मानवता की राह में एक कदम — डॉ. रीना रवि मालपानी

लघुकथा

रघु के पापा का पूरा जीवन संघर्षों में बिता। जीवन में अनेकों कटु अनुभव हुए। कभी अपनों से तो कभी अत्यधिक अपनत्व के कारण भी जीवन में कड़वे घूँट पीने को विवश होना पड़ा। पापा का जीवन तो अनुभवों की पाठशाला था, पर इन सभी के बावजूद भी पापा ने कभी हमें जीवन में दाम कमाने को महत्व नहीं दिया। वे सदैव कहते थे की नाम कमाओ। उनके इस मूल मंत्र में एक और तथ्य समाहित था संतोष का, क्योंकि अत्यधिक दाम कमाने की प्रवृत्ति आपमे लालच जगा देती है और संतोष का पाठ हम जीवन में भूल जाते है। रघु चाहता तो केवल पैसा कमाने का विकल्प चुन सकता था पर उसने मुक पशुओं के रहने और ईलाज के लिए परिसर निर्मित किया। सभी असहाय पशुओं को कराहते हुए उस परिसर में लाया जाता और उनके उपचार के बाद रघु को जो आत्मिक शांति मिलती वह तो अनमोल थी।

रघु चाहता तो उस धनराशि से कोई दुकान खरीदता और धनराशि में कई सौ गुना वृद्धि कर सकता था, पर वह जीवन में दाम के प्रति लोभी नहीं था। रघु की दीदी पिता की सीख के अनुसार चाहती तो केवल पूरा समय पैसा कमाने पर दे सकती थी पर उन्होने अपने स्कूल में कुछ नवीन प्रयास किए। गरीब बच्चों की शिक्षा और उनके पोषण के लिए धनराशि खर्च की। हर कार्य में सफलता तुरंत मिले यह संभव नहीं है। जब हम सर्वहित में कुछ प्रयास करते है तो कभी-कभी आलोचना और अपशब्द से भी गुजरना होता है, पर सच्चे मन से किए प्रयास कभी भी निरर्थक सिद्ध नहीं होते। रघु का भाई घर-घर जाता था और जिन लोगों के पास भी अतिरिक्त जूते-चप्पल होते थे वह स्वयं उन्हे इकट्ठा करता था और जरूरतमन्द लोगों को दे दिया करता था। वह अपने आप को बीच की कड़ी बनाकर भी मानवता की तरफ कदम बढ़ा रहा था। रघु के एक दोस्त थे और वे काफी समृद्ध थे पर उनकी दिनचर्या का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा था प्रातः उठकर सबसे पहले जरूरतमंदों को चाय-नाश्ता वितरित करना। वे यह कार्य अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य अनुसार करते थे। वहीं रघु की माँ भी पूरे दिन में क्षमता के अनुरूप भोजन बनाकर भूखे पशुओं को खिलाती थी।

रघु के एक दूर के रिश्तेदार गली में पलने वाले कुत्तों का ईलाज किया करते थे अर्थात उन्हें खुजली और घाव होने पर दवा देना। रघु की मुँह बोली बुआ नवरात्रि में गरीबों के लिए भंडारा करती थी। यह सब कुछ उनकी श्रद्धा पर निर्भर करता था। रघु के मासाजी जरूरतमन्द मजदूरों को एक समय का भोजन कराया करते थे। वहीं मासीजी गरीब बच्चों को नवीन वस्त्र दिया करती थी। रघु की पत्नी गरीब बच्चों को नैतिक शिक्षा का ज्ञान भी दिया करती थी। उसमें सकारात्मक सोच, ऊर्जावान बने रहना एवं लक्ष्यपूर्ति का संदेश निहित था। रघु की दादी मंदिर में प्रभु सेवा में समय बिताया करती थी। प्रभु के लिए सुंदर रंगोली बनाती थी और प्रभु के लिए बनाया गया प्रसाद जरूरतमंदों को प्रेमपूर्वक खिलाती थी। रघु के पापा ने स्वयं बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों के लिए एक गेस्टहाउस बनाया था, वहाँ पर ईलाज करवाते वक्त पीड़ित और उसके परिवारजन रुक सकते है और उसी के साथ वहाँ पर चाय-पानी, भोजन की भी व्यवस्था प्रदान की जाती थी। रघु के अन्य परिवारजन गर्भावस्था से पीड़ित पशुओं की सेवा किया करते थे क्योंकि वे मातृत्व के समय के दर्द को अच्छी तरह जानते थे, इसलिए मानवीय धरातल पर उन्हें जरूरत के अनुसार भोजन दिया करते थे। रघु से प्रेरित होकर उनके मित्रजन भी अपने बच्चों के जन्मदिवस पर हैंडपम्प एवं अस्पतालों में दवाईया वितरित करते थे। इस तरह रघु के पापा ने मानवता की राह पर एक-एक कदम बढ़ाने को सभी को प्रेरित किया।

इस लघु कथा से यह शिक्षा मिलती है की यदि मन में अनुकूल भाव है तो मानवता की राह में चलने का रूप कोई भी हो सकता है। छोटे-छोटे प्रयास भी बड़े आयाम रच सकते है। यदि आने वाली पीढ़ी को छोटी-छोटी जिम्मेदारियों से जोड़ा जाएगा तो मानवता की राह प्रज्वलित होगी और आत्महत्या एवं अवसाद जैसी स्थितियाँ न्यून होगी। आपकी अच्छाई आपको एक नवीन आत्मविश्वास भी प्रदान करती है। मानवयोनि में सब कुछ मिल जाता है पर शायद सुकून बहुत मुश्किल से मिलता है। यह छोटे प्रयास कुछ क्षण के लिए ही सही मन में सुकून का भाव देते है।

डॉ. रीना रवि मालपानी

(कवयित्री एवं लेखिका)