गहलोत के जाने और मंगूभाई के आने से बदलेंगे समीकरण

खिलावन चंद्राकर

भोपाल । अंततः केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री और मध्य प्रदेश के वरिष्ठतम भाजपा नेता थावरचंद गहलोत को कर्नाटक जैसे महत्वपूर्ण राज्य का राज्यपाल बनाया गया है। साथ ही अब लंबे समय के अंतराल के बाद मध्यप्रदेश को भी पूर्णकालिक राज्यपाल के रूप में मंगूभाई पटेल का साथ मिला है। माना जा रहा है कि इससे मध्य प्रदेश के सरकारी कामकाजो में तेजी आएगी और अंशकालीन राज्यपाल की दशा में जरूरी कार्यों में आ रहे व्यवधान से भी मुक्ति मिलेगी।

जहां तक गहलोत का मध्य प्रदेश की मूल राजनीतिक धारा से विदाई से मध्यप्रदेश के बदलने वाले राजनीतिक समीकरण का सवाल है , तो सबसे पहली बात यह है कि राज्यसभा की एक सीट खाली हो जाएगी। जाहिर है विधायकों की संख्या बल के आधार पर यह सीट भाजपा के खाते में ही रहेगी किंतु इसके लिए एक अनार सौ बीमार की स्थिति बनती हुई दिख रही है। लेकिन सब कुछ खंडवा लोकसभा उपचुनाव में प्रत्याशी चयन के बाद ही स्पष्ट हो सकता है।माना जा रहा है कि भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय मौजूदा स्थिति में खंडवा से उप चुनाव लड़ने के इच्छुक है। किंतु बदली हुई परिस्थितियों में वह अब राज्यसभा की सीट हासिल करने पर जोर लगाएंगे। इसके अतिरिक्त कृष्ण मुरारी मोघे भी प्रबल दावेदार हो सकते हैं । यह बात सुनिश्चित है कि प्रदेश के मालवा अंचल के ही किसी नेता को राज्यसभा की रिक्त हुई सीट से संसद में भेजा जाएगा। यह बात अलग है कि गहलोत अनुसूचित जाति वर्ग के बड़े नेता माने जाते हैं और समीकरण में कोई बड़ा उलटफेर नहीं हुआ तो इसी वर्ग के किसी नेता को राज्यसभा में भेजने का निर्णय पार्टी नेतृत्व द्वारा किया जा सकता है।

कर्नाटक के राज्यपाल बने थावरचंद गहलोत वर्तमान में राज्यसभा में भाजपा संसदीय दल के नेता भी हैं साथ ही पार्लियामेंट्री बोर्ड के मेंबर भी है। उनकी गिनती भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में होती है ।

बढ़ेगा मध्य प्रदेश का कोटा

गहलोत के राज्यपाल बनने से पार्टी के रिक्त हुए खाली स्थान को भरना संभव नहीं है किंतु होने जा रहे केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में प्रदेश के कोटे में वृद्धि हो सकती है। ज्योतिरादित्य सिंधिया को केंद्रीय मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल किये जाने के संकेत उनके दिल्ली बुलावे से मिल चुका है। किंतु सब कुछ सामान्य रहा तो मध्य प्रदेश से दो कैबिनेट और एक राज्य मंत्री बनाए जाने की प्रबल संभावना है। इनके लिए जो नाम तेजी से उभर कर सामने आए हैं उनमें कैलाश विजयवर्गीय को संगठन की जिम्मेदारी से मुक्त कर सरकार की मुख्य धारा से जोड़ा जा सकता है। वर्तमान में पार्टी के महासचिव होने के साथ ही उनके पास पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्य का प्रभार भी है जिससे उन्हें मुक्त करने की सुगबुगाहट पुरजोर प्रयास के बाद भी पश्चिम बंगाल में सरकार न बना पाने के बाद से ही चल रही है। इसी तरह जबलपुर से चार बार के सांसद राकेश सिंह को भी केंद्रीय राज्य मंत्री के रूप में दायित्व मिल सकता है। वैसे भी वे मध्य प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष के साथ ही संगठन में राज्यों के प्रभाव भी संभाल चुके हैं। पार्टी का संगठन मध्यप्रदेश में अजा और अजजावर्ग को प्राथमिकता के साथ भाजपा की मुख्यधारा से जोड़ने की कवायद कर रही है। ऐसी दशा में यदि अनुसूचित जाति वर्ग के किसी बड़े नेता को राज्यपाल बनाए जाने के बाद रिक्त हुए केंद्रीय मंत्री के पद पर इसी वर्ग के नेता को बैठाने का समीकरण भी काम कर सकता है। ऐसी दशा में पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ वीरेंद्र कुमार खटीक की लाटरी फिर से लग सकती है। वैसे एक बात स्पष्ट है कि गहलोत के रूप में मध्य प्रदेश में हुए इस बड़े परिवर्तन से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, राज्यमंत्री पहलाद पटेल और फ़गन सिंह की सेहत पर कोई अंतर आएगा इसकी कम संभावना है।

बेहतर होंगे सरकारी कामकाज

जहां तक मध्य प्रदेश के नए राज्यपाल के रूप में मंगू भाई पटेल की नियुक्ति का सवाल है , वह संघ की पृष्ठभूमि के गुजरात के वरिष्ठतम नेताओं में से एक है। नवसारी जिले से छह बार के विधायक पटेल के पास बड़ा राजनीतिक अनुभव है जो उन्होंने प्रदेश में वन एवं पर्यावरण मंत्री, विधानसभा में उपाध्यक्ष, कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में हासिल किया है। तेजतर्रार और सिद्धांतों के प्रति समर्पित रहने वाले राजनेता के रूप में उनकी पहचान है। ऐसी दशा में राज्यपाल के पद को रबर स्टैंप और राज्य सरकार का मोहरा मानने वालों की दलील को वह अपने कामकाज के बल पर झूठलाने की काबिलियत रखते हैं। संभवतः इन्हीं कारणों से माना जा रहा है कि उनकी नियुक्ति से न सिर्फ मध्यप्रदेश के सरकारी कामकाज में तेजी आएगी बल्कि राज्य सरकार को एक बेहतर मार्गदर्शक भी मिल जाएगा। साथ ही लंबे समय से अंशकालीन राज्यपाल की पदस्थापना के कारण प्रदेश में उत्पन्न हो रही विपरीत राजनीतिक परिस्थितियों से भी छुटकारा मिल जाएगा। हालांकि उनकी शैक्षणिक योग्यता को कमतर आंका जा रहा है किंतु राजनीतिक अनुभव और क्षमता के सामने यह कमी भी पूरी हो जाएगी , ऐसी उम्मीद की जा रही है।