खाड़ी के मंदिर पर भागवत ज्ञानयज्ञ के समापन पर पूरे विश्व को निरोगी रखने की मंगलकामना

इंदौर। मन, वचन और कर्म से जीव मात्र के प्रति दया, करुणा और स्नेह का मनोरथ ही हमें धर्म और नीति के रास्ते से मोक्ष की मंजिल तक पहुंचा सकता है। भक्ति और धर्म एक-दूजे के पर्याय हैं। जिस भक्ति और सेवा में लोक कल्याण का भाव नहीं होता, वह प्रकल्प पाप जैसा माना जाता है। भक्ति और सेवा वही फलीभूत होगी, जिसमें सबके कल्याण और भले का भाव होगा। कृष्ण जैसे राजा और सुदामा जैसे मित्र इस युग में दुर्लभ ही हैं। भगवान का कोई सखा कभी गरीब नहीं रह सकता।

      मालवा के प्रख्यात भागवताचार्य पं. अनिल शर्मा के, जो उन्होंने आज लोहारपट्टी स्थित श्रीजी कल्याणधाम, खाड़ी के मंदिर पर चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ के समापन सत्र में व्यक्त किए। इस अवसर पर महामंडलेश्वर स्वामी रामचरणदास महाराज के सानिध्य में विधायक संजय शुक्ला, पं. योगेन्द्र महंत, निरंजनसिंह चौहान गुड्डू, दीपक जैन टीनू, कमलेश खंडेलवाल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया।

       भागवत के विभिन्न प्रसंगों की व्याख्या के दौरान पं. शर्मा ने कहा कि कृष्ण और सुदामा की मैत्री राजा और प्रजा के मिलन की प्रतीक है। हमारे वर्तमान शासकों को भी इस प्रसंग से सबक लेना चाहिए और अपने आसपास के सुदमाओं के लिए अपने मन में आत्मीयता और सम्मान के भाव रखना चाहिए। जिस दिन ऐसा होने लगेगा, हमारा प्रजातंत्र भी सार्थक बन जाएगा। कृष्ण सुदामा की मैत्री में कोई स्वार्थ नहीं था। भगवान जिसके मित्र हों वह कभी गरीब हो ही नहीं सकता। भागवत मनुष्य को सत्य की राह पर प्रवृत्त कर उसकी कमजोरियों से मुक्ति दिलाती है।