितार्थ कार्य कर रही संस्थाओं और शैक्षणिक संस्थानों को साथ जोड़कर “हारा वही जो लड़ा नहीं” के पहले वर्ष में इंदौर एवं नज़दीकी शहरों में लगभग साढ़े तीन दिनों में इस आयोजन के ग्यारह सत्र किए थे. इस आयोजन की एक विशेषता यह भी थी कि एक ही आयोजन के सत्र विषय वस्तु के अनुरूप अलग -अलग वेन्यूज़ पर आयोजित किए गए थे. दिव्यांगजनों और सामान्यजन की सम्मिलित सांस्कृतिक प्रस्तुति भी इसमें शामिल थी. इस आयोजन से कुछ दिव्यांग प्रतिभाओं को न सिर्फ ख्याति मिली थी बल्कि प्रत्यक्ष रोज़गार के अवसर भी मिले थे और कुछ की प्रशासनिक परेशानियों को दूर करने के लिए सफल प्रयास भी हुए थे. यह सिलसिला इंदौर में कायम रहना चाहिए तथा स्वच्छता की तरह ही दिव्यांग संचेतना और विमर्श में भी इंदौर अपनी पहल को बरक़रार रखकर देश को राह दिखाए इस हेतु प्रयास होने चाहिए।