पंद्रह माह की सत्ता,सोलह का सेटबैक और 29 महीने के जमीनी संघर्ष के मोड़ मे कांग्रेस तो नजराना,शुकराना अदायगी में मसरूफ शिवराज

सचिन देव , नई दिल्ली

मध्यप्रदेश सियासी संग्राम में आगामी विधानसभा चुनाव की राजनीतिक बिसात अभी से बिछनी शुरू हो गई है। पंद्रह महीने की कमलनाथ सरकार के गिरने और सोलह महीने के सेटबैक के बाद मध्यप्रदेश कांग्रेस ने अगले 29 महीने जमीनी संघर्ष की कार्ययोजना पर अमल शुरू कर दिया है। इसका आगाज रविवार को पूर्व मुख्यमंत्री व राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने अपने बहुआयामी राजनीतिक मूव के साथ कर दिया। मौका था भोपाल में पार्क की जमीन संघ से जुड़ी संस्था को दिए जाने के विराध प्रदर्शन का। इस दौरान पुलिसिया लाठी चार्ज और वाटर कैनन का सामना कर दिग्विजय सिंह ने प्रदेश भर के जमीनी स्तर के कार्यकताओं को मैदानी संघर्ष के लिए कमर कसने के संदेश दिया। तो “जी” शब्द को राष्टीय बहस का मुद्दा बनाकर साफगोई से बाहर निकलने की कला में माहिर दिग्गी राजा ने प.जवाहर लाल नेहरू और शंकर दयाल शर्मा से इस जमीन से जुड़ाव का जिक्र कर खुद को नेहरू-गांधी विरासत को बचाने के लिए संघर्षरत साबित करने की कोशिश की। वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की दुखती रग दबाते हुए संघ से जुड़ी संस्था को जमीन आवंटन का विरोध कर नागपुर और दिल्ली के कान खड़े कर दिए।
यानी एक मूव कई आयाम। पार्टी के हर छोटे बड़े कार्यकर्ता को जमीनी संघर्ष का संदेश,संघ पर निशाना,सरकार कटघरे में और मौजूदा माहौल में नेहरू की विरासत को बचाने की कवायद व कमलनाथ के नेतृत्व में प्रदेश में पूरी पूरी सक्रियता।
पिछले एक महीने की कांग्रेस की जमावट पर गौर करे तो बतौर प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ हर महत्वपूर्ण मौके पर नेमावर के पीड़ित परिवार को तुरन्त पच्चीस लाख की सहायता से लेकर हर जगह पहुँच रहे है। तो युवा कांग्रेस भी राष्ट्रीय और स्थानीय नेताओं के साथ सड़को पर सक्रिय है। वहीं एक महीने के दौरान”मैन ऑफ आर्गेनाईजेशन” की पहचान रखने वाले दिग्गी राजा ने भोपाल से लेकर धार ,झाबुआ और इंदौर बेल्ट में कोरोना पीड़ितों के घर घर जाकर श्रद्धांजलि दी और आज जमीनी संषर्ष का आगाज किया।
उधर जिन हालतों मे शिवराज की चौथी बार ताजपोशी हुई है,उन्होंने खुद को उसके अनुरूप ढाल लिया है। करोना काल और खस्ताहाल खजाने,बदहाल अर्थव्यवस्था और अनियंत्रित महँगाई व जनसमस्याओं के मद्देनजर उन्होंने खुद को प्रदेश व्यापी दौरे की बजाए मंत्रालय तक सीमित कर लिया है। साथ ही माहौल के अनुरूप नजराना,शुकराना अदायगी में मसरूफ है। दिल्ली आओ केंद्र और केंद्रीय मंत्रियों के समक्ष प्रदेश के विकास संबंधी मांगे रखो और खिलखिलाती हुई तस्वीर के साथ कार्य प्रगति पर है,के संदेश के साथ भोपाल रवानगी।
कारण तेरह वर्षीय तीन बार के मुख्यमंत्रित्व काल मे मामा जी भोपाल से सुबह सुबह प्रदेश व्यापी दौरे पर निकल कर घोषणाएं कर “घोषणावीर” के तमगा ले चुके थे। चौथे कार्यकाल की ताजपोशी के साथ ही करोना का कहर। दूसरी बार कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे मंझे हुए राजनेताओ की मौजूदगी में प्रदेश की जनता को “खुली आँखों से सपना” दिखाने की जादूगरी आसान नहीं है। ना अब “ग्लोबल इन्वेस्टर्स मिट”,ना “स्वर्णिम मध्यप्रदेश” ना “आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश” ना सुनसान बाजारों,शॉपिग माल और सड़कों पर स्मार्ट सिटी का डंका। करोंना काल के बाद सिर्फ इंदौर ही नही पूरा देश ही साफ सुथरा नजर आ रहा है।
मसलन आज ही मध्यप्रदेश को आठ-आठ नई फ्लाइट की सौगात की चर्चा जोरों पर है। लेकिन पिछले डेढ़ साल से ना तो मध्यमवर्गीय लोगो की फेसबुक वॉल किसी एयरपोर्ट की लोकेशन से सुशोभित नजर आ रही है ना आगामी डेढ़ दो साल इसके आसार नजर आ रहे है।
आलम यह है कि इस संक्रमण काल मे चरमराई अर्थव्यवस्था ने हवा में उड़ रहे अच्छे-अच्छे लोगो को जमी पर ला खड़ा किया है।मुझे स्मरण है, दिल्ली से खजुराहो एयरइंडिया की फ्लाइट शुरू हुई थी। पहली बार मुझे भी यात्रा का मौका मिला था। लेकिन कम यात्री संख्या की वजह से कुछ ही समय बाद बंद हो गई। प्रयास उत्तम है,लेकिन मौजूदा अर्थ स्थिति के मद्देनजर लोग 111 रुपए पेट्रोल को देखते हुए जमी पर भी सोच संभाल कर चल रहे है। यैसे म् मौजूदा परिस्थिती में 2024 के आम चुनाव तक इन सुविधाएं का यथावत रह पाना लोगों हवा में उड़ने के हौसले पर निर्भर करता है।
बहरहाल देखना रोचक होगा कि पंद्रह महिने की सत्ता ,सोलह महीने का सेटबैक और 29 महीने में विपक्ष के सत्ता में लौटने के अनुकूल माहौल को कांग्रेस किस कदर भुना पाती है। या “सपनो का सौदागर” पांचवी बार फिर करिश्मा कर अपने नाम रिकार्ड स्थापित करवाता है। इसमें तो कोई संदेह नहीं है कि अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत से ही मामा कर्म से ज्यादा भाग्य के धनी रहे है।