राजा – महाराजा “मुख्यमंत्री” मेकर साल 2021 में भी राजा और महाराजा ही रहे सत्ता के केंद्र बिंदु

रितेश मेहता / नई दिल्ली

मध्यप्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य में वर्ष 2021 राज्य के मुख्यमंत्री मेकर “राजा” दिग्विजय सिंह और “महाराजा” ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए काफी शुभंकर साबित हुआ । प्रदेश की राजनीति पर इन दोनों नेताओं के जिक्र के बगैर चर्चा बेमानी है, क्योंकि वर्ष 2018 में कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद पर काबिज कराने में दिग्विजय सिंह का खुला समर्थन था। तो शिवराज सिंह की चौथी बार ताजपोशी में सिर्फ और सिर्फ सिंधिया के समर्थक की निर्णायक भूमिका रही । यह भी कटु सत्य है, कि दोनों ही नेता साफ तौर पर मुख्यमंत्री मेकर के तौर पर उभर कर सामने आए हैं । प्रदेश की राजनीति के केंद्र बिंदु राजा दिग्विजय सिंह ने वर्ष 2018 में कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनवा कर अपना कर्ज चुकाया था। वही 2020 में राजा और महाराजा के राज्यसभा में पहुंचने की कशमकश ने प्रादेशिक स्तर पर सत्ता के उठापटक कि कीमत पर दोनों ही एक साथ राज्यसभा पहुंचे ।बस फर्क सिर्फ इतना था, सिंधिया का राजनीतिक दल बदल गया और नीचे निजाम। इस बार महाराजा मुख्यमंत्री मेकर बने ।
सरसरी तौर पर देखा जाए तो राजा दिग्विजय सिंह का वर्ष 2021 में भी केंद्र से लेकर प्रदेश तक राजनीतिक दबाव बरकरार रहा, चाहे बात पैगसीस या राष्ट्रीय स्तर पर देश व्यापी महंगाई के खिलाफ जन जागरण अभियान या तथ्यात्मक तौर पर संघ को लगातार उलझन में डालने की। तो महाराज ने नई पार्टी के अंदर अपने राजनीतिक कुनबे को जो सम्मानजनक स्थायीत्व प्रदान किया,उससे वे एक मंझे हुए परिपक्व राजनेता के तौर पर उभरे है।
हालांकि महाराज के तमाम समर्थक विधायको के मंत्री बनने के साथ ही हारे हुए नेताओं को निगम मंडलों में एक तरफा नियुक्ति से भाजपा नेताओं में असंतोष है। लेकिन राजनीतिक जानकारों का कहना है, यह कटु सत्य है कि सत्ता तो महाराज की वजह से ही है ।
वर्ष 2024 25 में अपने शताब्दी वर्ष को पूरे हर्षोल्लास से मनाने की तैयारी में जुटा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ किसी भी कीमत पर अपने गढ़ मध्यप्रदेश में सरकार गवाना नहीं चाहता। जिसके चलते एक खास रणनीति के तहत महाराज को एक गारंटेड ब्रांड के तौर पर भाजपा में स्थापित किया जा रहा है, ताकि 2023 की विधानसभा चुनावी बेला अगर महामारी,महंगाई और बेरोजगारी जैसे ज्वलंत मुद्दे हावी हुए तो प्रदेश में कांग्रेस से असंतुष्ट जीताऊ नेताओं को सिंधिया लामबंद कर भाजपा को पुनः सत्तासीन कराने में कारगर साबित हो। कुल मिलाकर मध्य प्रदेश की राजनीतिक बिसात पर “ब्लू ब्लड” के सियासी स्ट्रोक्स महसूस तो होते हैं, पर दिखाई नहीं देते।
अब तक के राजनीतिक गुणा भाग को देखते हुए कहा जा सकता है, की कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए सत्ता के द्वार राजा और महाराजा की चाबी से ही खुलेंगे और बंद होंगे। क्योंकि सियासत इनका पेशा नहीं पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ने वाली परंपरा है। शायद इसीलिए एक पीढ़ी की लोकतांत्रिक व्यवस्था में कद्दावर नेता “ब्लू ब्लड” के ना समझने वाले स्ट्रोक्स के कुछ साइलेंट,तो कुछ वाइब्रेशन मोड़ तो कुछ हमेशा के लिए एयरोप्लेन मोड़ में चले जाते है।