सिंधिया और वीरेंद्र कुमार बने केंद्रीय मंत्री, पहले से ही हैं एक केंद्रीय और दो राज्य मंत्री
खिलावन चंद्राकर
भोपाल । मोदी सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद केंद्र में मध्यप्रदेश का रुतबा और बढ़ गया है। राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लंबी प्रतीक्षा के बाद अंततः कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ लिया तो उनके समर्थकों का उत्साह देखते बन रहा है । प्रदेश में तख्तापलट के पुरस्कार स्वरूप उन्हें केंद्र में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई। यूपीए सरकार में 10 साल तक विभिन्न विभागों के मंत्री रहे सिंधिया को एनडीए सरकार ने भी महत्व का पद मिल गया है। इससे स्पष्ट है कि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए प्रदेश के नेताओं को अब महत्व मिलने लगा है। साथ ही किन्ही कारणों से सत्ता की मलाई से दूर रहे सिंधिया समर्थकों को भी प्रदेश की सरकार में मलाईदार पदों पर नियुक्ति की संभावनाएं बढ़ गई है। दूसरी ओर छह बार के सांसद और मध्य प्रदेश के अनुसूचित जाति नेता डॉ वीरेंद्र कुमार खटीक को भी कैबिनेट में स्थान मिला है। वे पहले राज्य मंत्री रह चुके हैं। इससे बुंदेलखंड क्षेत्र का राजनीतिक दब दबा बड़ा है। केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत को राज्यपाल बनाए जाने के बाद प्रदेश के कोटे से एक केंद्रीय मंत्री की कमी के साथ ही अनुसूचित जाति के कद्दावर नेता का प्रतिनिधित्व कम हो गया था संभवत इसी को फुल फील करने के लिए वीरेंद्र कुमार को एक बार फिर केंद्रीय मंत्री के रूप में अवसर प्रदान किया गया है। हालांकि केंद्रीय मंत्रिमंडल मेंप्रदेश के मालवा अंचल और विंध्य अंचल का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है .जबकि ग्वालियर चंबल को दो केंद्रीय मंत्री और बुंदेलखंड को भी दो मंत्री मिला है जो क्षेत्र की दृष्टि से असमान वितरण और क्षेत्रीय नेताओं के लिए असंतोष का विषय हो सकता है।
पंक्चर से कनेक्शन वाले नेता विरेंद्र
वीरेंद्र कुमार के पिता की सागर मे साइकिल रिपेयर की दुकान थी. वह भी पढ़ाई के दिनों में वहां काम करते थे. और वीरेंद्र अभी भी इस काम को करने से खुद को नही रोक पाते.पिछले कार्यकाल में बतौर मंत्री उन्होंने अपने लोकसभा क्षेत्र में साइकिल बांटी. एक लाभार्थी ने कहा, मेरी साइकिल में तो हवा ही नहीं. वीरेंद्र कुमार खुद साइकिल का पंप लेकर हवा भरने लगे. वैसे स्थानीय लोग बताते हैं कि वीरेंद्र कुमार जमीन से जुड़े हैं. अब भी अकसर क्षेत्र में बिना लाल बत्ती और कार के निकल जाते हैं. सिक्योरिटी वालों को भी दूर रखते हैं.अभी भी कभी- कभी स्कूटर से क्षेत्र का दौरा करते है तो कभी गांव में चौपाल से आम लोंगो की तरह बैठे नजर आते हैं वीरेंद्र कुमार. और अबकी बार केंद्र मे केबिनेट मंत्री की कुर्सी भी बैठे नजर आएंगे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से डॉक्टर वीरेंद्र कुमार खटीक ने पॉलिटिक्स की शुरुआत की. 1996 में पहली दफा एमपी की सागर सुरक्षित सीट से सांसद बने. तब से लगातार लोकसभा सदस्य हैं. 2007के नए परिसीमन के बाद सागर सुरक्षित सीट नहीं रही. बगल की टीकमगढ़ सीट को रिजर्व कर दिया गया. ऐसे में बीजेपी ने वीरेंद्र कुमार को टीकमगढ़ से उतारा. पिछले तीन चुनाव से वह टीकमगढ़ से सांसद हैं.नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में वीरेंद्र कुमार महिला एवम बाल विकास कल्याण राज्य मंत्री थे. 2017 में उन्हें अल्पसंख्यक मामलों का भी राज्यमंत्री बना दिया. मोदी के दूसरे कार्यकाल में भी उनका नाम संभावित मंत्रियों में शामिल था. पर मौका नहीं लगा.
सिंधिया के संपदा का कोई ओर-छोर नहीं
शाही खानदान के ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभुत्व, प्रभाव और धन-दौलत की संपदा का कोई ओर-छोर नहीं. कांग्रेस से राजनीति में कदम रखने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया भी इसी धमक और रौनक के साथ आए थे. वे अब बीजेपी के साथ हैं.ग्वालियर के अंतिम महाराजा जीवाजीराव सिंधिया के पोते ज्योतिरादित्य जब पॉलिटिक्स में आए,उनके पिता माधवराव सिंधिया का हवाई दुर्घटना में निधन हो गया. तब ज्योतिरादित्य सिंधिया महज 30 साल के थे, लेकिन उन्हें जिम्मेदारी कई वर्षों के बराबर की मिल गई. शाही परिवार का अपना क्षेत्र गुना अब ज्योतिरादित्य के कंधे पर आ बैठा. उसी साल चुनाव हुआ और ज्योतिरादित्य ने अपने बीजेपी के प्रतिद्वंद्वी को लगभग 5 लाख वोटों से हराया.ज्योतिरादित्य जब तक कांग्रेस में रहे, पूरे रूतबे और धमक के साथ रहे यूपीए के शासनकाल में ज्योतिरादित्य अमीरी की लिस्ट में टॉपर थे. उस वक्त उनकी प्रॉपर्टी का जो हिसाब लगा, उसमें 2 अरब डॉलर से ज्यादा की संपत्ति रही जो उन्हें पुरखों से मिली है. वे पढ़े-लिखे नेताओं में भी किसी से पीछे नहीं हैं. सिंधिया ने दुनिया की सबसे मशहूर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से बीए की डिग्री ली. इससे भी दो कदम आगे जाकर उन्होंने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए की डिग्री ली. राजनेता होते हुए इतनी बड़ी डिग्रीधारकों में ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम सबसे ऊपर है.यूपीए के पूरे शासनकाल में मंत्री रहे सिंधिया कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से लगातार मतभेद रहे। सवा साल पहले वे कांग्रेस छोड़कर अपने 22 समर्थक विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गया। इससे प्रदेश में फिर से भाजपा की सरकार बनी और उन्हें पहले राज्यसभा का सांसद और अब मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री बनाया गया है। माना जा रहा है कि उन्हें कोई सम्मानजनक पोर्टफोलियो ही दिया जाएगा।