सदगुरु के सानिध्य के बिना जीवन धन्य और सार्थक नहीं होता
इन्दौर, । गुरू केवल शब्द या व्यक्ति नहीं, जीवन को सही दिशा देने वाले परम तत्व का नाम है जो अमावस्या की स्याह रात्रि को अपने ज्ञान और अनुभव से पूर्णिमा की स्निग्ध चांदनी में बदल देते हैं। जिसका गुरू नहीं, उसका जीवन शुरू ही नहीं। दुर्लभ मनुष्य जीवन तभी सार्थक और धन्य बन पाएगा, जब हम सबके जीवन में किसी सदगुरू का सानिध्य और सत्संग प्राप्त होगा। गुरू ज्ञान का वह दिव्य प्रकाश है जो हर मोड़ पर आने वाले अंधकार को दूर करते हैं।
मनोरमागंज स्थित गीता भवन पर वृंदावन के महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवानंद सरस्वती ने उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। गुरू पूर्णिमा महोत्सव के उपलक्ष्य में आज सत्संग सभागृह में गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष गोपालदास मित्तल, सचिव राम ऐरन, सत्संग समिति के संयोजक रामविलास राठी, महेशचंद्र शास्त्री, प्रेमचंद गोयल, मनोहर बाहेती, दिनेश मित्तल आदि ने स्वामी प्रणवानंदजी का स्वागत कर उन्हें शॉल-श्रीफल भेंट किए। मंच का संचालन रामविलास राठी ने किया। आभार माना राम ऐरन ने।
गीता भवन सत्संग सभागृह में कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए भक्तों के लिए सोशल डिस्टेंस के अनुरूप बैठक व्यवस्था की गई है।