बिजासन रोड स्थित अखंडधाम पर 54वें अ.भा. अखंड वेदांत संत सम्मेलन के शुभारंभ में लगा संतों का जमघट
इंदौर, । वेदांत का चिंतन दुर्लभ मानव जीवन को श्रेष्ठता की ओर प्रवृत्त करता है। भारतीय वेदों और उपनिषदों के सूत्र हर युग में प्रासंगिक होते हैं। यह देश के महापुरुषों की महिमा का ही प्रमाण है कि आज भी सदकर्मों का प्रवाह निरंतर जारी है। हमारे शरीर की ज्ञानेन्द्रियां और कर्मेन्द्रियां सदकर्मों में प्रयुक्त होना चाहिए तभी जीवन की धन्यता होगी।
जगदगुरु शंकराचार्य, भानपुरा पीठाधीश्वर स्वामी ज्ञानानंद तीर्थ ने आज बिजासन रोड स्थित अखंड धाम आश्रम पर 54वें अ.भा. अखंड वेदांत संत सम्मेलन के शुभारंभ समारोह में संबोधित करते हुए उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य, जगदगुरु स्वामी रामदयाल महाराज के मुख्यातिथ्य, चित्रकूट पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी दिव्यानंद महाराज की अध्यक्षता में शंकराचार्यजी ने दीप प्रज्ज्वलन कर सम्मेलन का शुभारंभ किया। इस अवसर पर अहमदाबाद के निर्वाण पीठाधीश्वर, आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विशोकानंद भारती एवं मुंबई से आए महामंडलेश्वर स्वामी चिदम्बरानंद सरस्वती, पं. बलराम शास्त्री ‘ बच्चा गुरु’, बालयोगी उमेशनाथ भी विशेष रूप से उपस्थित थे। राज्य मेला विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष माखनसिंह, समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, विष्णु बिंदल, राजेश बंसल, बालकृष्ण छाबछरिया, गोलू शुक्ला, नवनीत शुक्ला विशेष अतिथि थे। प्रारंभ में आश्रम के महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी चेतन स्वरूप, अध्यक्ष हरि अग्रवाल, विजयसिंह परिहार, सचिन सांखला, आदित्य सांखला, मोहन गर्ग हैदराबादी, स्वामी राजानंद स्वामी दुर्गानंद, मोहनलाल सोनी, सरस्वती पेंढारकर, सुश्री किरण ओझा आदि ने सभी संतों एवं अतिथियों का स्वागत किया। संचालन किया अध्यक्ष हरि अग्रवाल ने। श्री श्रीविद्याधाम स्थित गिरिजानंग वेद-वेदांग विद्यापीठ के वेदपाठी छात्रों द्वारा स्वस्ति वाचन किया गया। संत सम्मेलन में बड़ी संख्या में संत एवं विद्वान आए हुए हैं जो प्रतिदिन दोपहर 2 से सायं 6 बजे तक अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा करेंगे।
प्रवचन – जगदगुरु स्वामी रामदयाल महाराज ने कहा कि अंतिम संस्कार शरीर का होता है, आत्मा का नहीं। आत्मा अजर-अमर मानी गई है। हम संसार में भले ही खंड-खंड बंटे हुए हों, अखंड वेदांत संत सम्मेलन के मंच पर आकर हम सब अखंड की श्रेणी में आ जाते हैं। आज राष्ट्र को अखंड एकता, सदभाव और श्रेष्ठता की जरुरत है। हमारी नई पौध को भी समझना चाहिए कि भ्रष्टाचार, अत्याचार और महिलाओं के साथ दुराचार करने वाले लोग राष्ट्रद्रोही और राष्ट्र विरोधी हैं। जो बच्चे हमारी अंगुली पकड़कर मंदिर गए और जिन्होंने विरासत में अपना कारोबार संभाला आज वे बच्चे मां-बाप की क्यों नहीं सुनते, इस पर भी सोचने की जरुरत है। इंसान के अंदर इंसान मिले, यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। हमारे शास्त्रों ने भी मानव को मनुष्य बनाने की बातें कही है। हम धर्म की जय, अधर्म के नाश जैसे उदघोष तो हर धर्मसभा में करते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि न तो धर्म की जय हो रही है और न ही अधर्म का नाश। वेदांत का चिंतन अशिक्षा के अंधकार को दूर करने में सहायक बन सकता है। हम संपूर्ण विश्व को ज्ञान देने वाले विश्व गुरु कहलाते हैं, लेकिन आज देश में जो तत्व आतंक और उधम मचा रहे हैं, उनके इलाज के लिए भी हमें चिंतन करना होगा। वेदांत राष्ट्रधर्म को सकारात्मक रूप से आत्मसात करने का सशक्त माध्यम है। मुंबई से आए महामंडलेश्वर स्वामी चिदम्बरानंद सरस्वती ने कहा कि इंदौर और अखंड धाम की भूमि पर घर बैठे संतों के दर्शन का यह दुर्लभ अवसर है। संत दर्शन के साथ मार्गदर्शन भी देते हैं। अपनी संस्कृति और संस्कार से जुड़ेंगे तो हमारे कर्मों में भी श्रेष्ठता आएगी। हम सबका लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति है, जो धर्म के रास्ते पर चलकर ही प्राप्त होगा। हमने धर्म के प्रति उपेक्षा का व्यवहार चला रखा है। अर्थ और काम को हमने अपनी प्राथमिकता में ले लिया है। यही कारण है कि धर्म के मामले में आज हम बहुत सी विसंगतियों में उलझे हुए हैं। अखंड वेदांत संत सम्मेलन के माध्यम से धर्म की दृढ़ता का चिंतन भी करना चाहिए। पं. बलराम शास्त्री ‘बच्चा गुरु‘ ने कहा कि जैसे विराट वृक्ष की छायां में बैठकर शांति की अनुभूति होती है वैसे ही संत सम्मेलन में भी शांति और सुकून की प्राप्ति होती है। चित्रकूट पीठाधीश्वर डॉ. स्वामी दिव्यानंद के मार्गदर्शन में आज देशभर में ढाई से अधिक आश्रमों और वहां गौशाला एवं अन्न क्षेत्र का संचालन हो रहा है, यह बहुत बड़ी सेवा है। वेदांत का चिंतन सेवा के लिए भी करना चाहिए। अहमदाबाद से आए महामंडलेश्वर स्वामी विशोकानंद ने कहा कि वेदांत सत्य का बोध कराता है। हमारा पहला लक्ष्य सच्चिदानंद है। सद, चित्त और आनंद का नाम ही सच्चिदानंद है। वेदांत सनातन धर्म का पालन करने की ओर ले जाता है। वेदांत का आरंभ करने वाले सत्य के शोधक होना चाहिए। संशय और भ्रांतियों का निराकरण वेदांत के दर्शन से ही संभव है। संत सम्मेलन के मंच का संचालन स्वामी नारायणानंद ने किया।