नई पीढ़ियों को पूर्वजों के योगदान की जानकारी ज़रूरी

भोपाल । माधव राव सप्रे राष्ट्रीय समाचारपत्र संग्रहालय और हिंदी भवन न्यास और पत्रकारों ने जाने माने पत्रकार, संपादक और स्वाधीनता सेनानी माधवराव सप्रे को शिद्दत से याद किया । इस मौके पर संग्रहालय की ओर से सप्रे जी पर केंद्रित ग्रंथ का लोकार्पण भी किया गया । इसके संपादक सप्रे संग्रहालय के निदेशक पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर हैं । लोकार्पण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया । इस मौके पर सप्रे जी के भारतीय आज़ादी के आंदोलन में उनकी भूमिका तथा हिंदी पत्रकारिता में योगदान को नई नस्लों तक पहुंचाने का संकल्प लिया गया । कोविड के चलते यह आयोजन मुख्यमंत्री निवास पर किया गया था ।इसमें हिंदी भवन न्यास के मंत्री कैलाश पंत,राज्य सूचना आयुक्त विजय तिवारी, मानस भवन के कार्यकारी अध्यक्ष रघुनंदन शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार और स्वदेश के प्रधान संपादक राजेंद्र शर्मा, शिव कुमार अवस्थी ,हिंदुस्तान टाइम्स के पूर्व संपादक चंद्रकांत नायडू, राज्यसभा टीवी के पूर्व कार्यकारी संपादक और निदेशक राजेश बादल, डीएनए के पूर्व संपादक और देशबंधु के स्तंभकार राकेश दीक्षित, लोकमत समाचार के मध्यप्रदेश – छत्तीसगढ़ प्रमुख अभिलाष खांडेकर, डी एन एन न्यूज़ के संपादक राकेश अग्निहोत्री और डॉक्टर मंगला अनुजा समेत समाज के तमाम वर्गों के प्रतिनिधि मौजूद थे ।
यह देश भर में आज़ादी के पचहत्तर साल होने पर एक साल तक चलने वाले कार्यक्रमों का ही अंग था।संयोग से माधवराव सप्रे जी के जन्म का यह डेढ़ सौवां साल भी है। इसलिए इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सहयोग से माधव राव सप्रे राष्ट्रीय समाचार पत्र संग्रहालय संस्थान ने पूरे साल सप्रे जी के योगदान की जानकारी आम अवाम तक पहुंचाने का निर्णय लिया है। इस कड़ी का पहला आयोजन दमोह ज़िले के पथरिया में हुआ था। पथरिया में सप्रे जी का जन्म हुआ था।उस कार्यक्रम में केंद्रीय संस्कृति मंत्री प्रह्लाद पटेल ने हिस्सा लिया था। इसके बाद भोपाल में यह कार्यक्रम किया गया।इस आयोजन में सभी वक्ताओं ने सप्रे जी के भारतीय पत्रकारिता ,स्वाधीनता आंदोलन और आध्यात्मिक दर्शन पर विचार प्रकट किए। इस बात पर ज़ोर दिया गया कि सप्रे जी के विचारों को जन जन तक पहुंचाने के लिए विभिन्न गतिविधियां आयोजित की जाएं ।मुख्यमंत्री ने स्कूलों व कॉलेजों में निबंध प्रतियोगिता कराने पर ज़ोर दिया । सप्रे जी तथा मध्यप्रदेश के अन्य महापुरुषों के बारे में जानकारी को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने का सुझाव भी दिया गया ।
दरअसल माधव राव सप्रे भारतीय स्वाधीनता संग्राम के क्षितिज पर महात्मा गांधी के 1921 में उदय से पूर्व एक बहुत बड़ा नाम था। उन्होंने गांधी जी से कई बरस पहले स्वराज का नारा दिया था और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के अभियान का नेतृत्व किया था। उन्होंने अहिन्दीभाषी होते हुए लोकमान्य तिलक के मराठी केसरी का हिंदी में हिंदी केसरी का प्रकाशन किया। उन्होंने नागपुर से हिंदी ग्रन्थमाला का प्रकाशन किया ,जिसमें भारत को आज़ाद कराने वाले ओजस्वी लेख प्रकाशित किए गए थे। इन लेखों ने गोरी हुकूमत को हिला दिया था। अँगरेज इन लेखों से इतने भयभीत थे कि चुपचाप डाकख़ाने से ग्राहकों के डाक के पते हासिल किए और फिर उन्हें मजबूर किया गया कि वे सप्रे संपादित ग्रंथमाला को मँगाना बंद कर दें। इसके अलावा सरकारी कर्मचारियों को धमकाया गया कि वे इन अंकों को पढ़ना बंद कर दें। यदि उनके पास ये अंक पाए जाते तो उन्हें तीन साल तक की क़ैद हो जाती। उन्होंने छत्तीसगढ़ के पेंड्रा रोड से छत्तीसगढ़ मित्र का प्रकाशन भी किया था। यह बताने की ज़रूरत नहीं कि एक भारतीय आत्मा के नाम से विख्यात दादा माखनलाल चतुर्वेदी ,मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र और संविधान सभा के सदस्य रहे महान हिंदी सेवी सेठ गोविन्द दास ने अपने लेखन और पत्रकारिता को सप्रे जी के मार्गदर्शन में ही तराशा था।