“रिश्तों की तुरपाई (लघुकथा)” – डॉ. रीना रवि मालपानी

लघुकथा

राम सदैव से ही बहुत ही शांत स्वभाव, सुलझी सोच, सकारात्मक दृष्टिकोण और त्याग करने वाला व्यक्ति था। परिवार और दोस्तों की जरूरत पर सदैव मदद करने के लिए तत्पर रहता था। जब बड़ी बहन का रिश्ता तय हुआ तब भी आवश्यक से अधिक उसने तन और धन दोनों से सामर्थ्य से भी ज्यादा मदद की। उसके उपरांत बहन के बच्चों पर भी कभी प्यार लुटाने में कोई कमी नहीं छोड़ी। जब भाई का ब्याह हुआ तो विवाह की व्यवस्था में तन- मन और धन से पूरा समर्पण दिखाया। राम के लिए परिवार के आगे अर्थ की कभी कोई कीमत नहीं थी। जब घर में भतीजी का आगमन हुआ तब राम ने पूरे हर्षोल्लास से उसका स्वागत किया।

राम का निश्छल व्यक्तित्व मित्रों, परिवारजन और बच्चों पर अपनत्व लुटाने वाला ही था। वह कभी भी पैसा और समय दूसरों की खुशियों में नहीं देखता था। राम ने जितना भी धन अर्जित किया वह सब अपनों की खुशियों पर ही खर्च किया। राम ने कभी भी स्वयं के बारे में नहीं सोचा न ही परिवारजन ने उसे अपने बारे में सोचने को प्रेरित किया। पर समय के अनुरूप उसे कुछ कटु अनुभव हुए। उसके भैया-भाभी ने उसके विवाह में हर तरीके से व्यवधान डालने के प्रयास किए। उसकी अच्छाई का सिला यही था की वह जीवनपर्यंत अविवाहित रहें और दूसरों पर खर्चा करता रहें। बड़ी बहन ने बच्चों के लालन-पालन और गृहस्थ जीवन के खर्चों के बारे में कभी राम को सचेत नहीं किया। उसे कभी राम से अत्यधिक खर्च करवाने पर शर्म भी महसूस नहीं हुई। वह केवल राम को आदेश देती थी और वह क्रियान्वयन करता था।

कुछ समय पश्चात राम का जानकी से विवाह हुआ। जानकी राम को पूरी तरह समझ चुकी थी। वह अन्तर्मन से बहुत दुखी थी। अब राम को भी कई कड़वे घूँट पीने पड़े। वह जान गया की कुछ रिश्ते केवल स्वार्थ पर आधारित होते है। अब राम भी जानकी के साथ सत्य को स्वीकार करना समझ चुका था इसलिए रिश्तों में अपनत्व कम होता गया। अब राम और जानकी ने अपने जीवन को नवीन दिशा देने की ओर प्रेरित किया और वे अपने उद्देश्य पूर्ति में लग गए। कई बार अनावश्यक शुभचिंतकों ने रिश्तों की प्रगाढ़ता के लिए तुरपाई का मार्ग सुझाया। पर राम और जानकी यह समझ चुके थे की यदि इतने समय का समर्पण उन्हें दिखाई नहीं दिया। उन्होने केवल उद्देश्य पूर्ति के लिए राम का प्रयोग किया तो ऐसे रिश्तों में तुरपाई की कोई गुंजाइश नहीं होती।

इस लघुकथा से यह शिक्षा मिलती है की ऐसे रिश्ते जो केवल उपयोग के लिए बने हो, उन्हें तुरपाई कर देने से भी वे एक दूसरे के लिए हितकर सिद्ध नहीं हो सकते। अच्छी दुआएँ कहीं से भी भेजी जा सकती है। अपनत्व दिखाकर बुरा करने का प्रयास उचित नहीं। समय के अनुरूप परिस्थितियों के विश्लेषण से सहीं निर्णय को स्वीकार करना ही श्रेष्ठतम है। यदि हमें अच्छाई देखने की आदत नहीं है तो रिश्तों की तुरपाई कर देने से भी किसी का स्वभाव नहीं बदलने वाला।

डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)