विवाह गृहस्थ जीवन का प्रवेश द्वार, नारी  शक्ति के प्रति  प्रभु के मंगल भाव का प्रतीक रूक्मणी विवाह

विवाह गृहस्थ जीवन का प्रवेश द्वार, नारी  शक्ति के
प्रति  प्रभु के मंगल भाव का प्रतीक रूक्मणी विवाह

इंदौर। रुक्मणी विवाह भगवान के मन में नारी शक्ति के प्रति मंगल भाव का प्रतीक है। विवाह गृहस्थ जीवन का प्रवेश द्वार तो है ही, सनातन धर्मियों की बुनियाद को भी मजबूती देने वाला सबसे श्रेष्ठ संस्कार है। भगवान तन का नहीं, मन का सौंदर्य देखते हैं। हमारी संस्कृति में विवाह सात जन्मों तक चलता है, जबकि पश्चिमी देशों में सात माह और सात दिन की भी गारंटी नहीं होती। आज इसी कारण पश्चिमी देशों में सामाजिक एवं नैतिक मूल्य टूट रहे हैं।

       लोहारपट्टी स्थित श्रीजी कल्याणधाम, खाड़ी के मंदिर पर चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में मालवा के प्रख्यात भागवताचार्य पं. अनिल शर्मा ने उक्त बातें कहीं। ज्ञान यज्ञ के साथ विद्वान आचार्यों द्वारा भागवत का मूल पारायण भी किया जा रहा है। संध्या को रूक्मणी विवाह का उत्सव धूमधाम से मनाया गया। जैसे ही भगवान कृष्ण ने रूक्मणी को वरमाला पहनाई, कथा स्थल भगवान के जयघोष से गूंज उठा। भक्तों, महिलाओं ने भजनों पर नाचते-गाते हुए अपनी खुशियां व्यक्त की। इसके पूर्व वर एवं वधू पक्ष बने भक्तों ने एक दूसरे का स्वागत सत्कार भी किया। कथा शुभारंभ के पूर्व महामंडलेश्वर स्वामी रामचरणदास महाराज एवं महामंडलेश्वर स्वामी राधे-राधे बाबा के सानिध्य में सांसद शंकर लालवानी, विधायक रमेश मेंदोला, राष्ट्रकवि पं.सत्यनारायण सत्तन, निरंजनसिंह चौहान गुड्डू, कमलेश खंडेलवाल, आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया।

       पं. शर्मा ने कहा कि हम संस्कारों से बंधे हुए हैं। जन्म, मुंडन, अन्नप्राशन, शिक्षारंभ से लेकर विवाह के लिए भी मुहूर्त और तिथि देखकर काम करते हैं, क्योंकि हमारी आस्था और श्रद्धा अपनी परंपराओं में भी है। दुनिया के किसी और देश में यह सब नहीं होता है। पश्चिमी देशों में तो विवाह के पूर्व ही तलाक की नौबत आ जाती है या विवाह सात दिन भी नहीं चल पाता। यही कारण है कि अब भी अनेक विदेशी जोड़े भारत आकर हमारी पद्धति से विवाह करना चाहते हैं जो भारतीय संस्कृति और परंपराओं के लिए गौरव की बात है। वहां चार लोग भी एक परिवार में चार दिन साथ नहीं रह सकते, हम चालीस सदस्यों का परिवार चार पीढ़ियों तक साथ चलाते