भारत की आजादी की 75 वर्षों के उपलक्ष में मनाये जा रहे अमृत महोत्सव के अंतर्गत आईसीएआर-
खाद्य एवं पोषण सुरक्षा हेतु सोयाबीन की विशिष्ट किस्में” शीर्षक पर आयोजित वेबिनार
देश की आजादी की 75 वर्षों के उपलक्ष में मनाये जा रहे “अमृत महोत्सव” के अंतर्गत भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् द्वारा चयनित विषयवस्तु “कृषकों के लिए खाद्य एवं पोषण सुरक्षा” के परिपेक्ष में भा.कृ.अनु.प.- भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर द्वारा “खाद्य एवं पोषण सुरक्षा हेतु सोयाबीन की विशिष्ट किस्में” शीर्षक पर वेबिनार आयोजित किया गया. ऑनलाइन ज़ूम प्लेटफार्म के साथ साथ संस्थान के यूट्यूब चैनल पर एक साथ प्रसारित इस वेबिनार में कृषक, वैज्ञानिक, उद्योग जगत एवं कृषि से जुड़े कुल 750 प्रतिभागियों ने इस परिचर्चा में भाग लिया. इस अवसर पर संस्थान की निदेशक डॉ. नीता खांडेकर ने बताया कि प्रोटीन से भरपूर सोयाबीन का उपयोग भोजन के रूप में किया जाना चाहिए. उन्होंने यह भी बताया की विभिन्न परंपरागत खाद्य पदार्थ जैसे दही/दूध, नमकीन आदि के पौष्टिक गुणों में वृद्धि करने लिए औपचारिक रूप से सोयाबीन का मिश्रित उपयोग किया जा सकता हैं. वेबिनार के प्रारंभ में इस आयोजन के अध्यक्ष डॉ. बी.यू. दुपारे ने स्वागत भाषण प्रस्तुत करते हुए सोया आधारित खाद्य पदार्थ बनाने के लिए संस्थान द्वारा विशेष रूप से विकसित सोयाबीन की किस्मों एवं प्रसंस्करण तकनिकी के प्रचार-प्रसार सम्बन्धी प्रयासों की जानकारी दी.
इस वेबिनार के वक्ता डॉ विनित कुमार, प्रधान वैज्ञानिक द्वारा अपने प्रस्तुतीकरण में संस्थान द्वारा विकसित सोयाबीन की विशिष्ट किस्मों की आवश्यकता, पौष्टिक गुण एवं देश के शहरी एवं ग्रामीण भागों में गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाली जनता को सोयाबीन युक्त खाद्य पदार्थ बनाने योग्य किस्मों सम्बंधित विस्तृत जानकारी दी. उन्होंने कहा कि सोयाबीन के खाद्य उपयोग बढ़ाने में आ रही दो प्रमुख बाधाओं (अपौष्टिक कुनित्ज़ ट्रिप्सिन इन्हिबिटर, एवं सोयाबीन के खाद्य पदार्थो में आने वाली सोयाबीन की अवांछित गंध) को दूर करने की दिशा में संस्थान द्वारा क्रियान्वित वैज्ञानिक शोध एवं विकास कार्यक्रमों के अंतर्गत भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान द्वारा देश में सबसे पहले सोयाबीन में मौजूद अपौष्टिक कुनित्ज़ ट्रिप्सिन इन्हिबिटर मुक्त किस्म “एन.आर.सी 127” के विकास में सफलता प्राप्त की हैं जिसको वर्ष 2020 के दौरान भारत सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया हैं. इस किस्म के अन्य गुणों पर चर्चा करते हुए डॉ. विनीत कुमार ने बताया कि औसतन 103 दिनों में पकने वाली यह सोयाबीन किस्म सूखा एवं अधिक वर्षा की प्रतिकूल स्थिति में सामना करने के साथ-साथ सोयाबीन के प्रमुख कीट एवं रोगों के लिए प्रतिरोधी हैं.
भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान, इंदौर द्वारा खाद्य गुणों के लिए उपयुक्त विशिष्ट सोयाबीन की जानकारी देते हुए डॉ. विनीत कुमार ने यह भी बताया की इस संस्थान द्वारा हाल ही में ऐसी एक किस्म “एन.आर. सी. 142” का विकास किया हैं जिसमे दोनों बाधाओं का समाधान किया गया हैं. यह किस्म सोयाबीन की विशिष्ट गंध के लिए कारक “लायपोक्सीजिनेज-2 अम्ल से मुक्त“ होने के अतिरिक्त अपौष्टिक कुनित्ज़ ट्रिप्सिन इन्हिबिटर से भी मुक्त हैं. भारत सरकार द्वारा इसी वर्ष अधिसूचित 95 दिनों की समयावधि में पककर औसतन 2 टन/हेक्टेयर उत्पादन क्षमता वाली इस किस्म में पीला मोज़ेक एवं चारकोल रॉट जैसी बिमारियों के लिए प्रतिरोधी गुण हैं. विशिष्ट किस्मों के विकास की श्रृंखला में इस वेबिनार के दौरान डॉ. विनीत कुमार ने एक अन्य किस्म “एन.आर.सी. 147” की जानकारी दी गई जिसमे ओलिक अम्ल की मात्रा अत्यधिक हैं. ज्ञात हो कि इस अम्ल की अधिकता से सोयाबीन के खाद्य तेल को बगैर गुणवत्ता में कमी के अधिक दिनों तक उपयोग किया जा सकता है. उन्होंने यह भी बताया की सोयाबीन की अन्य किस्मों में उपलब्ध 23% की तुलना में इस किस्मे में 43-45% तक ओलिक अम्ल पाया गया है, जो की सोया आधारित उद्योग जगत के लिए अति-उपयुक्त गुण हैं.
इस कार्यक्रम का संचालन डॉ. बी.यू.दुपारे, प्रधान वैज्ञानिक द्वारा जबकि धन्यवाद् ज्ञापन डॉ सविता कोल्हे द्वारा किया गया.