भा.कृ.अनु.प.- भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर के 35वें स्थापना दिवस का आयोजन सम्पन्न

इंदौर । सोयाबीन अनुसन्धान एवं विकास कार्यक्रमों के समन्वयन हेतु इंदौर स्थित देश के लोकप्रिय शीर्षस्थ “भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर” ने आज अपना 35 वां स्थापना दिवस मनाया इसमें भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के शीर्षस्थ अधिकारी माननीय डॉ. तिलक राज शर्मा, उप महानिदेशक (फसल विज्ञान), डॉ संजीव गुप्ता, सहायक महानिदेशक (तिलहन और दलहन), डॉ. एसके शर्मा, (सीएसके हिमाचल प्रदेश कृषि विश्व विद्यालय, पालमपुर के पूर्व कुलपति और आईसीएआर-आईआईएसआर की अनुसंधान सलाहकार समिति के अध्यक्ष) जिन्होंने वर्चुअल मोड से कार्यक्रम में भाग लेकर कार्यक्रम को संबोधित किया. जबकि संस्थान परिसर में आयोजित मुख्य कार्यक्रम में डॉ आरआर हंचिनाल पूर्व अध्यक्ष, पौध विविधता संरक्षण और कृषक अधिकार अधिनियम (पीपीवीएफआरए) तथा पूर्व कुलपति, कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, धारवाड़, श्री डीएन पाठक, कार्यकारी निदेशक, सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) एवं देश भर में फैले सोयाबीन पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के विभिन्न केंद्रों से संबंधित 100 से अधिक शोधकर्ता, संस्थान के वर्तमान में कार्यरत एवं सेवानिवृत्त कर्मचारी ने भाग लिया. इस कार्यक्रम में संस्थान द्वारा मध्य प्रदेश के विभिन्न जिलो में क्रियान्वित आदिवासी उपयोजना/अनुसूचित जाति परियोजना से अधिकाधिक उत्पादन प्राप्त करने वाले सोया कृषकों को प्रगतिशील पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया.
कार्यक्रम के प्रारंभ में अपने स्वागत भाषण में संस्थान की कार्यवाहक निदेशक डॉ नीता खांडेकर द्वारा विगत कुछ वर्षों के दौरान संस्थान की शोध उपलब्धियों पर संक्षिप्त प्रस्तुतीकरण किया गया। उन्होंने कहा कि संस्थान पहली बार सोयाबीन की कुल 27 उन्नत किस्मों को भारत सरकार द्वारा अधिसूचित करने में सफल रहा है जो सोयाबीन के लिए एक रिकॉर्ड है। इनमें कम परिपक्वता अवधि, उच्च उपज, खाद्य गुणों के लिए उपयुक्त तथा जैविक और अजैविक कारकों के प्रतिरोध वाली सोयाबीन की 9 किस्में जैसे एनआरसी 128, एनआरसी 130, एनआरसी 132, एनआरसी 136, एनआरसी 138, एनआरसी 142,एनआरसी 147, एनआरसीएसएल 1, MACSNRC-1667 शामिल हैं.

समारोह के विशिष्ट अतिथि डॉ. संजीव गुप्ता, ने प्रौद्योगिकियों के साथ-साथ किस्मों के विकास में योगदान में आईआईएसआर के वैज्ञानिकों के बारे में संतोष व्यक्त किया, जिससे कृषकों द्वारा वर्तमान में अनुभव की जाने वाली प्रतिकूल मौसम की स्थिति के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने में मदद मिलेगी। अन्य विशिष्ठ अतिथि श्री पाठक ने सोयाबीन की नई विकसित उन्नत किस्मों को गरीब से लघु और सीमांत किसानों तक पहुंचाने पर जोर दिया। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि ऐसा करने के लिए अनुसंधान वैज्ञानिकों,विस्तार कार्यकर्ताओं, किसानों और निजी खाद्य उद्योगों के बीच समेकित प्रयासों की सख्त जरूरत है।
इस वर्ष के स्थापना दिवस कार्यक्रम के अवसर पर डॉ प्रेम स्वरूप भटनागर द्वितीय स्मृति व्याख्यान, डॉ. टी.आर. शर्मा, माननीय उप महानिदेशक,भाकृअनुप द्वारा दिया गया। उन्होंने मार्कर असिस्टेड ब्रीडिंग,जीनोम एडिटिंग तकनीक, जीनोम वाइड एसोसिएशन स्टडीज (जीडब्ल्यूएएस) जैसी नई प्रजनन तकनीकों के उपयोग के बारे में जानकारी दी और सोयाबीन की फसल में उत्पादकता वृद्धि के लिए ट्रांसजेनिक विकास के महत्त्व पर प्रकाश डाला। संस्थान के संस्थापक निदेशक स्वर्गीय डॉ पीएस भटनागर की स्मृति में आयोजित इस व्याख्यान में डॉ शर्मा ने न केवल भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान में, विश्व स्तर की बुनियादी सुविधाओं की स्थापना एवं, सोयाबीन उत्पादन प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए अनुसंधान कार्यक्रमों में संस्थान के योगदान की सराहना की। उन्होंने कहा कि भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान के समुचित प्रयासों से मध्य भारत के फसल परिदृश्य में क्रांति ला दी है। डॉ. शर्मा के अनुसार उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ क्षेत्र में होने वाली वृद्धि भी आवश्यक हैं, जिससे खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता हेतु सहायता मिलेगी। उन्होंने कहा कि देश के उत्पादन और उत्पादकता में सुधार के लिए 10 वर्ष से अधिक पुरानी सोयाबीन की किस्मों को नई उन्नत किस्मों से बदला जाना चाहिए।
इस अवसर पर संस्थान ने विभिन्न श्रेणियों के अपने सेवानिवृत्त कर्मचारियों को भी सम्मानित किया,
संस्थान ने चार प्रकाशन जारी किए हैं, जिसमे शामिल हैं राजभाषा पत्रिका “सोया वृत्तिका ” – जिसमें संस्थान के किसानों, शोधकर्ताओं, कर्मचारियों के लेख, कविताएं और विचार शामिल हैं; “सोयाबीन पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना का फ्रंट लाइन प्रदर्शन” पर ई-पुस्तक; विस्तार बुलेटिन “सोयाबीन की उन्नत खेती, नवीनतम पद्धतियाँ एवं तकनिकी अनुशंसाएं” तथा “सोयाबीन में जैविक तनावों का प्रबंधन”, ” सोयाबीन भंडारन तकनिकी” और ” सोयाबीन का अंकुर परीक्षण कैसे करे?” पर विस्तार फोल्डर।
समारोह के अध्यक्ष डॉ. आर. आर. हंचिनल ने अपनी टिप्पणी में उल्लेख किया कि किसान अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए प्रति वर्ष दो से तीन फसलें लेने में अधिक रुचि रखते हैं जो कि जल्दी परिपक्व होने वाली किस्मों को विकसित करके प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि आधुनिक जीन पिरामिडिंग तकनीक की मदद से सोयाबीन की लोकप्रिय किस्मों की कई विशेषताओं को जोड़कर बेहतर बनाया जा सकता है। इसके साथ ही उन्होंने सोयाबीन की पैदावार बढ़ाने के लिए कुछ शोध क्षेत्रों जैसे प्रकाश संवेदनशीलता, रोग प्रतिरोधक क्षमता और पोषक तत्वों की उपलब्धता को और अधिक गहराई से समझने के लिए कहा।
स्थापना दिवस समारोह कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद् ज्ञापन डॉ. ज्ञानेश कुमार सातपुते, प्रधान वैज्ञानिक द्वारा किया गया। इस वर्ष संस्थान में कुल 9 उधमियों के साथ एग्री बिज़नेस इन्क्यूबेशन सेंटर के माध्यम से संस्थान द्वारा विकसित तकनीकी के व्यवसायीकरण हेतु एम ओ यू हस्ताक्षरित किये गए| कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में संस्थान के कर्मचारियों एवं शोध छात्र-छात्रों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति के साथ राष्ट्रगान के साथ समापन हुआ।