ससुर की हठधर्मिता से टूटता रिश्ता जुड़ा वन स्टॉप सैंटर से

“ससुर की हठधर्मिता से टूटता रिश्ता जुड़ा वन स्टॉप सैंटर से””

आजकल की आप धापी भरी जिंदगी में छोटी छोटी समस्याओं से कम होता भावनात्मक जुड़ाव कब विकराल रूप धारण कर संबंधों को दीमक बन खाने लगे ये सुशिक्षित व्यक्ति भी समझ नहीं पाते।
इसी तरह के मामले में परिचित की सलाह पर एक युवती ने प्रशासक डॉ वंचना सिंह परिहार जी से फोन पर संपर्क किया।युवती बहुत परेशान और भावनात्मक रूप से उद्वेलित थी।बातचीत के दौरान ही डॉक्टर परिहार ने उसे दिलासा दिया और तुरन्त उसे वन स्टाॅप सेन्टर पर संपर्क कर परामर्श के लिए आवेदन करने के लिए कहा।
केन्द्र पर आकर औपचारिकता पूर्ण कर डाॅ परिहार ने स्वयं उससे चर्चा की तत्पश्चात उसे सुश्री अलका फणसे के पास काउंसलिंग के लिए भेजा। युवती के पति को भी तुरत फुरत केन्द्र पर बुलाया गया। दोनों का एकल काउंसलिंग सत्र लिया गया, तब यह बात सामने आई की युवती घर की जिम्मेदारी, बच्चे की परवरिश में इतनी थक जाती है और फिर ससुर का ताना तुम करती ही क्या हो दिन भर रात को भी बच्चे को मेरा बेटा ही सम्हालता है।साथ ही ससुर जो अकेले हैं वो बहु के हाथ का खाना पसंद नही करते हैं, इन बातों ने युवती को भावनात्मक रूप से परेशान कर रखा था जिसका असर उसके और पति के रिश्ते पर पड़ रहा था।पति भी शिकायतों से परेशान होकर तो फिर निकल जाओ, मुझे अभी सोने दो, मुझे अभी बात नहीं करनी ऐसा कह देता, इस तरह दोनो भावनात्मक रूप से दूर होने लगे। पति भी पत्नी और पिता के बीच सामंजस्य बिठाने की कवायद में थक गया था।
काउंसलिंग के दौरान दोनों ही पति पत्नी को समझाया गया की हर व्यक्ति खुद में अनोखा होता है, उसकी भावनात्मक और शारीरिक आवश्यकताएं अलग होती हैं, रिश्ते में बंधना याने एक दूसरे को समझ कर उसकी आवश्यकता पूर्ति में सहायक होना साथ ही ध्यान रखना की हम किसी को मजबूर न करे कुछ भी मान्य करने के लिए। फिर दोनों की संयुक्त काउंसलिंग की गई, तत्पश्चात उन्हे पुन: 8 दिन के अंतराल से फिर परामर्श के लिए बुलाया गया। पिता के मन को संयम के साथ कैसे जीते इसपर भी दोनों को सलाह दी गई। युवती को अपने स्वयं के लिए कुछ कार्य शुरू करने के लिए सलाह दी गई,जिससे तुम करती ही क्या हो की पीड़ा से वो बाहर आ सके साथ ही किसी के कथ्य से खुद का मूल्यांकन न करें इस की समझाइश दी गई।
ऐसी कई छोटी छोटी बातों को बड़ी न बनने देने के लिए चर्चा कर समझाया गया।
सारी पीड़ा,चिंता से मुक्त हो साथ रवाना होते हुए दोनों ने डाॅ. परिहार जी को सही समय पर काउंसलिंग करवाने की सलाह देने के लिए धन्यवाद दिया साथ ही आगे कभी आवश्यकता नहीं होगी फिर भी जरुरत पड़ने पर पुनः परामर्श के लिए आने की अनुमति मांगी।
इस घटना से समाज में संदेश पहुंचाना चाहिए की कपल काउंसलिंग, फेमिली काउंसलिंग या हर तरह के परामर्श के लिए लोगों को परामर्श केंद्र , परामर्शदात्री, परामर्श दाता से संपर्क करने में संकोच नहीं करना चाहिए ताकि रिश्तों को सम्हालने के लिए कानून की शरण में न जाना पड़े क्योंकि “रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय, टूटे तो फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ पड़ जाए” सर्वकालिक और प्रासंगिक है।