गीताभवन में भजनों पर थिरकते भक्तों ने निकाली
भागवत की शोभायात्रा,
इंदौर, । गीताभवन परिसर में आज सात दिवसीय मोक्षदायी भागवत का शुभारंभ हुआ। पहली बार यहां 51 भागवत पोथी की स्थापना कर उनका पूजन भी किया गया। पगड़ी और दुपटटों के साथ धवल वस्त्रों में सजे पुरूष और लाल-पीली चुनरी में सज धज कर आई महिलाओं ने मस्तक पर भागवत एवं कलश रख कर गीताभवन परिसर में ही नाचते गाते एवं गरबा गीतों पर थिरकते हुए शोभायात्रा निकाली। वृंदावन के महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद एवं इंदौर की बेटी के नाम से प्रख्यात साध्वी कृष्णानंद ने इस अवस पर कहा कि भागवत अर्पण, तर्पण और समर्पण की कथा है। भागवत में बैठना बड़ी बात नहीं है, बड़ी बात तो यह है कि भागवत हमारे अंदर कितना बैठी । भागवत जीवन को अलंकृत करने के गहनों से भरा महासागर है, जिसमें जितना गहरा उतरेंगे, उतने अधिक हीरे मोती हमारे हाथ लगेंगे।
संस्था अग्रश्री कपल्स ग्रुप की मेजबानी में हो रहे इस दिव्य आयोजन में अग्रवाल समाज के लगभग सभी वरिष्ठजन और सभी प्रमुख संगठनों के पदाधिकारी बड़ी संख्या मंे मौजूद रहे बल्कि भागवत के पोथी पूजन उत्सव के यजमान भी बने । कपल्स ग्रुप की स्वाति-राजेश मंगल एवं शीतल-रवि अग्रवाल ने बताया कि वरिष्ठ समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, बालकृष्ण छाबछरिया, सुभाष बजरंग, राजेश बंसल, किशोर गोयल, राजेंद्र समाधान सहित अनेक बंधुओं ने पहले महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद के सानिध्य में भागवत पोथी के पूजन का संकल्प किया, फिर शोभा यात्रा में शामिल हुए । यहां 6 अक्टू. तक भागवत कथा के साथ 51 भागवत का पारायण एवं पूर्वजों के निमित्त पितृ पक्ष में तर्पण भी होगा। 51 ब्राहम्ण यहां प्रतिदिन भागवत का मूल पारायण भी करेंगे। कथा शुभारंभ अवसर पर समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, सुभाष गोयल स्वाति-राजेश मंगल एवं शीतल-रवि अग्रवाल ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच व्यासपीठ का पूजन किया। स्वामी भास्करानंद ने इंदौर के उत्सव प्रेम की चर्चा करते हुए सबके मंगल की कामना व्यक्त की।
साध्वी कृष्णानंद ने भागवत की महत्ता बताते हुए कहा कि ज्ञान की भूमि काशी, भक्ति की भूमि वृंदावन, वैराग्य एवं त्याग की भूमि अयोध्या है। भागवत भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का समेवश है। त्याग करना आसान काम नहीं है। त्याग प्रदर्शन की वस्तु नहीं है। भागवत में वह सब कुछ है, जो हम चाहते हैं लेकिन यह तभी संभव होगा जब हम श्रद्धा और विश्वास के साथ भागवत की शरणागति प्राप्त करें। लोग कहते हैं कि हमने पचासों बार भागवत सुन रखी है तो ऐसे लोगों से पुछना चाहिए कि उनके जीवन में क्या बदलाव आया है। भागवत में तो हम लोग रोज ही बैठते हैं लेकिन सवाल यह है कि भागवत हमारे अंदर कितनी बैठी है। जीवन में जबतक बदलाव नहीं आएगा तब तक हम कितना ही सुने, सार्थक नहीं होगा।
उन्होने कहा कि भागवत में अर्पण, तर्पण और समर्पण की कथा है। समाज को हम कुछ दें तो यह अर्पण, अपनों के लिए कुछ दें तो तर्पण और हम स्वयं को कुछ दें तो उसे समर्पण कहा जाता हैं। ये तीनों ही बातेे मनुष्य को परिपूर्ण बनाती है। अपने माता-पिता के प्रति जो संतान कृतज्ञ नहीं हो सकती, ऐसी संतान खुद भी अपनी संतान से दुखी रहेगी। हम बच्चों को शिक्षा और संपत्ति के साथ संस्कार भी दे अन्यथा ऐसी शिक्षा और संपत्ति किसी काम नहीं आ पाएगी। मृत्यु के बाद स्वर्गवासी माता-पिता के चित्र को हम माला पहनाते हैं, छप्पन भोग लगाते हैं। ऐसे बच्चे उनके जीते-जी यह सब क्यों नहीं करते। माता-पिता तो स्वर्ग में चले गए जो आपकी यह श्रद्धा देख भी नहीं सकते। बेहतर यही ं होगा कि अपने माता-पिता के प्रति श्रद्धा का भाव उनके जीवन काल में भी बनाएं रखें । यह श्रद्धा ही सच्चा श्राद्ध है।
6 को सुदामा चरित्र एवं फूलों की होली तथा हवन एवं पूर्णाहुति के साथ समापन होगा।