गाजर घास जागरूकता सप्ताह के अंतर्गत “गाजर घास उन्मूलन” विषय पर भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान द्वारा वेबिनार का आयोजन
भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान, इंदौर द्वारा “गाजर घास जागरूकता सप्ताह” के अंतर्गत आज
इंदौर . एक वेबिनार का आयोजन किया गया जिसमें भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् के जबलपुर स्थित खरपतवार अनुसन्धान निदेशालय के प्रधान वैज्ञानिक डॉ सुशील कुमार ने देश में गाजरघास की समस्या व् इसके निराकरण के बारे में जानकारी दी. डॉ सुशील कुमार ने इस अवसर पर बताया कि इस घास के द्वारा विभिन्न फसलों की पैदावार में लगभग 37 प्रतिशत तक का नुकसान होता है. इतना ही नहीं, गाजर घास मनुष्य व पशुओं के स्वास्थ्य के लिए भी नुकसानदायक है. इससे मनुष्य में त्वचा की एलर्जी हो जाती है और कभी कभी तो इससे आँखों को तकलीफ एवं नुकसान देखा गया है. इस वेबिनार में डॉ सुशील कुमार ने गाजर घास के उन्मूलन के विभिन्न तरीको की भी जानकारी किसानो को दी. उन्होंने कहा कि गाजर घास को जड़सहित उखाड़ने के अलावा उपलब्ध रसायनों में से केवल ग्लायफ़ोसेट (Glyphosate) जैसे खरपतवारनाशक के छिडकाव से ही नियंत्रित किया जा सकता हैं. देश में हाल ही में किये गए अनुसन्धान से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर कृषकगण चाहे तो अब गाजर घास का प्रयोग कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए कर सकते है. भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान, इंदौर द्वारा विशेष कार्यक्रमों की श्रंखला में ज़ूम प्लेटफार्म के साथ-साथ संस्थान के YouTube चैनल पर आयोजित इस ऑनलाइन कार्यक्रम “गाजर घास जागरूकता वेबिनार” में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान जैसे सोयाबीन बहुल राज्यों के अलावा उत्तराखंड, बिहार जैसे अन्य राज्यों के कृषकों सहित कृषि विज्ञान केन्द्रों के अधिकारियों सहित लगभग 75 से भी अधिक प्रतिभागियों ने भाग लेकर उपयोगी जानकारी प्राप्त की.
इस वेबिनार के प्रारंभ में संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ एस.डी.बिल्लोरे ने कहा कि खरीफ के मौसम में उगाई जाने वाली फसलों में गाजर घास के प्रकोप से फसलों की उत्पादकता में काफी नुकसान होता हैं. उन्होंने कहा कि इस वेबिनार के माध्यम से यह संस्थान सोयाबीन कृषकों तक गाजर घास के उन्मूलन बाबत जागरूकता पैदा करने में सफल होंगे. इस वेबिनर का संचालन, समन्वयन एवं धन्यवाद् ज्ञापन संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ महाराज सिंह द्वारा किया गया.